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रायपुर। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अपनी सरकार के तीन साल पूरा होने के अवसर पर तीन बड़ी बातें कही हैं। उन्होंने कहा कि उनकी सरकार के मंत्रियों के कामकाज की अब समीक्षा होनी चाहिए। मंत्रिमंडल में बदलाव भी होना चाहिए। तीन साल का समय अब हो गया है इसलिए हर मंत्री के परफॉर्मेंस को देखने का समय आ गया है।श्री बघेल ने कहा कि छत्तीसगढ़ में राजभवन राजनीति का अखाड़ा बन गया है। वहीं उन्होंने इस बात को भी प्रमुखता से कहा कि केंद्र सरकार के कई अड़ंगों की वजह से छत्तीसगढ़ में काम नहीं हो पा रहे हैं। कांग्रेस सरकार का 17 दिसंबर को तीन साल का कार्यकाल पूरा हो रहा है।
3 उपलब्धियां
• किसानों का कर्जा माफ
• बिजली का बिल हाफ
• छत्तीसगढ़िया सरकार की भावना
3 चुनौतियां
केंद्र का कामों में अड़ंगा
सेंट्रल फंड की कमी
राजभवन का दखल
3 काम जो करने हैं
• मंत्रियों की समीक्षा होगी
एथेनॉल बनाने की प्रक्रिया तेज
• छत्तीसगढ़ को मॉडल बनाना
सरकार के तीन साल पूरे हो गए। अब तक क्या खोया, क्या पाया
तीन साल में एक साल पूरा चुनाव में और दो साल कोरोना में चला गया। बावजूद इसके हमने राज्य के स्वाभिमान को वापस खड़ा करने में सफलता पाई है। पहली बार छत्तीसगढ़ के लोगों को लगा कि हमारी सरकार है। और इस भाव को लाने में मेरी थोड़ी बहुत कोशिश है । वह लगातार कर रहा हूं। इस दिशा में अभी और काम करने की जरूरत है। जहां तक खोने की बात है हमने कोरोना की वजह से बहुत से अपनों को खोयाहै। और हमने समय खो दिया है। कोरोना के कारण दो साल हम निकल ही नहीं पाए। हम जनता के बीच में काम कर सकते थे। जैसा करना चाहते थे। नहीं कर पाए। क्या आपने अपने मंत्रियों के कामकाज की समीक्षा की है। किसी बदलाव की जरूरत महसूस कर रहे हैं। कामकाज की समीक्षा तो होती रहनी चाहिए। और तीन साल हो गए तो बदलाव भी होना चाहिए। लेकिन यह बिना हाईकमान की अनुमति के नहीं होगा। हाईकमान से अनुमति मिलेगी कि बदलाव करना है तब हम उस पर विचार करेंगे। लेकिन अब इस पर विचार का समय आ गया है।
राज्य सरकार को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है
सबसे बड़ी चुनौती तो हमारे सामने केंद्र सरकार की है। बात-बात पर केंद्र सरकार का अड़ंगा आ रहा है। धान खरीदी के लिए हमें पांच लाख गठान बारदाना चाहिए और अब तक एक लाख भी उपलब्ध नहीं कराए हैं। हम रोज डेढ़ लाख टन धान की खरीदी कर रहे हैं। अब वर्षों से उसना चावल जमा कर रहे थे। इस साल अचानक फरमान आ गया कि उसना चावल नहीं लेंगे। सुनियोजित तरीके से हमारे हिस्से का पैसा नहीं दे रहे सेंट्रल एक्साइज का पैसा नहीं दे रहे। दूसरे जरूरी मदों में पैसा नहीं। आखिर यह अड़ंगा क्या साबित करता है
राज्यपाल से राज्य सरकार की अनबन होती रहती है। आखिर ऐसी क्या वजह है राजभवन और सरकार का तालमेल नहीं है।
राजभवन को राजनीति का अखाड़ा बनाकर रख दिया है। देखिए वाइस चांसलर की नियुक्ति हो रही है। छत्तीसगढ़ में प्रतिभा की कमी है क्या, सब बाहर से आदमी लाकर नियुक्त कर रहे हैं। क्या छत्तीसगढ़ में योग्य लोगों की कोई कमी है। हमारे पास किए गए विधेयकों को रोक दिया जाता है। हम विधानसभा से पास करके भेजते हैं और राजभवन से अनुमति नहीं मिलती। हमने कृषि बिल को पास किया। केंद्र सरकार ने कानून वापस ले लिया और राज्यपाल उस पर विचार ही कर रही हैं। यह किस तरह की राजनीति है, यह समझ से परे है। राज्यपाल से बात करने आपने मंत्रियों को भेजा खुद भी बात की है। फिर भी कोई परिणाम नहीं निकला,राज्यपाल से बात करने आपने मंत्रियों को भेजा खुद भी बात की है। फिर भी कोई परिणाम नहीं निकला, मंत्रियों की बात सुनी और न ही विधायकों की। मैंने पहल की। मेरी ओर से कोशिश रही कि सब ठीक हो जाए क्योंकि राज्यपाल राज्य की संवैधानिक प्रमुख हैं। हम तो चाहते हैं कि समन्वय बनाकर रखें। उनकी प्रतिष्ठा बनी रहे। मैं चाहता था कि सारी बातें सामान्य तरीके से चले। लेकिन ऐसा नहीं हो सका।