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नई दिल्ली। बीते दिनों मलेशिया में एक दिन में महीने भर जितनी बारिश हुई। इसके बाद बाढ़ से पूरी तरह से तबाही मच गई। तुर्की से खबर आई कि वहां तूफान और बारिश ने तबाही मचा दी। अमेरिका के कैलिफोर्निया का उदाहरण भी डराने वाला है, जहां कब भीषण गर्मी, कब तूफान और कब बारिश से जूझना पड़ जाए पता ही नहीं चलता। दुनिया में तेजी से बढ़ते जलवायु परिवर्तन के ऐसे बहुत से मामले सामने आ रहे हैं जो बड़ी चिंता का विषय हैं। भारत से संबंधित एक हालिया रिपोर्ट ने भी विशेषज्ञों को परेशानी में डाल दिया है।
यूनिवर्सिटी आफ लीड्स, यूके के अनुसार अन्य ग्लेशियरों की तुलना में हिमालय के ग्लेशियर पिछले कुछ दशकों में दस गुना ज्यादा तेजी से पिघल रहे हैं। इससे भारत समेत कई एशियाई देशों में पानी की कमी और बाढ़ का खतरा मंडरा रहा है। सबको पता है कि ये सब ग्लोबल वार्मिग के दुष्परिणाम हैं। ग्रीस में इस साल गर्मी में जंगलों में आग लगने के हजारों मामले सामने आए। तुर्की, स्पेन और इटली में भी आग की भीषण घटनाएं लगातार बढ़ी हैं। आशंका यही है कि जलवायु परिवर्तन के कारण जंगलों में आग लगने की घटनाएं बहुत सामान्य हो जाएंगी।
जलवायु परिवर्तन की समस्या के लिए मुख्य रूप से मनुष्य ही जिम्मेदार है। इस बीच डराने वाली बात यह है कि ग्लोबल वार्मिग के चलते विश्व में 19वीं सदी के मुकाबले तापमान 1.2 डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है। इसी दौरान वातावरण में कार्बन डाईआक्साइड की मात्र 50 प्रतिशत तक बढ़ गई है। ये जलवायु परिवर्तन के बहुत बड़े कारण माने जा रहे हैं। हमारा खानपान और खेती का तरीका भी तमाम तरह के प्रदूषण का कारण बनता है। विज्ञानियों ने चेतावनी दी है कि यदि जलवायु परिवर्तन पर ध्यान नहीं दिया गया तो इसके भयंकर परिणाम होंगे।
ग्लोबल वार्मिग की दर को 21वीं सदी तक 1.5 डिग्री सेल्सियस रखना होगा। क्लाइमेट एक्शन ट्रैकर ग्रुप ने चेताया है कि जिस तेजी से जलवायु परिवर्तन हो रहा है, उससे इस सदी के अंत तक तापमान की दर 2.4 डिग्री से. से ज्यादा पहुंच जाएगी। यदि समय रहते उपाय नहीं किए गए तो ग्लोबल वार्मिग चार डिग्री से. की दर से बढ़ जाएगी और उसके महाविनाश सामने होंगे। बड़ी संख्या में गलेशियर पिघलेंगे, समुद्र, नदियों के पानी का स्तर बढ़ेगा, बाढ़ का प्रकोप बढ़ेगा, हरियाली खत्म होगी जिससे लाखों मनुष्यों और पशुओं के बेघर होने की आशंका गहरा रही है। उदहारण के लिए हाथी को एक दिन में 150 से 300 लीटर पानी चाहिए, जो नहीं मिलेगा। ग्लेशियर पिघलेंगे लिहाजा पोलर बीयर को रहने की जगह नहीं मिलेगी। विज्ञानियों का अनुमान है कि जिस तेजी से जलवायु परिवर्तन हो रहा है, उससे इस सदी के अंत तक पांच सौ से अधिक पशु-पक्षियों की प्रजातियां विलुप्त हो सकती हैं। इसलिए हमें इन सभी तथ्यों की समय रहते चिंता और उनके समाधान का उपाय करना होगा।

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