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कोरबा। किसान विरोधी काले कानूनों को वापस लेने की मांग पर संयुक्त किसान मोर्चा के देशव्यापी रेल रोको आह्वान पर अखिल भारतीय किसान सभा से संबद्ध छत्तीसगढ़ किसान सभा द्वारा कल कोरबा में भी रेल रोकने की कार्यवाही की जाएगी। कोयला खनन प्रभावित गांवों में विस्थापन, पुनर्वास और नौकरी के सवालों को भी इस आंदोलन के दौरान बड़े पैमाने पर उठाया जाएगा।जानकारी छग किसान सभा के अध्यक्ष जवाहर सिंह कंवर और सचिव प्रशांत झा ने आज यहां संयुक्त रूप से दी। उन्होंने कहा कि तीनों कृषि कानूनों की वापसी सहित जब तक मोदी सरकार सी-2 लागत का डेढ़ गुना समर्थन मूल्य घोषित करने का कानून नहीं बनाती और इसी मूल्य पर किसानों द्वारा उत्पादित फसलों की सरकारी खरीद सुनिश्चित करने की गारंटी नहीं देती, तब तक किसानों का यह शांतिपूर्ण आंदोलन जारी रहेगा।किसान सभा के जिला सचिव श्री झा ने किसानों के आंदोलन के प्रति मोदी सरकार की संवेदनहीनता की तीखी आलोचना करते हुए लखीमपुर-खीरी नरसंहार में शामिल केंद्रीय मंत्री के इस्तीफे की भी मांग की है। उन्होंने कहा कि मंत्री के भड़काऊ भाषण के कारण ही इस नरसंहार की पृष्ठभूमि तैयार हुई। उन्होंने कहा कि कोरोना संकट के दौरान किये गए दमनात्मक हमले भी इस आंदोलन की धार को कुंद नहीं कर पाए और अब यह आंदोलन साझे मजदूर-किसान आंदोलन के रूप में विकसित हो रहा है। किसान सभा के जिला सचिव श्री झा ने यह भी कहा कि देशव्यापी रेल रोको आंदोलन को वामपंथी दलों सहित सभी गैर-भाजपा धर्मनिरपेक्ष ताकतों और ट्रेड यूनियनों का समर्थन मिलना इस आंदोलन के जरिए उठाये जा रहे मुद्दों की प्रासंगिकता को रेखांकित करता है। किसान नेता द्वय ने कहा कि मोदी सरकार जिन कॉर्पोरेटपरस्त नीतियों पर चल रही है। उसकी अभिव्यक्ति केवल राष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं हो रही है, बल्कि स्थानीय समस्याओं के और जटिल होने के रूप में भी प्रकट हो रही है। उन्होंने कहा कि कल का आंदोलन वनाधिकार कानून, मनरेगा, विस्थापन और पुनर्वास, आदिवासियों के राज्य प्रायोजित दमन और 5वीं अनुसूची और पेसा कानून जैसे मुख्य मुद्दों को केंद्र में रखकर ही किया जा रहा है।

PTI

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