कोरबा। विधानसभा चुनाव को अधिक दिन शेष नहीं है। राजनीतिक दल आंकड़ों को बदलने चुनावी बिसात बिछाने में व्यस्त हो चुके हैं। कोरबा जिला की बात करें तो भाजपा और कांग्रेस दोनों ही आंकड़ों को बदलना चाह रही है। भाजपा जहां 1-3 की खाई को पाटकर 4-0 से जीत दर्ज करना चाहेगी, तो वहीं दूसरी ओर कांग्रेस का लक्ष्य भी जिले से भाजपा का सुपड़ा साफ करना होगा।छत्तीसगढ़ की ऊर्जाधानी कहे जाने वाले कोरबा जिले में विधानसभा की चार विधानसभा सीट रामपुर, कोरबा, कटघोरा, पाली -तानाखार आती है। इनमें से पाली-तानाखार और रामपुर अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है, वहीं कोरबा और कटघोरा सामान्य वर्ग के लिए सुरक्षित है। 2018 के चुनाव में चार में से तीन सीटों पर कांग्रेस ने विजय हासिल की थी। कोरबा को कांग्रेस का मजबूत किला माना जाता है। कोरबा जिला आदिवासी बाहुल इलाका है। चुनावी साल को देखते हुए सत्ताधारी कांग्रेस और विपक्ष में बैठी बीजेपी चुनावी बिसात में मोहरे बिछाने में जुट गई हैं। हाथियों का उत्पात,सडक़,शिक्षा और स्वास्थ्य के साथ साथ बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। चुनाव में जिले की सभी चारों सीटों पर आदिवासी निर्णायक भूमिका में होता है।नवगठित छत्तीसगढ़ में रामपुर विधानसभा सीट पहली बार 2008 में अस्तित्व में आई थी। रामपुर विधानसभा सीट एसटी वर्ग के लिए आरक्षित है। 70 फीसदी आबादी अनुसूचित जनजाति की है। इनमें भी कंवर और राठिया समुदाय का बोलबाला है। ये दोनों ही चुनाव में किंगमेकर की भूमिका में होते है।यहां गोंड, पहाड़ी कोरवा, बिहोर जनजाति के हैं, करीब 25 से 30 फीसदी आबादी ओबीसी और सामान्य वोटर्स की है। क्षेत्र की समस्याओं की बात की जाए तो हाथियों का उत्पात,सडक़,शिक्षा और स्वास्थ्य के साथ साथ बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। कोरबा जिला संविधान की पांचवी अनुसूची में शामिल आरक्षित जिला है। लेकिन कोरबा सीट सामान्य के लिए आरक्षित है। यहां से कोई भी चुनाव लड़ सकता है। यहां सामान्य वर्ग के मतदाताओं का दबदबा है। यहां 13 फीसदी एससी,29 फीसदी एसटी आबादी है। इलाके में दर्जनभर पावर प्लांट से निकलने वाली राख और धुएं के प्रदूषण से लोग परेशान है। प्रदूषण कोरबा का सबसे बड़ा मुद्दा है। प्लांट अधिक होने के बावजूद स्थानीय लोगों के लिए रोजगार की कमी है। कई प्लांट होने के कारण देश के कई राज्यों के लोग यहां नौकरी करने आते है और स्थायी मतदाता बन जाते है। काले हीरे का कटोरा कहे जाने वाले कटघोरा की राजनीति बड़ी दिलचस्प है। यहां के इलाके से देशभर के बिजली संयंत्र संचालित होते है। यहां से देश से चमकता है लेकिन जिन किसानों की भूमि अधिग्रहित की गई है, उनके लिए ये किसी स्याह से कम नहीं है। यहां कि किसान केंद्र सरकार और छत्तीसगढ़ की पुनर्वास नीति के जाल में उलझ कर रह गए है। कोयले की खदान होने के चलते क्षेत्र की प्रमुख समस्या प्रदूषण है। समय समय पर कटघोरा को जिला बनाने की मांग पर जोर पकड़ती है। पेयजल के साथ साथ शिक्षा स्वास्थ्य की बदहाल स्थिति मेंहै। यहां 70 फीसदी सामान्य और ओबीसी वोटर्स है।जबकि 30 फीसदी एसटी मतदाता है। ये 30 फीसदी आदिवासी मतदाता ही उम्मीदवार की हार जीत तय करते है। सामान्य सीट होने के बावजूद कांग्रेस यहां से आदिवासी समाज के बोधराम कंवर को ही चुनावी मैदान में उतारती थी। पाली -तानाखार में बीजेपी कमजोर स्थिति में है। पिछले तीन चुनावों के नतीजों में बीजेपी यहां तीसरे नंबर पर जा रही है। विधानसभा क्षेत्र में करीब 5 फीसदी एससी और 70 फीसदी एसटी वर्ग के वोटर्स है। आदिवासी समुदाय ही यहां हार जीत तय करता है। सीट को कांग्रेस की परंपरागत सीट माना जाता है।लेकिन गोंडवाना गणतंत्र पार्टी की बढ़ते जनाधार ने कांग्रेस को चिंता में डाल दिया है। यहां जीजीपी के टक्कर में आने से त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिलता है। पानी में फ्लोराइड की अधिकता और शिक्षण संस्थानों में शिक्षकों की कमी , हाथियों का उत्पाद,बिजली पानी और सडक़ जैसी बुनियादी सुविधाओं की कमी है।
विधानसभावार जीते प्रत्याशी
रामपुर विधानसभा सीट
2018 में बीजेपी से ननकी राम कंवर
2013 में कांग्रेस से श्याम लाल कंवर
2008 में बीजेपी से ननकी राम कंवर
2003 में बीजेपी से ननकी राम कंवर
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कोरबा विधानसभा सीट
2018 में कांग्रेस से जय सिंह अग्रवाल
2013 में कांग्रेस से जय सिंह अग्रवाल
2008 में कांग्रेस से जय सिंह अग्रवाल
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कटघोरा विधानसभा सीट
2018 में कांग्रेस से पुरुषोतम कंवर
2013 में बीजेपी से लखनलाल देवांगन
2008 में कांग्रेस से बोधराम कंवर
2003 में कांग्रेस से बोधराम कंवर
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पाली -तानाखार विधानसभा सीट
2018 में कांग्रेस से मोहित केरकट्टा
2013 में कांग्रेस के उइके रामदयाल
2008 में कांग्रेस से राम दयाल उइके
2003 में कांग्रेस से बोधराम कंवर

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