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कोलकाता। इस साल की शुरुआत में बंगाल समेत पांच राज्‍यों के विधानसभा चुनाव में प्रचार पर पार्टियों ने पानी की तरह पैसा बहाया है। बंगाल में प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में लौटने वाली तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने प्रदेश में विधानसभा चुनाव में चुनाव प्रचार पर 154.28 करोड़ रुपये खर्च किए। वहीं, भाजपा ने पांचों राज्यों के विधानसभा चुनाव में प्रचार पर कुल 252 करोड़ रुपये खर्च किए। खास बात यह रही कि इस राशि का 60 प्रतिशत हिस्सा अकेले बंगाल में चुनाव प्रचार पर खर्च किया गया।

भाजपा ने चुनाव आयोग को चुनाव में किए गए खर्च का जो ब्यौरा सौंपा है, इसके मुताबिक खर्च किए गए 252,02,71,753 रुपये में से 151 करोड़ रुपये बंगाल विधानसभा चुनाव के लिए खर्च किए गए थे। यह विधानसभा चुनावों में प्रचार पर खर्च की गई कुल रकम का आधे से भी ज़्यादा हिस्सा है। गौरतलब है कि यहां भाजपा ने ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ़ अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी। पार्टी ने यहां 200 से ज़्यादा सीटें हासिल करने का लक्ष्य रखा था, लेकिन सिर्फ़ 77 सीटें ही जीत सकीं। वहीं, टीएमसी लगातार तीसरी बार बंगाल में सत्ता में वापसी की। भाजपा ने जो ब्यौरा दिया है उसके अनुसार बंगाल के अलावा पार्टी ने असम चुनाव में 43.81 करोड़ रुपये, पुडुचेरी में 4.79 करोड़ रुपये, तमिलनाडु में 22.97 करोड़ व केरल में 29.24 करोड़ रुपये चुनाव प्रचार पर खर्च किए थे।
बंगाल में पहली बार भाजपा बनी मुख्य विपक्षी पार्टी
बंगाल में इतना खर्च करने के बाद भी पार्टी ममता बनर्जी को सत्ता में आने से नहीं रोक सकी। यहां तृणमूल कांग्रेस लगातार तीसरी बार सरकार बनाने में कामयाब रही। हालांकि भाजपा के लिए राहत की बात ये रही कि वह बंगाल में वह पहली बार मुख्य विपक्षी पार्टी बनने में कामयाब रही। यहां वाम दलों और कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया।
असम में दोबारा मिली सत्ता, पुडुचेरी में भी बनाई सरकार
असम में भाजपा ने सत्ता ने दोबारा वापसी की। वहीं पुडुचेरी में पार्टी पहली बार गठबंधन की सरकार बनाने में कामयाब रही। यहां कांग्रेस को सत्ता गंवानी पड़ी। तमिलनाडु में भाजपा को सिर्फ 2.6 प्रतिशत वोट मिले। दक्षिण के इस राज्य में द्रविड़ मुनेत्र कषगम (डीएमके) अपने चिर प्रतिद्वंद्वी ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कषगम (एआइएडीएमके) से सत्ता छीनने में सफल रही। यहां भाजपा और एआइएडीएमके मिलकर चुनाव लड़ रहे थे। केरल में एक बार फिर वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) अपनी सत्ता बचाने में सफल रहा। यहां भाजपा को कोई खास सफलता हाथ नहीं लगी। कांग्रेस भी सत्ता में वापसी का सपना पूरा नहीं कर सकी।

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