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नई दिल्ली, पीटीआइ एजेंसी। यूक्रेन में युद्ध और वैश्विक स्तर पर मांग बढ़ने से ऊर्जा की कीमतों में उछाल आया है, जिसका भारत पर बड़ा असर पड़ा है। 31 मार्च को समाप्त हुए वित्तीय वर्ष (2021-22) में भारत का कच्चे तेल का आयात बिल लगभग दोगुना होकर 119 अरब डॉलर हो गया है। तेल मंत्रालय के पेट्रोलियम योजना और विश्लेषण सेल (पीपीएसी) के आंकड़ों के अनुसार, दुनिया के तीसरे सबसे बड़े तेल खपत करने वाले और आयात करने वाले देश भारत ने 2021-22 (अप्रैल 2021 से मार्च 2022) में 119.2 बिलियन अमरीकी डॉलर खर्च किए जबकि पिछले वित्तीय वर्ष में 62.2 बिलियन अमरीकी डॉलर खर्च किए थे।सिर्फ मार्च में ही 13.7 बिलियन अमरीकी डॉलर खर्च किए हैं। यह तब हुआ, जब मार्च में तेल की कीमतें 14 साल के उच्च स्तर पर पहुंच गईं। पिछले साल के इसी महीने में 8.4 अरब अमेरिकी डॉलर खर्च किए गए थे। बता दें कि तेल की कीमतों में जनवरी से वृद्धि शुरू हुई और मार्च की शुरुआत में करीब 140 अमरीकी डॉलर प्रति बैरल के आंकड़े तक पहुंच गईं। हालांकि, कीमतों में तब से गिरावट आई और अभी यह 106 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल के आसपास है।
PPAC के अनुसार, भारत ने 2021-22 में 212.2 मिलियन टन कच्चे तेल का आयात किया, जो पिछले वर्ष 196.5 मिलियन टन था। हालांकि, यह 2019-20 में 227 मिलियन टन के पूर्व-महामारी आयात से कम है। 2019-20 में तेल आयात पर खर्च 101.4 अरब अमेरिकी डॉलर था। बता दें कि आयातित कच्चे तेल को ऑटोमोबाइल और अन्य उपयोगकर्ताओं को बेचे जाने से पहले तेल रिफाइनरियों में पेट्रोल और डीजल जैसे वैल्यू-एडेड प्रोडक्ट्स में बदला जाता है। भारत कच्चे तेल की जरूरतों को पूरा करने के लिए आयात पर 85.5 प्रतिशत निर्भर है लेकिन देश के पास सरप्लस रिफाइनिंग कैपेसिटी है और यह कुछ पेट्रोलियम उत्पादों का निर्यात करता है। हालांकि, रसोई गैस एलपीजी का उत्पादन कम है, जिसे सऊदी अरब जैसे देशों से आयात किया जाता है।देश ने 2021-22 में 202.7 मिलियन टन पेट्रोलियम उत्पादों की खपत की, जो पिछले वित्त वर्ष में 194.3 मिलियन टन थी। हालांकि, यह 2019-20 में पूर्व-महामारी के दौरान 214.1 मिलियन टन की मांग से कम है। वित्त वर्ष 2021-22 में पेट्रोलियम उत्पादों का आयात 40.2 मिलियन टन रहा, जिसकी कीमत 24.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर है। दूसरी ओर, 42.3 बिलियन अमरीकी डॉलर में 61.8 मिलियन टन पेट्रोलियम उत्पादों का निर्यात भी किया गया।

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