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दिल्ली । राहुल गांधी को भविष्य के नेता के तौर पर देखने वाले कांग्रेसजनों और इसी नजरिये को बल देने वाले बुद्धिजीवियों को पिछले दिनों तब जोर का झटका लगा, जब मुंबई गईं ममता बनर्जी ने यह कह दिया कि कोई विदेश में ही रहेगा तो कैसे चलेगा? राहुल गांधी के समर्थक-शुभचिंतक ममता के इस सीधे हमले से उबरे भी नहीं थे कि उनकी अदाणी समूह के मुखिया गौतम अदाणी से मुलाकात की खबर आ गई। इससे उन लोगों को भी जोर का झटका लगा, जो ममता को राहुल गांधी का विकल्प मानकर उनके पीछे खड़े हो गए हैं।ममता ने केवल गौतम अदाणी से मुलाकात ही नहीं की, बल्कि उनसे बंगाल में निवेश की संभावनाओं पर भी बात की। उनकी मुलाकात करीब डेढ़ घंटे चली। इसके पहले वह मुंबई में कथित सिविल सोसायटी के लोगों से मुलाकात के दौरान मेधा पाटकर से यह भी कह चुकी थीं कि देश को अंबानी-अदाणी भी चाहिए और किसान भी। उनके इस जवाब से उन सबको भी जोर का झटका लगा, जो कृषि कानून विरोधी आंदोलन को हवा देने के साथ अंबानी-अदाणी को गाली देने और उन्हें खलनायक साबित करने में लगे हुए हैं। एक समय ऐसे लोगों में खुद ममता भी शामिल थीं। बंगाल चुनावों के समय ममता ने कहा था, ‘मोदी जी सब कुछ छीन लेंगे, क्योंकि अदाणी उनके दोस्त हैं।’ एक और चुनावी भाषण में नरेन्द्र मोदी स्टेडियम के दोनों छोरों का नाम अदाणी और अंबानी के नाम पर रखे जाने को लेकर उन्होंने तंज कसा था, ‘हो गया हम दो हमारे दो।’ यह ठीक वही भाषा थी, जो राहुल गांधी बोल रहे थे। ममता के इस तंज से पहले राहुल कुछ इसी तरह का कटाक्ष भरा ट्वीट कर चुके थे।राहुल गांधी एक अर्से से अंबानी-अदाणी के पीछे पड़े हुए हैं। उनकी मानें तो मोदी सरकार को दो लोग चला रहे हैं-एक अंबानी और दूसरे अदाणी। वह इस सरकार को न केवल अंबानी-अदाणी की सरकार बताते हैं, बल्कि प्रधानमंत्री को इन दोनों का लाउडस्पीकर भी करार दे चुके हैं। कृषि कानून बनने के बाद तो वह इन दोनों के पीछे हाथ धोकर ही पड़ गए। उन्होंने इन कानूनों का नाम ही अंबानी-अदाणी कानून का नाम दे दिया। यह कृषि कानून विरोधी आंदोलन के बहाने अंबानी-अदाणी को बदनाम करने के अभियान का ही नतीजा था कि पंजाब में रिलायंस जियो के करीब 1400 मोबाइल टावर तोड़े गए। इसके अलावा अंबानी और अदाणी के प्रतिष्ठानों के आगे धरने दिए गए। इससे आजिज आकर उन्हें बंद करने का फैसला करना पड़ा। इससे सैकड़ों लोगों की नौकरियां गईं, लेकिन गुमराह किसान इसे ही अपनी जीत बताते रहे और मोदी संग अंबानी-अदाणी के पुतले फूंकते रहे। जिन अमरिंदर सिंह ने एक समय किसानों को उकसाया और बरगलाया, वह यह कहते रहे कि कृषि कानून विरोधी आंदोलन से अंबानी-अदाणी को नहीं, पंजाब को नुकसान हो रहा है, लेकिन उनकी एक नहीं सुनी गई। राहुल गांधी चाहे जिस चिढ़ में अंबानी-अदाणी को लांक्षित करने में लगे हों, लेकिन वह कुल मिलाकर भोली-भाली जनता को बेवकूफ ही बना रहे हैं। इस साल के प्रारंभ में जब वह अंबानी-अदाणी को चोर बताने में लगे हुए थे, तब ठीक उसी समय महाविकास अघाड़ी के शासन वाले महाराष्ट्र से यह खबर आई कि अदाणी समूह की ओर से दिघी बंदरगाह का अधिग्रहण पूरा कर लिया गया है। इसके अलावा यह सूचना भी आई कि राजस्थान में अदाणी समूह 9,700 मेगावट का सोलर हाईब्रिड और विंड एनर्जी पार्क का निर्माण करने जा रहा है। यह सूचना अभी तक कांग्रेस शासित किसी राज्य से नहीं आई कि वे अंबानी-अदाणी की किसी योजना-परियोजना को मंजूरी नहीं देंगी। साफ है कि राहुल गांधी और उनके साथी किसी सनक में आकर अंबानी-अदाणी को खलनायक बनाने में लगे हुए हैं। वह मोदी सरकार को चंद उद्योगपतियों के लिए काम करने वाली सरकार बताकर उद्यमियों के साथ उद्यमशीलता पर भी प्रहार करने में लगे हुए हैं। इसीलिए यह कहा जाता है कि वह कांग्रेस को वामपंथी दल में तब्दील कर रहे हैं। वह शायद इसमें सफल भी हो गए हैं। जो भी हो, यह सनद रहे कि रिलायंस समूह का एक औद्योगिक साम्राज्य के रूप में उभार तब हुआ, जब केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी। इसी तरह अदाणी समूह गुजरात में तब फला-फूला, जब वहां कांग्रेस सत्ता में थी। राहुल गांधी, उनके उद्यम विरोधी साथियों और उनकी जैसी सोच वाले लोगों ने अंबानी-अदाणी पर लांछन तो खूब लगाए हैं, लेकिन ऐसे प्रमाण पेश नहीं कर सके हैं, जिससे यह साबित हो सके कि उन्होंने अनुचित-अवैधानिक काम किए हैं। यदि ऐसे प्रमाण होते तो जाहिर है कि उन्हें अदालतों में पेश किया जाता। यह समझ आता है कि यदि किसी उद्योगपति ने कुछ गलत किया है तो उसके खिलाफ कार्रवाई की मांग हो, लेकिन बिना प्रमाण उन्हें लांछित करना एक तरह से देश के पैरों पर कुल्हाड़ी मारना है, क्योंकि ये उद्योगपति ही हैं, जो युवाओं के लिए रोजगार के अवसर मुहैया कराते हैं। आखिर कौन उद्योगपति बेवजह गाली सुनना पंसद करेगा? यह भी विचित्र है कि पराग अग्रवाल, सत्य नडेला, सुंदर पिचाई आदि की उपलब्धियों को सराहाने वाले अंबानी-अदाणी को गाली देने में आगे हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि वह राहुल गांधी उद्योगपतियों के मान-सम्मान से खेलने में लगे हुए हैं, जो चुनावों के दौरान मेड इन भोपाल घड़ी, मेड इन छिंदवाड़ा मोबाइल, मेड इन जौनपुर पतीला की बातें करते थे। क्या ये सब फैक्ट्रियां राहुल गांधी खुद लगाएंगे? लगाएंगे तो कब? यह अच्छा हुआ कि ममता को सद्बुद्धि आ गई। राहुल और उनके साथियों को भी आ जाए तो अच्छा-खुद उनके लिए और देश के लिए भी।