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नई दिल्ली, एजेंसी। फेफड़ों में घुसने की कोशिश कर रहे वायरस को नाक के जरिये वैक्सीन देकर रोका जा सकता है।तेजी से अपने रूप बदलने वाले कोरोना जैसे वायरस को रोकना एक बड़ी चुनौती है। अमेरिका में येल विश्वविद्यालय में इम्युनोबायोलाजी की प्रोफेसर अकिको इवासाकी का कहना है कि वायरस के नए म्युटेशन का मुकाबला हमारे फेफड़ों के प्रवेश द्वार पर किया जा सकता है। एक नए अध्ययन में अकिको ने पाया कि नाक के जरिये दी जाने वाली यानी नेजल वैक्सीन चूहों में श्वास नली के विभिन्न वायरसों के खिलाफ एक व्यापक कवच प्रदान करने में सफल रही, जबकि इंजेक्शन के जरिये दी जाने वाली वैक्सीन सुरक्षा देने में पूरी तरह सफल नहीं रही। अर्थात फेफड़े के प्रवेश मार्ग पर ही सबसे अच्छी इम्यून सुरक्षा दी जा सकती है और फेफड़ों में घुसने की कोशिश कर रहे वायरसों को रोका जा सकता है।नाक के भीतर की त्वचा पर ऊतकों की एक पतली परत होती है। इसे म्यूकस मेंब्रेन कहा जाता है। इस मेंब्रेन के पास अपना एक अलग इम्यून सुरक्षा सिस्टम होता है, जो हवा या खाद्य वस्तु के जरिये आने वाले रोगाणुओं को रोकता है। चुनौती मिलने पर ये अवरोधक ऊतक बी कोशिकाएं उत्पन्न करते हैं। ये कोशिकाएं इम्युनोग्लोबिन ए (आइजी ए) नामक एंटीबाडीज उत्पन्न करती हैं। ये एंटीबाडीज नाक, पेट और फेफड़ों की म्यूकस मेंब्रेन पर स्थानीय रूप से काम करती हैं, जबकि सामान्य टीके पूरे शरीर के हिसाब से सुरक्षा प्रदान करते है। आंतों के रोगाणुओं से निपटने में आइजी ए उत्पन्न करने वाली कोशिकाओं की सुरक्षात्मक भूमिका भलीभांति स्थापित हो चुकी है। न्यू यार्क में माउंट सिनाई स्थित आइकान स्कूल आफ मेडिसिन के शोधकर्ताओं ने चूहों में इस तरह का एक प्रोटीन-आधारित वैक्सीन का परीक्षण किया। उन्होंने चूहों के एक समूह को सामान्य इंजेक्शन के जरिये यह वैक्सीन दी, जबकि दूसरे समूह को नाक के जरिये यह वैक्सीन पहुंचाई गई। दोनों समूहों को इन्फ्लुएंजा वायरसों की विविध किस्मों से एक्सपोज किया गया। उन्होंने पाया कि जिन चूहों को नाक से वैक्सीन दी गई वे इंजेक्शन लेने वाले चूहों की तुलना में इन्फ्लुएंजा से ज्यादा सुरक्षित थे। इसके अलावा नाक से दी गई वैक्सीन द्वारा उत्पन्न एंटीबाडीज ने फ्लू की विविध किस्मों के खिलाफ सुरक्षा प्रदान की, जबकि वैक्सीन सिर्फ एक किस्म से बचाव के हिसाब से विकसित की गई थी। सिर्फ नेजल वैक्सीन ही फेफड़ों में आइजी ए एंटीबाडीज पहुंचाने में कामयाब रही। येल विश्वविद्यालय की टीम अब कोरोना की विभिन्न किस्मों केखिलाफ नाक के जरिये दी जाने वाली वैक्सीन का परीक्षण कर रही है। यदि यह वैक्सीन मनुष्यों में सुरक्षित और कारगर सिद्ध होती है तो इसका प्रयोग वर्तमान टीकों के साथ मिलाकर किया जा सकता है। इससे संक्रमण के स्त्रोत पर इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाने में मदद मिलेगी।

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