रायपुर: राज्य में शिशु स्वास्थ्य को बेहतर करने के लिए लगातार ठोस कदम उठाए जा रहे है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के सहयोग से बनाए गए स्पेशल न्यू बोर्न केयर यूनिट बच्चों के लिए वरदान साबित हो रहा है। सही समय पर उचित स्वास्थ्य सुविधा के अभाव में नवजात को गंभीर स्वास्थ्य जटिलताओं का सामना करना पड़ता है। नवजात में होने वाली स्वास्थ्य जटिलताओं की समय पर पहचान कर उन्हें सुरक्षित किया जा सकता है। इसे ध्यान में रखते हुए मेडिकल कॉलेज एवं जिला अस्पताल स्तर पर स्वास्थ्य विभाग द्वारा कई स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराई गई है। जिसमें स्पेशल न्यू बोर्न केयर यूनिट की अहम भूमिका है। राज्य के अस्पतालों में वर्ष 2021-22 तक कुल 23 स्पेशल न्यू बोर्न केयर यूनिट क्रियाशील किए जा चुके है।
बीजापुर जिले में जिला चिकित्सालय में विभिन्न प्रकार की सेवायें प्रदाय की जा रही हैं। जटिल प्रसव के उपरांत ग्राम मंगलनार, विकासखण्ड भैरमगढ़ की बच्ची हरिप्रिया को जिला चिकित्सालय बीजापुर के स्पेशल न्यूबोर्न केयर यूनिट में रख कर बचाया गया। जिसकी सफलता की कहानी अपने आप में एक उदाहरण है। 06 अप्रैल 2020 को बच्ची हरिप्रिया गौंड का जन्म चिकित्सालय में हुआ। उस समय उसका वजन मात्र 570 ग्राम था। बच्ची को लगातार स्पेशल न्यू बोर्न केयर यूनिट में रखकर 8 वें दिन पुनः वजन किया गया तब बच्ची का वजन 410 ग्राम था। इसके उपरांत बच्ची को नियमित रूप से 80 दिनों तक स्पेशल न्यू बोर्न केयर यूनिट में रखकर ईलाज किया गया। 8 दिन वेंटिलेटर पर एवं 12 दिन व्द ठनइइसम ब्च्।च् पर हरिप्रिया को रखा गया। बच्ची का 3 सेशनों में ठसववक ज्तंदेनिेपवद भी किया गया व 20 दिनों तक च्ंतमदजमतंस छनजतपजपवद पर रखा गया। अंततः 2 माह पश्चात् 24 जून 2020 को जब बच्ची का वजन लिया गया, तब बच्ची का वजन 1.410 किलो था। इसके उपरांत बच्ची को अस्पताल से डिस्चार्ज किया गया। आज की स्थिति में बच्ची का नियमित फॉलोअप किया जा रहा है एवं बच्ची का वजन 8 किलो हो गया है। हरिप्रिया का विकास भी अब सामान्य बच्चों की तरह ही हो रहा है और वह अपनी सहेलियों के साथ हस खेल रही है। ज़िला अस्पताल बीजापुर में संचालित स्पेशल न्यू बोर्न केयर यूनिट में अब तक कुल 1 हजार 433 नवजात शिशुओं को नया जीवनदान मिला है।
स्पेशल न्यू बोर्न केयर में किया जाता है भर्ती
ऐसे बच्चे जिनके पैदा होने के बाद जिन्हें चिकित्सकीय उपचार की आवश्यकता होती है। जैसे- जन्म से पहले पैदा हो गया हो। पैदा होने के बाद नहीं रोया हो। कम वजन का हो, जन्म के समय से पीलिया हो। सांस लेने में तकलीफ हो। पेट में तनाव या सूजन हो, शुगर बढ़ने से बच्चे को पेशाब ज्यादा हो रही हो। पल्स बढ़ी हो, ऑक्सीज़न की कमी हो। मां का दूध नहीं पी पाता हो। गंदा पानी पी लिया हो। हाथ-पैर नीला पड़ गया हो एवं जन्म के तुरंत बाद झटके आ रहे हों। उन्हें सिक न्यू बोर्न यूनिट वार्ड में भर्ती कर इलाज किया जाता है।
डिस्चार्ज बच्चों का किया जाता है फोलोअप
एसएनसीयू से डिस्चार्ज होने के बाद भी कम वजन वाले बच्चों में मृत्यु का अधिक खतरा रहता है। स्वस्थ नवजात की तुलना में जन्म के समय कम वजन वाले बच्चों में कुपोषण के साथ मानसिक एवं शारीरिक विकास की दर प्रारंभ से उचित देखभाल के आभाव में कम हो सकती है। इसे ध्यान में रखते हुए नवजात के डिस्चार्ज होने के बाद भी उनका नियमित फोलोअप किया जाता है। एएनएम एवं मितानिनों द्वारा शिशुओं को 3 माह से 1 वर्ष तक त्रैमासिक गृह भ्रमण कर देखभाल की जाती है।