जगदलपुर: बिहार के दशरथ मांझी पर बनी फिल्म मांझी द माउंटेन मेन आपने जरूर देखी होगी। फिल्म के आखिरी दृश्य में दशरथ कहते हैं कि भगवान के भरोसे न बैठें, क्या पता भगवान हमारे भरोसे बैठा हो। फिल्म के इस डॉयलाग से इत्तफाक रखती है बीजापुर के धनगोल पंचायत की कहानी। जहां प्रशासन से एक अदद पुलिया की फरियाद करते थक चुके ग्रामीण अब प्रशासन से उम्मीद छोड़ बारिश में पेश आने वाली कठिनाइयों से बचने श्रमदान के बूते जुगाड़ की पुलिया को आकार देने में व्यस्त हैं।



विकासखंड मुख्यालय भोपालपट्नम को जोड़ती नेशनल हाईवे से महज 3 किमी दूर धनगोल गांव को जोड़ती कच्ची सड़क में बनी एक पुलिया करीब 5 साल पहले ढह गई। जिसके चलते बारिश के दिनों में उफनते नाले से गांव वालों की मुश्किलें बढ़ जाती थी। 50 परिवारों तक न तो एंबुलेंस पहुंच पाती और न ही यहां के निवासी दुपहिया से नेशनल हाईवे तक पहुंच पाते थे। बारिश के मौसम में पुलिया के अभाव में गांव का जिला मुख्यालय से संपर्क लगभग टूट ही जाता था।

गांव के सरपंच नागैया कुंजाम समेत ग्रामीणों का कहना है कि परेशानी से निजात पाने दफ्तरों से लेकर जनप्रतिनिधियों से गुहार लगाते रहे, लेकिन किसी ने उनकी नहीं सुनी। चुनाव के वक्त भी राजनीतिक दलों के प्रत्याशी, कार्यकर्ता गांव पहुंचे। उनसे बारंबार मिन्नतें की गई, भरोसा मिला कि चुनाव जीतते ही पहली प्राथमिकता पुलिया का निर्माण रहेगा।

चुनाव खत्म हो गए, लेकिन राजनीति के आश्वासन की भूल भुलैया में पहुंचे फरियाद इससे तभी  निकल पाते हैं जब वे दृढ़ प्रतिज्ञ होकर अपने बाहुबल पर भरोसा करते हों। सरकारी दफ्तर से लेकर विधायक और राजनैतिक दलों के नेताओं तक मिन्नतें कर जब कुछ हासिल नहीं हुआ तो गांव वालों का सब्र टूट गया। सबने मिलकर तय किया कि प्रशासन हो चाहे नेता, इनसे उम्मीद रखने से बेहतर अपनी परेशानी का हल खुद निकालनजे ही श्रेयकर होगा । आपसी सहमति बनी और खुदाई के लिए ट्रैक्टर आदि मशीनरी को काम पर लगाने 100-100 रूपए  हर व्यक्ति ने इकट्ठे किये ।

संसाधन की कमी कहें या दिमाग का जुगाड़, दोनों ही मामले में यह इको फ्रेंडली पुलिया समोहिं बल का बेहतरीन उदाहरण बनेगी ।वृक्षों के तनों से पिलर तैयार किए गए  और ताड़ वृक्षों की बहुलता वाले इस क्षेत्र में ताड़ के पत्तों से रपटा तैयार किया गया। गांव वाले दावा कर रहे हैं कि 3-4 दिन के भीतर जुगाड़ की यह पुलिया बनकर तैयार हो जाएगी। पुलिया कितनी मजबूत रहेगी, यह तो नहीं कहा जा सकता पर मजबूत मनोबल वाले धनगोल गांव के लोगों का यह सामूहिक परिश्रम सिस्टम का मुंह जरुर चिढ़ा रहा हैं।इनका प्रयास बरबस इस  शेर की याद ताजा कर जाता है –

फैसला होने से पहले मैं भला क्यों हार मानूं,
मैं अभी हारा नहीं हूं
जग अभी जीता नहीं है ।

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