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नई दिल्ली। इस बार दिल्ली की सर्दी भी खूब ‘गर्मी’ दिखा रही है। एक के बाद एक नया रिकार्ड बना रही है। पहले जनवरी में बारिश ने 122 सालों का रिकार्ड तोड़ा, फिर ठंड ने 72 सालों का रिकार्ड तोड़ दिया। कोहरा इस बार 30 सालों में सबसे कम पड़ा है। 18 दिनों तक बादलों ने ऐसा डेरा डाले रखा कि न सूरज निकल पाया और न धूप खिल पाई। आलम यह कि इस बार की जनवरी 72 सालों की दूसरी सबसे ठंडी जनवरी रही है। विशेषज्ञों ने इस स्थिति के लिए मौसमी परिस्थितियों को ही मुख्य कारक बताया है।भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के मुताबिक दिसंबर-जनवरी में औसतन 52 दिन (570 घंटे) कोहरा पड़ता है, जबकि इस बार 25 जनवरी तक 45 दिन (252 घंटे) ही कोहरा पड़ा। इससे पहले 1991-92 में यह 44 दिन (255 घंटे) रहा था। हालांकि, माह के चार दिन अभी शेष हैं, लेकिन विभाग का कहना है कि अब ज्यादा कोहरा पडऩे की संभावना नहीं है।अब अगर दिसंबर और जनवरी के कोहरे पर अलग-अलग बात करें तो इस बार दिसंबर में 22 दिन (75 घंटे) 1000 मीटर से कम ²श्यता वाला कोहरा पड़ा, जबकि प्रतिमाह औसत कोहरा 26 दिन (278 घंटे) का होता है। दिसंबर का कोहरा वर्ष 1982 के बाद यानी 40 साल में सबसे कम है। तब 14 दिन (75 घंटे) का कोहरा रहा था। इसी तरह इस साल 25 जनवरी तक (252 घंटे) कोहरा पड़ा, जबकि इसका औसत स्तर 290 घंटे है। यह वर्ष 2008 के बाद, यानी 14 साल में सबसे कम है। अब अगर बारिश की बात करें तो 1901 से 2022 के बीच आल टाइम रिकार्ड अभी तक जनवरी 1989 के नाम था, जब 79.7 मिमी बारिश हुई थी मगर इस साल 23 जनवरी तक ही 88.2 मिमी बारिश ने पिछले सारे रिकार्ड तोड़ नया कीर्तिमान बना दिया। पालम में भी इस जनवरी 110 मिमी बारिश दर्ज की गई है, जो अभी तक की सर्वाधिक है।अब अगर ठंड की बात करें तो 1951 से 2022 के बीच 72 सालों में यह जनवरी दूसरी सबसे ठंडी जनवरी रही है। तीन जनवरी 2003 को इस माह का अधिकतम तापमान सबसे कम 9.8 डिग्री सेल्सियस रहा था जबकि इस साल 25 जनवरी को यह 12.1 डिग्री सेल्सियस रहा। दोनों ही सालों में जनवरी का औसत अधिकतम तापमान 17.6 डिग्री दर्ज हुआ है। जनवरी 2015 में औसत अधिकतम तापमान 18 डिग्री था। इसी तरह 2003 में ठिठुरन भरे ठंडे दिनों की संख्या 18 थी, तापमान 17 डिग्री सेल्सियस से कम रहा था। 2015 में ऐसे दिन 11 जबकि इस साल 12 दर्ज हुए हैं।
जलवायु परिवर्तन के असर का दिखाई दिया असर
महेश पलावत (उपाध्यक्ष, मौसम विज्ञान एवं जलवायु परिवर्तन, स्काईमेट वेदर) का कहना है कि इसमें कोई संदेह नहीं कि 21वीं सदी में जलवायु परिवर्तन का असर तेजी से बढ़ा है। जलवायु परिवर्तन के असर से ही मौसम चक्र में भी लगातार बदलाव देखने को मिल रहा है। खासकर पिछले दो दशकों के दौरान सर्दी, गर्मी और मानसून तीनों के ही पैटर्न में बदलाव देखने को मिला है।