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नई दिल्ली, एजेंसी।हिंदू नववर्ष पर राजस्थान के करौली में सांप्रदायिक हिंसा का जो सिलसिला कायम हुआ था और जो रामनवमी एवं हनुमान जन्मोत्सव के अवसर पर भी देश के कई हिस्सों में देखने को मिला, वह समाप्त होने का नाम नहीं ले रहा है। इसका ही प्रमाण है गत दिवस राजस्थान के जोधपुर में दो समुदायों के बीच हिंसक झड़प। इस झड़प में कई पुलिसकर्मी भी घायल हुए और शहर के कई क्षेत्रों में कफ्र्यू लगाने के साथ इंटरनेट सेवा भी निलंबित करनी पड़ी। चंद दिनों पहले ऐसा ही कुछ पटियाला में भी करना पड़ा था।जोधपुर की हिंसा इसलिए चिंताजनक है, क्योंकि पुलिस एक प्रतिमा पर अपने-अपने धार्मिक ध्वज लगाने के दो पक्षों के विवाद को दूसरे दिन भी नहीं थाम सकी और ईद, अक्षय तृतीया एवं परशुराम जन्मोत्सव के दिन उसने और अधिक उग्र रूप धारण कर लिया। इस दौरान पत्थरबाजी भी की गई और पुलिस को खास तौर पर निशाना बनाया गया।
यह एक खतरनाक चलन है कि सांप्रदायिक टकराव की घटनाओं में अब पुलिस को विशेष रूप से निशाना बनाया जाने लगा है। खरगोन, दिल्ली, हुबली आदि के बाद जोधपुर में भी ऐसा हुआ। इसका मतलब है कि शांति व्यवस्था के साथ कानून एवं व्यवस्था को चुनौती देने वाले तत्वों का दुस्साहस बढ़ता जा रहा है। इस दुस्साहस का दमन किया जाना आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य है। चूंकि करीब-करीब हर त्योहार पर तनाव पैदा करने का जो काम हो रहा है, वह दुर्योग कम, किसी गहरी साजिश का हिस्सा अधिक नजर आता है, इसलिए पुलिस और खुफिया एजेंसियों को कहीं अधिक सतर्क रहने की आवश्यकता है। इसलिए और भी, क्योंकि सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं को लेकर देश को बदनाम करने का भी अभियान छिड़ा हुआ है।
सांप्रदायिक परिवेश खराब करने वाले तत्वों के खिलाफ कठोर कार्रवाई प्राथमिकता के आधार पर की जानी चाहिए और वह भी बिना किसी भेदभाव के। केवल ऐसे तत्वों की गिरफ्तारी ही आवश्यक नहीं है। इसी के साथ यह भी सुनिश्चित किया जाए कि उन्हें यथाशीघ्र सजा भी मिले। ऐसा करके ही ऐसे तत्वों को सही संदेश दिया जा सकता है। अब यह भी देखने को मिल रहा है कि ऐसे तत्व आस्था के नाम पर सार्वजनिक स्थलों पर शक्ति प्रदर्शन करने लगे हैं। इसे भी रोकना होगा।

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