क्या सरकार अपने काम से संतुष्ट है, जवाब विपरीत परिस्थितियों में काम करने का अवसर मिला। कोरोना की वजह से पूरी दुनिया ठहरी हुई थी । इसके बावजूद हम लोगों ने जो जनता से वादा किया था। उसे पूरा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। ऋण माफी की बात हो कर्जा माफ बिजली बिल माफ चाहे सारे लोगों का राशन कार्ड बनाना। आधार कार्ड से लिंक करना। कोरोना जैसी महामारी में हम लोगों ने तीन माह का राशन दिया। हम कोरोना से भी लड़ रहे थे। लोगों की जरूरत भी पूरी कर रहे थे। विपरीत परिस्थितियों में हमने काम किया। भारत सरकार ने सांसदों तक के वेतन में कटौती कर दी । कई काम रोक दिए। छत्तीसगढ़ में हमने ऐसा नहीं किया। कोई कटौती नहीं की। जो वादा नहीं किया था, वह भी कर रहे हैं। गोबर खरीदी का वादा नहीं था फिर भी गोबर खरीदी कर रहे हैं। इस तरह के कई काम हाथ में लिए हैं ।
अतिरिक्त धान से एथेनाल बनाना चाहते हैं पर केंद्र अनुमति नहीं देता, यही तो है अड़ंगा: भूपेश
केंद्र से मिल रही चुनौतियों से कैसे निपटेंगे,इन सबसे जूझ तो रहे हैं। लगातार पत्राचार कर रहे हैं। हम तो प्रधानमंत्री से समय मांग रहे हैं। समय नहीं दे रहे हैं। हम अपनी बात रखना चाहते हैं। हम तो एथेनाल बनाने की परमिशन मांग रहे हैं। छत्तीसगढ़ कृषि प्रधान देश है। मौसम के कारण यहां एक फसलीय खेती है। धान की समस्या का निराकरण नहीं होगा तो सरकार ही नहीं, आम जनता भी परेशान होगी। हम तो केवल परमिशन चाहते हैं कि धान का उपयोग करने की परमिशन दे दें। लेकिन नहीं । वे चाहते हैं पहले खरीदें। एफसीआई को दें। सोसायटी में पहले खरीदेंगे। उसके बाद संग्रहण केंद्र में लाएंगे। फिर मिलर को देंगे। फिर वह रैक पाइंट पर देगा। एफसीआई से फिर छत्तीसगढ़ में यहां मिलेगा। कितनी बार हैंडलिंग चार्ज लगेगा। कितनी बार ट्रांसपोर्टेशन होगा। मैंने कई बार कहा है कि सोसायटी से सीधे खरीद लें और सरप्लस धान से एथेनाल बनाने की अनुमति दें। इस संबंध में भारत सरकार ने कितनी बार टेंडर निकाला । कोई एथेनाल बनाने सामने नहीं आ रहा। हम कह रहे हैं हमारा एमओयू करके रखे हैं। 12 एमओयू हो चुका है। हम सरप्लस धान से एथेनाल बनाना चाहते हैं। ये अड़ंगा नहीं है तो और क्या है।ढाई-ढाई साल की बात अब तीन साल पर आ गई है। इस मामले में मेरा स्टैंड पहले दिन से स्पष्ट है। जब तक हाईकमान कहेगा तब तक पद पर रहूंगा। पर अब तो तीन साल हो गए, ढाई साल वाला सवाल ही खत्म हो गया है। यह सवाल अब उठना ही नहीं चाहिए ।
छत्तीसगढ़ ने क्या लक्ष्य रखा है कि आने वाले पांच साल में हम कहां पर होंगे
आज से सात साल पहले गुजरात मॉडल की चर्चा होती थी। गुजरात मॉडल को बेचकर मोदी जी प्रधानमंत्री बन गए। लेकिन हुआ क्या, गुजरात में अमीर और अमीर होते गए। गरीब और गरीब होते गए। खाई बढ़ गई। असंतोष बढ़ता चला गया। इसके विपरीत छत्तीसगढ़ में राज्य के खजाने में सबका अधिकार है। सभी वर्गों को उसका लाभ मिलना चाहिए। चाहे वह गरीब हो आदिवासी, किसान हो मजदूर हो, व्यापारी हो उद्योगपति हो, युवा हो या महिला हो । सभी वर्ग को ध्यान में रखकर काम कर रहे हैं। उस प्रकार का वितरण हुआ भी है। मोदी सरकार और छत्तीसगढ़ सरकार में यही अंतर है। मोदी सरकार में उद्योगपतियों की ऋण माफी हो सकती है, किसानों की नहीं हो सकती। छत्तीसगढ़ में किसानों की ऋण माफी हो सकती है। यहां पैसा चंद उद्योगपतियों को नहीं जा रहा है। 