नई दिल्‍ली। मणिपुर के नोनी जिला स्थित रेलवे निर्माण स्थल के पास हुए भूस्खलन में मरने वालों की संख्या बढ़कर 37 हो गई है। लापता अन्य लोगों की खोज के लिए अभी अभियान जारी है। चूंकि भारत में भूस्खलन का पूर्वानुमान लगाने के लिए आवश्यक परिष्कृत चेतावनी तंत्र का अभाव है। इस वजह से देश में यह समस्या और जटिल हो जाती है। भूस्खलन के लिए संवेदनशील माने जाने वाले देश के किसी भी हिस्से को ले लें, हर जगह जल निकासी के इंतजाम खस्ताहाल हैं। इससे जान-माल की क्षति का खतरा और बढ़ जाता है।

भारी बरसात की वजह से भूस्खलन होते हैं। मानवजनित निर्माण कार्यों के कारण इसकी आशंका काफी बढ़ जाती है। खेती या किसी अन्य कार्य के लिए पहाड़ी सतह को समतल करने के लिए इस्तेमाल होने वाली भारी मशीनें भी चट्टानों के खिसकने का कारण बनती हैं। सरकार ने ऐसे क्षेत्रों की पहचान की है जहां बार-बार भूस्खलन होते हैं। उनका नक्शा भी खींचा गया है।

राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने भूस्खलन और बर्फ की चट्टानों के खिसकने की घटनाओं के प्रबंधन से जुड़े विस्तृत दिशा-निर्देश बनाए हैं, ताकि इन आपदाओं की विनाशक क्षमता को नियंत्रित किया जा सके। भूस्खलन के जोखिम को कम करने वाले उपायों को संस्थागत रूप देने की कोशिश हो रही है, जिससे इस प्राकृतिक आपदा से होने वाली क्षति को कम किया जा सके।

भूस्खलन रोकने के लिए आवश्यक कार्यों को समयबद्ध तरीके से पूरा करने के लिए कई उपाय बताए गए हैं। इसमें कुछ को तो रोजाना तौर पर आजमाने की बात कही गई है। मसलन तूफानी बारिश के पानी को ढलानों से दूर रखा जाए। नालियों की नियमित तौर पर सफाई करके उनमें से प्लास्टिक, वृक्षों के पत्ते और दूसरे कचरे निकाले जाएं।

भूस्खलन की चेतावनी देने वाले संकेतों के प्रति जागरूक और सतर्क समाज इस चुनौती से निपटने में अहम योगदान कर सकता है। इनके अलावा ज्यादा से ज्यादा पौधारोपण जिनकी जड़ें मिट्टी की पकड़ को मजबूत बनाती हैं, चट्टानों के गिरने के सर्वाधिक संभावित क्षेत्रों की पहचान और चट्टानों में आने वाली दरारों की निगरानी जैसे उपाय भी बड़े कारगर साबित हो सकते हैं।

अगर नदी का पानी मटमैला हो तो उससे भी पता चल जाता है कि ऊपरी हिस्से में कहीं भूस्खलन हुआ है। किसी भी ढलान के उस समतल हिस्से पर जहां बहाव के वेग को कम किया जा सकता है, उसे सुरक्षित रखना चाहिए और जब तक नए पौधारोपण की तैयारी पूरी न हो चुकी हो तब तक पेड़ों की कटाई नहीं होनी चाहिए। भूस्खलन के प्रबंधन के लिए सभी संबंधित पक्षों के बीच एक समन्वित और बहुआयामी नजरिये की जरूरत होती है जिसे आवश्यक जानकारी और संस्थागत एवं वित्तीय सहायता मुहैया कराकर कारगर बनाया जा सकता है।

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