बलरामपुर.बलरामपुर जिले के राजपुर नगर पंचायत वार्ड क्रमांक 4 में संचालित पार्वती पब्लिक स्कूल के संचालक व शिक्षक स्कूल बंद कर 3  बजे अपने घर चले जा रहे हैं. छोटे छोटे नन्हे बच्चे स्कूल के बाहर सड़क पे अभिभावक के इंतजार में रो रहे हैं. स्कूल के सामने सड़क पीछे कुआं  कभी भी बड़ी घटना घट सकती है. जिम्मेदार बेपरवाह बने हुए हैं.

राजपुर नगर पंचायत वार्ड क्रमांक 4 में संचालित पार्वती पब्लिक स्कूल के संचालक व शिक्षक स्कूल बंद कर 3  बजे अपने घर चले गए. 10-12 बच्चें स्कूल के बाहर सड़क पर रोते दिखाई दिए स्कूल के सामने एनएच 343 सड़क और पीछे की ओर कुआं है. करीब 5 बजे सभी के अभिभावक अपने बच्चें को लेकर अपने घर चले गए एक ग्राम अमदरी निवासी एलकेजी की बच्ची अंचल यादव पिता मंगलेश्वर यादव अभिभावक के इंतजार में रोते हुए सड़क पे दिखाई पड़ी स्कूल के सामने कपड़ा दुकान के संचालक मक्खनलाल अग्रवाल ने बच्ची को अपने दुकान में बैठा कर बिस्किट खिला कर बच्ची की आईडी कार्ड में नंबर देख अभिभावक को फोन कर बुलाया उसके बाद बच्चे अपने घर गई.

बलरामपुर जिले में छत्तीसगढ़ माध्यमिक शिक्षा मंडल द्वारा आंख मूंदकर निजी स्कूलों का मान्यता बाटी जा रही है. प्राइवेट स्कूल के नाम पर अनाप-शनाप फीस लेकर शिक्षा विभाग के द्वारा धज्जियां उड़ाई जा रही है स्कूल अव्यवस्था के बीच संचालित हो रही है. राजपुर विकासखंड अंतर्गत 59 वैध- अवैध रूप से निजी स्कूल संचालित है स्कूल बसों में सीसी टीवी तक नही है. बलरामपुर जिले में निजी स्कूल वाले शिक्षा को व्यापार बना दिए है.शिक्षा के नाम पर पालकों को लूटा जा रहा है.पाकल अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा के लिए स्कूल बस में बैठाकर स्कूल भेज रहे है. प्रशासन के द्वारा प्रबंधन के ऊपर किसी प्रकार की करवाई नहीं करने से प्रबंधन की हौसला बुलंद है.कई जर्जर एस्बेस्टर सीट की मकान पे निजी स्कूल संचालित है. 

बलरामपुर जिले सहित राजपुर में कई प्राइवेट स्कूल संचालकों के पास खुद का भवन तक नहीं हैं.अनुभवी शिक्षक भी नहीं है. पुस्तकालय, खेल मैदान, प्रसाधन, फर्नीचर, विद्युत व्यवस्था, पेयजल, लैब या लाइब्रेरी जैसी सुविधाओं से स्कूल महरूम है. अधिकारियों की मेहरबानी की बदौलत बिना रोक-टोक के स्कूल से धड़ल्ले के साथ संचालित है.पालको से स्कूल में अनाप-शनाप शुल्क लिया जा रहा है. विद्यार्थियों को स्कूल से कापी, बेल्ट, मोजे, टाई खरीदने बाध्य करते हैं.मानवाधिकार आयोग के निर्देश के बाद स्कूल शिक्षा विभाग ने ऐसे स्कूलों के खिलाफ छापामार कार्रवाई करने का निर्णय नहीं लिया.बगैर देखे स्कूल का मान्यता को दे दिया गया है.मगर इस प्रकार के नियमों को सुविधाओं को अभाव में बच्चों का भविष्य अंधकार में होता नजर आ रहा है. कई स्कूलो में बगैर बीएड, बीटीआई, डीएड के अनुभवी शिक्षकों के द्वारा छात्र-छात्रों को पढ़ाया जा रहा है. स्कूल में छात्र -छात्राओं को बैठने से लेकर अन्य सुविधाओं का पूर्ण अभाव है.छोटे बच्चों के साथ 16 से 18 वर्ष के छात्र-छात्राओं को भी बैठा कर पढ़ाया जा रहा है. स्कूल में बच्चों के लिए बाथरूम, शौचालय, प्रयोगशाला, कंप्यूटर की व्यवस्था तक नहीं है.स्कूल में प्रतिमाह वाहन किराया व स्कूल फीस भी अनाप-शनाप लिया जा रहा है.इसके बाद भी स्कूल में पीने तक कि पानी की व्यवस्था नहीं है.कई स्कूल के सामने मेन सड़क है कभी भी बड़ी घटना घट सकती है.छोटे बच्चों के साथ कभी गंभीर घटनाओं की आशंका बनी रहती है. स्कूल का मान्यता शासन द्वारा निर्धारित मापदंड, पंजीयन, नवीनीकरण के लिए इसका पालन अधिकारियों द्वारा नहीं किया जा रहा है. जिससे शासन के द्वारा शिक्षा का अधिकार कानून की धज्जियां उड़ रही है.वर्तमान में शासन के द्वारा निजी मान्यता प्राप्त संस्थाओं में 25 प्रतिशत छात्रों को निशुल्क शिक्षा उपलब्ध कराना है. जिसका पालन भी इनके द्वारा नहीं किया जा रहा है. पाकल अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा के लिए स्कूल बस में बैठाकर स्कूल भेज रहे है. प्रशासन के द्वारा प्रबंधन के ऊपर किसी प्रकार की करवाई नहीं करने से प्रबंधन की हौसला बुलंद है इसी कारण आए दिन अपहरण, गैंगरेप व छेड़छाड़ की शिकार हो रही है.उच्च अधिकारी जिला मुख्यालय में बैठ के मोबाइल के माध्यम से निजी स्कूलों का खानापूर्ति करते हैं. बलरामपुर जिले के राजपुर में दर्जनों घटनाएं अपहरण, गैंगरेप, छेड़छाड़ की घट चुकी है उसके बाद भी उच्च अधिकारियों के द्वारा निजी स्कूलों के प्रबंधक के खिलाफ किसी प्रकार की करवाई न करना चर्चा का विषय बना हुआ है.