13 लाख वनवासियों और 22 लाख किसानों को जा रहा है। 39 लाख घरों में बिजली बिल आधा हो रहा है। 58 लाख परिवारों को राशन जा रहा है ।छत्तीसगढ़ को किस तरह के राज्य की पहचान दिलाना चाहते हैं? आदिवासी राज्य, विकासशील राज्य या प्रगतिशील राज्य। हम प्रगतिशील नहीं। हम पिछड़े भी नहीं बल्कि विकसित राज्य की श्रेणी में हम जा रहे हैं। यहां के लोगों की क्रय शक्ति बढ़े। यहां के लोगों के स्वास्थ्य में सुधार हो । शिक्षा के स्तर में सुधार हो । यहां के लोगों को रोजगार के अवसर ज्यादा से ज्यादा मिले।
छत्तीसगढ़ को कौन से सेक्टर में पहचान दिलाना चाहते हैं
हम तो सारे सेक्टर में काम कर रहे हैं। उसका रिजल्टआता जा रहा है। हमने गोबर खरीदा तो वहीं पर नहीं
रुक गए हैं। हम उसे वर्मी कंपोस्ट, दीया भी बना रहे हैं। गोबर से हम बिजली भी बना रहे हैं। इसमें क्या क्या इनोवेशन हो सकते हैं, सबको जोड़ रहे हैं। सात हजार सात सौ सतहत्तर गोठान बने हैं। उसमें रूरल इंडस्ट्रियल पार्क भी बना रहे हैं। ताकि लोगों को ज्यादा से ज्यादा रोजगार मिल सके। कृषि उत्पाद की वहां प्रोसेसिंग भी वहीं करवाएंगे। अलसी, सरसों, राई भी आएंगे। वहां पेरने की व्यवस्था करेंगे। गांधी की ग्राम सुराज की व्यवस्था हमारा मॉडल होगा। गांधी जी का सपना स्वावलंबी गांव का है, वही हम करने जा रहे हैं। हर आदमी के पास काम होना चाहिए।
चीन की तरह क्या हम यहां पर अलग अलग क्लस्टर बनाना चाहते हैं,भारत सरकार ने हर जिले को विशेष उत्पाद के लिए चिन्हित किया है। लेकिन उसके क्रय करने का इंतजाम नहीं लिया। जैसे रत्तगादेश में मराठाबात और मिर्तापर नहीं किया। जैसे उत्तरप्रदेश में मुरादाबाद और मिर्जापुर में पीतल का काम होता है। वहां पहले आठ हजार करोड़ की बिक्री होती थी अब घटकर छह हजार करोड़ की हो गई। जिले को चिन्हित कर क्लस्टर बना दिया पर उसका मैकेनिज्म डवलप नहीं किया। आखिर इसका क्या फायदा है। हम चाइना मॉडल नहीं बल्कि गांधी जी के ग्राम सुराज मॉडल पर चल रहे हैं। सुराजी गांव के मॉडल पर । पहले हमारे गांव उत्पादन का केंद्र होते थे। और शहर विक्रय के केंद्र होते थे। गांवों को उत्पादन का केंद्र बनाना है। ट्रेडिंग का काम शहरों में होगा। चार महीना किसानी करने के बाद भी उसके पास काम होना चाहिए। हर आदमी के पास हुनर है। उसके अनुरूप आदमी को अवसर देना और फिर बाजार देना। इसी से हमारी इकानामी में बदलाव आएगा। कवर्धा की घटना को लेकर विपक्ष ने धर्मांतरण को बड़ा मुद्दा बना लिया है। क्या एक झंडा उतारने और चढ़ाने के मामले को इतना तूल देना गलत है। इसको साम्प्रदायिकता का रंग देना उचित नहीं है। क्या ऐसे लोगों को हतोत्साहित नहीं करना चाहिए जो समाज में जहर घोलना चाहते हैं। दो साल तक कोरोना में सबकुछ बंद रहा और आप क्या करना चाहते हैं। एक घटना घटी और दो लोगों के बीच विवाद हुआ ।समाज के नेतृत्वकर्ता लोग योजनाबद्ध ढंग से कुछ किए हों, ऐसी कोई बात नहीं थी। झंडा उतारा, बाद में चढ़ा भी दिया। दोषी लोगों पर कार्रवाई भी हो गई। अब इसको लंबा खींचने का क्या मतलब है, आपके निहित राजनीतिक स्वार्थ के चलते आप ऐसा कर रहे हैं। पिछली सरकार के 15 साल में इसी की कमी रही। गांव के गांव को नक्सली बताकर जेल में डाल दिया गया। आदिवासियों को नक्सली घोषित कर दिया। सबके खिलाफ अपराध पंजीबद्ध कर दिया। एनकाउंटर में आदिवासी मारे गए। अब हम उनका विश्वास जीतने के लिए हरसंभव काम कर रहे हैं। हमने उनके हर अधिकार का ध्यान रखा है।