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नई दिल्ली, जेएनएन। देश के प्रधानमंत्री के तौर पर जनता की अपेक्षाओं का भार और भाजपा के शीर्षस्थ नेता के रूप में राज्यों में फिर से पार्टी को सत्ता में लाने की चुनौती, लेकिन चेहरे पर न तो थकान, न ही दबाव। चुनावी रैलियों के लिए तैयार होकर प्रधानमंत्री आवास के लान में बैठे नरेन्द्र मोदी पूरे विश्वास के साथ कहते हैं- विकास हर सीमा को तोड़ देता है। गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में अपने काम के भरोसे मैंने इसे महसूस किया था। अब पूरे देश में जनता विकास के साथ खड़ी है। उत्तर प्रदेश समेत दूसरे राज्यों में जनता के अपार समर्थन का विश्वास जताते हुए प्रधानमंत्री कहते हैं कि परिवार केंद्रित पार्टियां खुद का सोचती हैं। भाजपा पूरे समाज का और देश का सोचती है। ऐसे दल भाजपा का मुकाबला नहीं कर सकते। दैनिक जागरण के राष्ट्रीय ब्यूरो प्रमुख आशुतोष झा से बातचीत का मुख्य अंश—स्मार्टसिटी मिशन बहुत गति नहीं पकड़ पाया। शहरीकरण की चुनौतियों को लेकर सरकार कितनी गंभीर है? क्या राज्यों के भरोसे शहरों का विकास संभव है?
आपने दो प्रश्न पूछे हैं। पहले मैं दूसरे प्रश्न का उत्तर दूंगा क्योंकि यह संकट से भरा प्रश्न है। राज्यों की विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका है, इसमें कोई संदेह नहीं है। हमारे संघीय ढांचे में राज्य और केंद्र मिल कर लोगों के हित के लिए काम करते हैं। मैं स्वयं एक राज्य का मुख्यमंत्री रहा हूं तो इस बात से परिचित हूं कि राच्य शहरी विकास के लिए कितना कुछ कर सकते हैं। साबरमती रिवरफ्रंट हो या बीआरटीएस, गुजरात में शहरी विकास का कार्य तो मुख्यत: राज्य सरकार ने ही किया था न? इसी तरह, आप उत्तर प्रदेश के शहरों की बदलती तस्वीर को देखें। एक उदाहरण के तौर पर, 2017 से पहले यूपी के सिर्फ दो शहरों में मेट्रो सुविधा थी और आज पांच शहरों में यह सुविधा है। कानपुर ने सबसे अधिक तेजी से बनने वाली मेट्रो देखी है। पांच और शहरों में मेट्रो का काम बहुत ही तेजी से चल रहा है। आज यूपी देश का ऐसा राज्य बन रहा है जहां पांच इंटरनेशनल एयरपोर्ट होने वाले हैं। पूर्वाचल में कुशीनगर एयरपोर्ट तैयार हो चुका है और पश्चिमी यूपी में जेवर में इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर काम चल रहा है। यानी पूरा यूपी इंटरनेशनल कनेक्टिविटी से जुड़ रहा है। इसी प्रकार यूपी में एक्सप्रेस-वे का जाल बिछाया जा रहा है।
पूर्वाचल एक्सप्रेस-वे और मेरठ एक्सप्रेस-वे पूरे हो चुके हैं। बुंदेलखंड एक्सप्रेस-वे जल्द ही पूरा होने वाला है। बाकी एक्सप्रेस-वे पर तेजी से काम चल रहा है। यह तभी हो पाया है, जब राज्य ने पहल की और केंद्र ने समर्थन किया। अब आप स्मार्ट सिटी की बात करें तो सबसे पहले मैं यह बता दूं कि हमारा लक्ष्य शहरों में स्मार्ट सुविधाएं विकसित करना है। ये शहर पुराने हैं, लेकिन उनमें सुविधाएं स्मार्ट हों, यह प्रयास है। इस समय दो लाख करोड़ से भी अधिक के प्रोजेक्ट पर काम चल रहा है और कई तो पूरे भी होने वाले हैं। तो यह कहना कि कार्यो ने गति नहीं पकड़ी, सही नहीं है। हमारी इस योजना के तहत, हमने तीन मुख्य बातों पर बल दिया। पहला – मौजूदा शहरी सुविधाओं में सुधार। दूसरा – इंफ्रास्ट्रक्चर को अपग्रेड करना। और तीसरा – ग्रीनफील्ड प्रोजेक्ट यानी नये प्रोजेक्ट का निर्माण। आप यह जानना चाहते थे कि शहरी विकास को लेकर हम कितने गंभीर हैं तो मैं आपको बता दूं कि हमारे लिए शहरी विकास का मतलब है कि गरीब और मिडिल क्लास का जीवन आसान कैसे हो, शहर में गरीबों को रोजी-रोटी के बेहतर अवसर कैसे मिलें। दुनिया में ऐसे ही प्रविधानों से जीवन स्तर बेहतर हुआ है।
दुर्भाग्य की बात है कि आजादी से लेकर 2014 तक बहुत ही कम ऐसे नये शहर बने, जहां अवसर पैदा होते हों। कुछ शहर बढ़े जरूर हैं, पर टियर-3 से टियर-2 बनने का सफर, या टियर-2 से टियर-1 बनने का सफर जिस गति से होना चाहिए था, उस गति से नहीं हुआ। अब हम उस पर भी विशेष ध्यान दे रहे हैं। इसी सिलसिले में आपने देखा होगा, हमारे इस वर्ष के बजट में हमने विशेष रूप से सुनियोजित और सस्टेनेबल शहरी विकास पर कई बड़ी घोषणाएं की हैं।
-ग्रामीण विकास में बुनियादी सुविधाओं के लिए केंद्रीय योजनाओं का लाभ लोगों तक पहुंचने लगा है, लेकिन ग्रामीण रोजगार की हालत में सुधार कैसे संभव होगा?