छत्तीसगढ़ शासन के निर्देशानुसार नियम का पालन होना चाहिए ?

क्रमांक 01. संस्था की भूमि एवं भवन का स्वर की स्वामित्व.

क्रमांक 02. नहीं है तो खरीदी और निर्माण की कार्य योजना.

 क्रमांक 03. 3 वर्ष के अंदर कार्य योजना का क्रियान्वयन आवश्यक.

 क्रमांक 04. 2 एकड़ भूमि अनिवार्य. 1500 से अधिक छात्र पर 3 एकड़.

क्रमांक. 05. हाई स्कूल के न्यूतम तथा हायर सेकेंडरी के लिए 2600 स्क्वेयर  फीट का भवन.

क्रमांक 06. प्राथमिक से हायर सेकेंडरी तक होने पर 40000 स्क्वायर  फीट का भवन.

क्रमांक 07.  प्राचार्य कक्ष, कार्यालय, स्टाफ रूम पुस्तकालय, प्रयोगशाला.

क्रमांक 08. हाई स्कूल के लिए सात कक्षायें जरूरी.

क्रमांक 09. प्रत्यक्ष सेक्शन के लिए अलग-अलग कक्ष.

क्रमांक 10. एक सेक्शन में अधिकतम 45 न्यूनतम 15 छात्र अनिवार्य.

क्रमांक 11. कार्यक्रमों के आयोजन के लिए बरामदा या हाल का होना जरूरी.

क्रमांक 12. संस्था के छात्र- छात्राओं के लिए अलग- अलग प्रसाधन की व्यवस्था.

क्रमांक 13 छात्र- छात्राओं के लिए फर्नीचर की व्यवस्था होनी चाहिए.

क्रमांक 14. बिजली वाले स्थानों पर बिजली और पंखे की व्यवस्था होनी चाहिए.

क्रमांक 15. खाते में इतना राशि हो कि शिक्षकों का 3 माह का वेतन दिया जा सके.

मगर उक्त संस्था के द्वारा उक्त संस्था के द्वारा नियमों का पालन नहीं हो रहा है.नहीं उनके पास शासन से निर्धारित मापदंड ही उपलब्ध है. फिर भी अधिकारियों की मेहरबानी से उक्त संस्था बेख़ौफ़ चल रही है.ऐसी संस्थाओं पर कार्यवाही न होना प्रशासनिक अमला को चुनौती है.ऐसे स्कूल की मान्यता तत्काल प्रभाव से खत्म होना चाहिए.शिक्षा विभाग के द्वारा पहली से बारहवीं तक 59 प्राइवेट स्कूल की मान्यता दी गई है. जिसमें प्राथमिक पाठशाला 37, मीडिल स्कूल 15, हाई सकेंडरी स्कूल 03, हाई स्कूल 04, संचालित है. कई स्कूलों में शिक्षक बगैर बीएड, डीएड के अध्यन करा रहे है.

बस परिवहन के नाम पर लूट की जा रही है,स्कूल बसों में सीसी टीवी तक नही है

राजपुर विकासखण्ड में करीब 59 प्राइवेट स्कूल संचालित है स्कूल बस, छोटा हाथी, मारुति वैन में मवेसियों की तरह छात्र- छात्राओं को ठुस- ठुस कर ले जाया जा रहा है. शासन से भाड़ा भी निर्धारित नहीं है. अभिभावकों को लूटा जा रहा है.वाहनों में सीसी टीवी तक नहीं लगाया गया है. छात्र-छात्राएं अपने घर से बस में बैठकर स्कूल जाने के लिए निकलते है मगर स्कूल नही पहुच पाते आधे रास्ते मे ही उतर जा रहे है. पूरी लापरवाही प्रबंधन की है दर्जनों घटना करने के बाद भी उच्चधिकारी बंधन के ऊपर किसी प्रकार की कार्रवाई न करने से इनका हौसला काफी बुलंद है.

एसडीएम शशि कुमार चौधरी ने कहा कि जिला शिक्षा अधिकारी से प्राइवेट स्कूलों की सूची मंगाकर सभी स्कूलों की जांच की जाएगी गलत पाए जाने पर स्कूल संचालक के विरुद्ध कार्रवाई की जाएगी.

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