बलरामपुर।बलरामपुर जिले के राजपुर में युवाओं में तेजी से बढ़ रहा है नशे का चलन। आम आदमी इसकी गिरफ्त में जकड़ा हुआ है। आजकल नशे की गिरफ्त में सिर्फ युवक ही नहीं, बच्चे व नवयुवतियां भी आ रही है। राजपुर स्टेडियम ग्राउंड, गेउर नदी जंगल, बकसपुर रोड़, सागौन जंगल, यात्री बस स्टैंड सहित आसपास के क्षेत्रों में नशा का कारोबार चरम सीमा तक पहुच चुका है। स्टेडियम ग्राउंड सहित आसपास के क्षेत्रों में काफी मात्रा में कफ की सिरफ, नशीली दवाईयां, बियर व शराब की खाली बोतले देखने को मिल जाएगा।
युवा पीढ़ी क्यों करते हैं नशा
बच्चों में नशा करने वाले वे बच्चे होते हैं जो कबाड़ या पोलीथिन कचरों के ढेर से इकटठा करते हैं और उन्हें कबाडिय़ों के पास बेचने के बाद नशे के आइटम जैसे तंबाकू युक्त गुटके, बीड़ी, सिगेरट, शराब (कच्ची) बोनफिक्स टायर-टयूब के पंक्चर जोडऩे वाले एड्हेसिव या फिर खांसी की दवा टालुईन (इरेजर का घोल),कोरेक्स इस्तेमाल करते हैं। पूछने पर ये बच्चे बताते हैं कि नशा करने के बाद उन्हें खूब आनंद आता है हालांकि बच्चे नशे के नुक्सान से अनजान होते हैं। उन्हें तात्कालिक आनंद प्राप्त होता है उसमें वे मस्त रहते हैं। इसी तरह पढऩे वाले युवक एवं युवतियां जो सामान्य, गरीब व धनाढ्य परिवारों के होते हैं, तनाव, बेरोजगारी पैसे की कमी या फिर जीवन में आनंद उठाने के लिए नशे का इस्तेमाल करते हैं।
युवा पीढ़ी क्या लेते हैं नशे में
तंबाकू नशे के रूप में नींद की दवाइयां जैसे नाइटरसिट, एलेप्रेस्कस, काम्पोज, वेलियम प्राक्सम, विभिन्न सीरप में खांसी की दवाइयां बेनाड्रिल, कोरेक्स व एलोपैथिक दवाएं जिन्हें में असंतुलित मात्रा में ग्रहण कर मस्त हो जाते हैं जिससे इनका तनाव कम होता है और चिंता इत्यादि से मुक्ति मिल जाती है। बाद में यही आदत का रूप ले लेती है। इसके अलावा नशे के पदार्थ में शराब, गांजा, अफीम, रासायनिक ड्रग जैसे ब्राउन शुगर इत्यादि का प्रचलन भी खूब बढ़ा छोटी-बड़ी जगहों में इनके एजेंट आसानी से अपने ग्राहकों को उपलब्ध कराते हैं।
नशेडिय़ों में कौन-कौन से लक्षण उभरते हैं
नशा करने वाले में कुछ असामान्य लक्षण सामने आते हैं जैसे चिड़चिड़ाना, हकलाना, लोगों में अरूचि उत्पन्न होना, अध्ययन के प्रति विरक्ति, याददाश्त कमजोर होना, बात बात पर क्रोधित होना, रक्तचाप में असामान्य वृद्धि, अंगों का कंपकंपाना, नशा न लेने की स्थिति में बेचैनी बढऩा, हिंसात्मक व्यवहार, बहकी-बहकी बातें करना, नजरों के कमजोर होने जैसे लक्षण दिखाई देते हैं।
दुकानों में नशा आसानी से उपलब्ध है
दवा की दुकानों में बिना डॉक्टर की पर्ची दिखाए दवाइयां उपलब्ध हो जाती हैं। इसके लिए दुकानदार देने में सहमति दिखा देते हैं। इसका कारण यह है कि उन्हें अधिक से अधिक लाभ कमाना है क्योंकि नशेड़ी बेचैनी की स्थिति में दवा के रेट पर बहस नहीं करता बल्कि उपलब्धता की जल्दी में रहता है। वही झारखंड से पड़े पैमाने पर नशीली दवाइयां राजपुर में खप रहा है।
क्या कहता है विश्व स्वास्थ्य संगठन
विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि विश्व की करीब 95 प्रतिशत आबादी ऐसी है जो धूम्रपान विरोधी कानून अस्तित्व में न होने के कारण अब तक असुरक्षित है। कुछ संगठनो का कहना है कि यह खतरा उन देशों में और भी अधिक है जहां धूम्रपान या तंबाकू उत्पादों के उपयोग के लिए लोगों को हतोत्साहित नहीं किया जाता। तंबाकू संगठन का कहना यह भी है कि अगर समय रहते कदम नहीं उठाए गए तो 2030 तक हर साल 80 लाख लोग मौत के गाल में समाते रहेंगे हमें क्या करना चाहिए। माता-पिता अपने बच्चों के व्यवहार पर नजर रखें समय-समय पर उनके बस्ते या जेब की तलाशी लेते रहें। आस-पास के लोगों से भी उसके व्यवहार की जानकारी इकटठा करें।अगर बच्चा गुमसुम या बेचैन रहता है तो क्यों रहता है, इसका पता लगाने का प्रयास करें। आमतौर पर बच्चे आजकल सस्ते नशा जैसे पाउच में बिकने वाले गुटके, सिगरेट की तरफ ज्यादा आकर्षित होते हैं। उसके खान-पान पर नजर रखें तथा दिए गए जेब खर्च पर उसके खर्च करने के तरीके पर ध्यान दें। इन सबके बावजूद नशेबाज में सुधार न आए तो उसे नशामुक्त संस्था ले जाएं और चिकित्सकों की देखरेख में इलाज कराएं।