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छत्तीसगढ़। छत्तीसगढ़ में बोरवेल में गिरे 11 साल के राहुल को आखिरकार सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया। उल्लेखनीय है कि इसके लिए सेना, एनडीआरएफ, पुलिस, जिला प्रशासन, स्वास्थ्य, बिजली विभाग सहित कुल 500 लोगों की टीम जुटी थी। पिछले कुछ वर्षो से लोगों में जागरूकता पैदा करने के प्रयासों के बावजूद ऐसे हादसे निरंतर सामने आना चिंतनीय है। सवाल है कि आखिर कब तब मासूम जानें इनमें फंसकर दम तोड़ती रहेंगी।
भूगर्भ जल विभाग के अनुमान के अनुसार देशभर में करीब 2.7 करोड़ बोरवेल हैं। बोरवेलों में बच्चों के गिरने की बढ़ती घटनाओं के मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट ने पहले वर्ष 2010 और फिर वर्ष 2013 में कुछ दिशा-निर्देश जारी किए थे, जिनके अनुसार, गांवों में बोरवेल की खोदाई सरपंच तथा कृषि विभाग के अधिकारियों की निगरानी में करानी अनिवार्य है, जबकि शहरों में यह कार्य ग्राउंड वाटर डिपार्टमेंट, स्वास्थ्य विभाग तथा नगर निगम इंजीनियर की देखरेख में होना जरूरी है।
अदालत के निर्देशानुसार बोरवेल खोदवाने के कम से कम 15 दिन पहले डीएम, ग्राउंड वाटर डिपार्टमेंट, स्वास्थ्य विभाग और नगर निगम को सूचना देना अनिवार्य है। बोरवेल की खुदाई से पहले उस जगह पर चेतावनी बोर्ड लगाया जाना और उसके खतरे के बारे में लोगों को सचेत किया जाना आवश्यक है। इसके अलावा ऐसी जगह को कंटीले तारों से घेरने और उसके आसपास कंक्रीट की दीवार खड़ी करने के साथ गड्ढों के मुंह को लोहे के ढक्कन से ढकना भी अनिवार्य है, लेकिन इन दिशा-निर्देशों का कहीं पालन होता नहीं दिखता। इनमें यह भी स्पष्ट किया गया है कि बोरवेल की खोदाई के बाद अगर कोई गड्ढा है तो उसे कंक्रीट से भर दिया जाए, लेकिन ऐसा न किया जाना हादसों का सबब बनता है।
ऐसे हादसे में न केवल मासूमों की जान जाती है, बल्कि रेस्क्यू आपरेशन पर अथाह धन, समय और श्रम भी नष्ट होते हैं। प्राय: होता यही है कि तेजी से गिरते भू-जल स्तर के कारण नलकूपों को चालू रखने के लिए कई बार उन्हें एक जगह से दूसरी जगह स्थानांतरित करना पड़ता है और पानी कम होने पर जिस जगह से नलकूप हटाया जाता है, वहां लापरवाही के चलते बोरवेल खुला छोड़ दिया जाता है।
कहीं बोरिंग के लिए खोदे गए गड्ढों या सूख चुके कुओं को बोरी, पालीथीन या लकड़ी के फट्टों से ढक दिया जाता है तो कहीं इन्हें पूरी तरह से खुला छोड़ दिया जाता है और अनजाने में ही कोई ऐसी अप्रिय घटना घट जाती है। न केवल सरकार, बल्कि समाज को भी ऐसी लापरवाहियों को लेकर चेतना होगा, ताकि भविष्य में फिर ऐसे दर्दनाक हादसे की पुनरावृत्ति न हो। देश में ऐसी स्वचालित तकनीकों की भी व्यवस्था करनी होगी, जो ऐसी विकट परिस्थितियों में तुरंत राहत प्रदान करने में सक्षम हों।