मसूरी एजेंसी। पहाड़ों की रानी मसूरी में रविवार को उस वक्‍त हैरतअंगेज माहौल देखने को मिला, जब एक साथ करीब 20 हजार लोग मछली पकड़ने के लिए नदी में कूद पड़े। ऐसा अनुमान है कि इस दौरान लगभग 20 से 25 हजार किलो मछलियां पकड़ी गयी होंगी। मसूरी से आये सैकड़ों पर्यटक भी इस अनूठी परंपरा के प्रत्यक्षदर्शी बने।

20 से 25 हजार किलो मछलियां पकड़ने का अनुमान

दरअसल, यमुना नदी की सहायक अगलाड़ नदी में रविवार को ऐतिहासिक राजमौण मेला धूमधाम से मनाया गया। कोविड काल की वजह से दो साल के अंतराल के बाद मनाये गये राजमौण मेले में टिहरी जिले के जौनपुर विकास खंड, देहरादून के जौनसार, उत्तरकाशी जिले के गोडर-खाटर क्षेत्र, विकासनगर व मसूरी सहित आसपास के लगभग 15 से 20 हजार लोगों ने सामूहिक मछली पकड़ने के इस अनूठे त्योहार में भाग लिया और ऐसा अनुमान है कि लगभग 20 से 25 हजार किलो मछलियां पकड़ी गयी होंगी। अनूठे मौण मेले में मसूरी से आये सैकड़ों पर्यटक भी इस दौरान मौजूद रहे।

लगभग 157 सालों से मनाया जाता रहा मौण मेला

प्रत्येक साल जून के अंतिम सप्ताह में अगलाड़ नदी में मछली पकड़ने का सामूहिक त्योहार मौण मेला टिहरी रियासत काल से मनाया जाता रहा है। बुजुर्ग ग्रामीणों का कहना है कि मौण मेला लगभग 157 सालों से मनाया जाता रहा है। लेकिन वर्ष 2020 और 2021 में कोविड संक्रमण के कारण नहीं मनाया गया। दो साल के अंतराल के बाद रविवार को मनाये गये मौण मेले को लेकर ग्रामीणों में भारी उत्साह रहा।

मेले में देखने को मिलती है भाईचारे की मिसाल

रियासत काल में मौण मेले की सुरक्षा का जिम्मा टिहरी नरेश द्वारा वन विभाग को सौंपा जाता था। लेकिन मौण मेला एक स्वस्फूर्त मेला है जिसमें लड़ाई झगड़े की कोई गुंजाइश नहीं रहती है, क्योंकि सभी ग्रामीण मछली पकड़ने के बाद शीघ्र अपने गांवों को लौट जाते हैं। इतने बड़े मेले में भाईचारे की ऐसी मिसाल शायद ही कहीं देखने को मिलती होगी।

टिमरू की छाल से बना पाउडर डालकर मछलियों को किया जाता है बेहोश

मछलियों को बेहोश करने के लिये औषधीय पादप टिमरू की छाल से बने महीन पाउडर का प्रयोग किया जाता है। जिसको तैयार करने की जिम्मेदारी अलग अलग पट्टियों की होती है। इस बार सिलवाड़ पट्टी के खरसोन, खरक, सुरांसू, बणगांव, जैद्वार तल्ला व मल्ला, टटोर, फफरोग, चिलामू, पाब, कोटी, मसोन व संड़ब गांव के ग्रामीणों ने टिमरू पावडर तैयार किया था।

रविवार को दिल्ली-यमुनोत्री राष्ट्र्रीय राजमार्ग 507 के अगलाड़ पुल से लगभग चार किमी ऊपर मौण कोट नामक स्थान पर सुबह से ही पांतीदार गांवों के ग्रामीण टिमरू पावडर लेकर एकत्रित होने शुरू हो गये थे। सभी पांतीदारों की मौजूदगी में विधिवत पूजा अर्चना व टिमरू पावडर का टीका करने के बाद नदी में टिमरू पावडर डालते ही ग्रामीण नदी में मछलियां पकड़ने कूद पडे़ और लगभग चार किमी तक मछलियां पकड़ते रहे। नदी के दोनों छोरों पर अनेक ग्रामीण व पर्यटक मछलियां पकड़ रहे ग्रामीणों को देखते रहे।

ज्यादा पायी जाती हैं ट्राउट प्रजाति की मछलियां

अगलाड़ नदी में ट्राउट मछलियों के लिये अनुकूल वातावरण पाया जाता है। इसलिये यहां पर ट्राउट प्रजाति की मछलियां ज्यादा पायी जाती हैं। पूर्व में मौण मेलों में जैव विविधता बोर्ड के वैज्ञानिक भी अगलाड़ नदी में मौजूद रहते थे। ऐसी मान्यता है कि साल में एक बार मनाये जाने वाले इस राजमौण मेले से नदी की काई आदि की सफाई भी हो जाती है और पीछे से बहकर आ रहे ताजे पानी में जिन मछलियों को ग्रामीण पकड़ नहीं पाते, वह ताजे पानी से फिर से जीवित हो उठती हैं।

पूर्व में अगलाड़ नदी के ऊपरी हिस्सों में घुराणू का मौण तथा मंझमौण नाम से दो अन्य मौण मेले भी आयोजित होते थे जो सत्तर व अस्सी के दशक तक आते आते इतिहास के गर्त में समा गये। अब नदी के अंतिम छोर पर सिर्फ राजमौण का आयोजन होता है, जिसको भीण्ड का मौण भी कहा जाता है। क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों द्वारा उत्तराखण्ड राज्य बनने के बाद इस राजमौण को राजकीय मेला घोषित करने की सरकार से मांग की जाती रही है, लेकिन सरकार द्वारा इस ओर गंभीरता से कोई आश्वासन नहीं मिला है।

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