नई दिल्ली। घरेलू सहायकों, निर्माण श्रमिकों और सफाई कर्मियों को दीनदयाल उपाध्याय राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन के दायरे में लाने के लिए केंद्र सरकार एक नई योजना शुरू करने जा रही है। इसे स्वयं सहायता समूहों की तर्ज पर लागू किया जाएगा। सरकार का उद्देश्य शहरों में दिहाड़ी मजदूरी करने वाले और अनिश्चित आय वाले निर्धन तथा आश्रयहीन लोगों को एक समूह के रूप में लाभान्वित करना है और इसके लिए सामाजिक योजनाओं और माइक्रो क्रेडिट का सहारा लिया जाएगा।

राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन (एनयूएलएम) शहरी कार्य मंत्रालय की एक महत्वपूर्ण योजना है, जिसके तहत कई तरह से शहरी गरीबों के जीवन स्तर को सुधारने की पहल की जाती है-उनके कौशल विकास, स्वरोजगार या दैनिक मजदूरी के आधार पर। मंत्रालय के अधिकारियों ने बताया कि एनयूएलएम के दूसरे चरण की शुरुआत अगले साल होगी। पायलट प्रोजेक्ट 25 शहरों में आरंभ किया जा रहा है।

इन शहरों में पात्र लाभार्थियों की पहचान का काम दीपावली के तत्काल बाद शुरू हो जाएगा। जिन शहरों में यह पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया जा रहा है, वे हैं लखनऊ, आगरा, भोपाल, उज्जैन, इंदौर, पटना, सूरत, अहमदाबाद, दाहोद, भुवनेश्वर, पुरी, राउरकेला, कोलकाता, दुर्गापुर, आइजल, चंबा, अगरतला, विशाखापत्तनम, तिरुअनंतपुरम और कोच्चि।

इस प्रोजेक्ट में घरेलू सहायकों, निर्माण श्रमिकों, गिग वर्करों के साथ ट्रांसपोर्ट वर्करों और कचरा प्रबंधन में लगे सफाई कर्मचारियों के अलग-अलग समूह बनाए जाएंगे और उन्हें कुछ धन दिया जाएगा ताकि वे अपने भीतर जरूरतमंद लोगों को आजीविका अथवा कौशल विकास के लिए धन दे सकें। एक समूह को बीस लाख रुपये तक दिए जा सकते हैं।

अधिकारियों के अनुसार खास बात यह है कि इस योजना के लिए जिन लाभार्थियों की पहचान की जाएगी, उन्हें सरकार की दूसरी कल्याणकारी योजनाओं जैसे खाद्यान्न वितरण के लिए प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के दायरे में भी लाया जाएगा।

मंत्रालय ऐसे लोगों की पहचान के लिए श्रम मंत्रालय के ई-श्रम पोर्टल, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के लाभार्थियों और भवन निर्माण से संबंधित एजेंसियों के डाटा बेस का इस्तेमाल करेगा। शहर लाभार्थियों की पुष्टि करेंगे, इसके बाद मंत्रालय उन्हें राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन के दायरे में लेगा।

माना जा रहा है कि पायलट प्रोजेक्ट में 50,000 लोगों को जोड़ा जा सकता है। हालांकि लाभार्थियों की वास्तविक संख्या शहरों में सर्वेक्षण के बाद ही पता चल सकेगी। पायलट प्रोजेक्ट के लिए मंत्रालय ने 180 करोड़ रुपये मंजूर किए हैं और अधिकारियों का कहना है कि जनवरी तक सर्वेक्षण आदि का काम पूरा कर लिया जाएगा।

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