-ग्रामीण रोजगार को लेकर आपका प्रश्न उचित है। इस पर एक बात सोचने वाली है – गांवों में रोजगार के अवसर तभी बढ़ाए जा सकते हैं जब गांव में इसके लिए सुविधाएं भी उपलब्ध कराई जा सकें। गांव-गांव तक सड़कें पहुंच रही हैं। प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के अंतर्गत 90 प्रतिशत से भी अधिक गांवों को कनेक्टिविटी मिली है। प्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत दो करोड़ 17 लाख से भी अधिक आवास ग्रामीण क्षेत्र में बनाए गए हैं। जिससे लोगों के जीवन स्तर में काफी सुधार आया है। हम छह लाख से च्यादा गांवों में ओएफसी केबल के अंतर्गत हाई स्पीड इंटरनेट की सुविधा पहुंचाने का लक्ष्य लेकर काम कर रहे हैं। इस प्रक्रिया में हजारों लोग तरह-तरह से जुड़ते हैं। हमने तीन लाख से अधिक कामन सर्विस सेंटर गांव-गांव में बनाए हैं। इनमें गांव के ही लाखों बेटे-बेटियों को रोजगार मिला है।आज गांव के लोग इन्हीं सेंटर पर आनलाइन सुविधाएं तेजी से प्राप्त कर पा रहे हैं। इसके साथ-साथ, आत्मनिर्भर रोजगार योजना, श्यामा प्रसाद मुखर्जी रुर्बन मिशन, आवास योजना, स्वच्छ भारत, गोबरधन, दीनदयाल अंत्योदय योजना जैसी अनेकों योजनाएं हैं जो आर्थिक अवसर पैदा करने में अति सहायक हैं। मैं समझता हूं कि इन सभी प्रयासों से हम एक साथ कई लक्ष्यों को प्राप्त कर पाते हैं। हां, यह बात भी है कि रोजगार के स्तर में भी वृद्धि होनी चाहिए, इसीलिए हम लोग कौशल विकास के प्रयासों पर लगातार बल दे रहे हैं, जिसके अंतर्गत ग्रामीण कौशल्य योजना जैसे हमारे प्रयास भी सहायक हो रहे हैं, जो जनता के सामने साफ है।
-पिछले दिनों में विपक्ष में नेतृत्व को लेकर होड़ मची हुई है, कांग्रेस, तृणमूल, अब टीआरएस भी लाइन में है, इसे कैसे देखते हैं?
देखिए, लोकतंत्र में स्पर्धा बहुत स्वाभाविक है, लेकिन अब देश का नागरिक राजनीतिक दलों का मूल्यांकन उनकी कोरी बातों के आधार पर, उनके बड़बोलेपन पर या उनकी घोषणाओं पर नहीं करता। मतदाता का मूल्यांकन ठोस हकीकतों पर होता है। दूसरा, आपने जितनी पार्टियों का नाम लिया उनके लिए लोकतंत्र की परिभाषा अलग है। लोकतंत्र की बात करते हुए हमेशा कहा जाता है- गवर्नमेंट आफ द पीपल, बाई दल पीपल, फार द पीपल यानी जनता का, जनता के लिए और जनता द्वारा शासन, लेकिन परिवारवादी पार्टियां कहती हैं- परिवार का, परिवार के लिए, परिवार द्वारा शासन। और इसलिए भारत जो कि एक आकांक्षी समाज है, भारत का युवा जो सपनों को पूरा करने के लिए जी जान से जुटा हुआ है वह ऐसी किसी बात को स्वीकार नहीं करना चाहता है। आपको यह बात भी ध्यान में रखनी होगी कि ऐसे प्रयास 2019 में भी हुए थे और गाजे बाजे के साथ हुए थे। चुनाव नतीजे आने तक इन लोगों का जो इकोसिस्टम है, जो इनके गीत गाने वाले लोग हैं, उन लोगों ने यह सिद्ध कर दिया था कि मोदी की सरकार जा रही है, लेकिन देश की जनता ने इन लोगों को आइना दिखा दिया। ये लोग हर बार यही प्रयास करते हैं, इस बार भी कर लेने दीजिए।