(अभिषेक सोनी) बलरामपुर।बलरामपुर कलेक्टर राजेंद्र कटारा की अध्यक्षता में हाल ही में समय-सीमा बैठक आयोजित की गई।बैठक में उनके द्वारा अवैध खनन व परिवहन की समीक्षा की गई। बैठक में कलेक्टर ने खनिजों के अवैध उत्खनन, परिवहन और भंडारण पर की गई कार्रवाई की समीक्षा करते हुए खनिज अधिकारी को क्षेत्र का नियमित निरीक्षण करने और सतत निगरानी रखते हुए अवैध उत्खनन और परिवहन पर कड़ी कार्रवाई करने के निर्देश दिए थे। कलेक्टर के निर्देश के बाद भी जिले के क्रेशर से अवैध गिट्टी का परिवहन बेधड़क बिना पीटपास और एन.ओ.सी. के दूसरे सीमावर्ती जिलों और राज्यों में किया जा रहा है।

सरगुजा और बलरामपुर जिले में आरटीओ और माइनिंग विभाग की मिलीभगत से बिना जीएसटी बिल व पिटपास ओवरलोड वाहन गिट्टी लेकर दौड़ रहे हैं। ओवरलोड वाहन यूपी और झारखंड जैसे सीमावर्ती राज्यों में भेजे जा रहे हैं,इससे सड़कों की हालत जर्जर हो चुकी है।जीएसटी बिल और पिटपास के बिना गिट्टी का परिवहन करने से खनिज विभाग को बड़ा राजस्व नुकसान हो रहा है, फिर भी जिम्मेदार अधिकारी कोई कार्रवाई नहीं कर रहे हैं। ओवरलोड वाहनों के चलने से सड़कें टूटकर गड्ढों में तब्दील हो गई हैं, और वाहन चालक इसकी जद में आ रहे हैं। आरटीओ और माइनिंग विभाग सिर्फ कुछ वाहनों को पकड़कर कार्रवाई दिखाने का प्रयास करते हैं। भले ही बरियों से लेकर बलरामपुर और कुसमी तक कई पुलिस चौकियां और थाने पड़ते हैं, परन्तु नियमों की अनदेखी करते हुए इन वाहनों का आवागमन जारी है।


क्रेशर खदानों में खपने वाले पत्थर अवैध तरीके से वन एवं राजस्व भूमि से निकाले जा रहे हैं. कभी ड्रिल मशीन के जरिए तो कभी ब्लॉस्ट करके पत्थरों को जमीन से निकाला जाता है। बड़े पैमाने पर चल रहे कारोबार पर प्रशासन या वन विभाग का ध्यान नहीं है, क्रेशरों और वाहनों से उड़ने वाली धूल से इलाके का पर्यावरण संतुलन बिगड़ता जा रहा हैं लेकिन सम्बधित महकमा भी इस ओर से बिल्कुल बेपरवाह हैं। इसका खामियाजा ग्रामीणों को भुगतना पड़ रहा हैं। बलरामपुर और सरगुजा जिले में कई क्रेशर केवल दस्तावेजों पर बंद हैं, फिर भी संचालक उनका संचालन कर रहे हैं। अधिकारी और कर्मचारी मौके पर निरीक्षण के लिए नहीं पहुंचते, जिसका लाभ उठा क्रेशर संचालक उठा रहे हैं। यह भी सामने आया है कि कई क्रेशर संचालक बिजली पावर कनेक्शन के लिए अन्य उद्योगों का हवाला दे रहे हैं।


कई क्रेशर संचालकों के पास दस्तावेज तक नहीं, नियमों को ताक पर रखकर खुलेआम कर रहे संचालन

स्टोन क्रेशरों का संचालन शुरू करने से पहले राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से अनुमति प्राप्त करना आवश्यक है। क्रेशर संचालकों को पर्यावरण (संरक्षण) नियम 1986 के तहत निर्धारित उत्सर्जन मानदंडों और संबंधित राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा दी गई अनुमति की शर्तों का पालन करना होता है। हालांकि, अधिकांश क्रेशर संचालकों के पास आज तक जमीन से संबंधित दस्तावेज जैसे डायवर्शन, पीटपास, लीज, पर्यावरण और ब्लास्टिंग भंडारण नहीं हैं, और केवल कागजों पर ही क्रशर चलाए जा रहे हैं।

छत्तीसगढ़ पर्यावरण संरक्षण मंडल के अनुसार, बलरामपुर जिले में सिर्फ 31 क्रेशर संचालकों को पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 के दिशानिर्देशों के अनुसार संचालन की अनुमति मिली है, जबकि पूरे जिले में 100 से अधिक क्रेशर चल रहे हैं। जिन संचालकों को अनुमति मिली है, वे भी इन दिशानिर्देशों का उल्लंघन कर रहे हैं, और जिम्मेदार अधिकारी इस स्थिति पर चुप हैं, जिससे उन्हें खुला संरक्षण मिल रहा है।

राजपुर क्षेत्र में स्वीकृत लीज 31 व सरगुजा जिले में 78 हैं

राजपुर क्षेत्र में स्वीकृत लीज 31 व सरगुजा जिले में 78 हैं मगर कई स्वीकृत लीज स्थल पे आज तक क्रेशर संचालकों ने खुदाई तक नही की है. मगर शासन से उन्हें पीट पास हमेशा जारी होते रहे है. कर्मचारी-अधिकारिओं की मिलीभगत से यह कार्य काफी दिनों से संचालित है. इसके साथ कई स्थानों में दूसरे के नाम से भी लीज संचालित है.

छोटा झाड़ के जंगल में भी संचालित हो रहे है क्रेशर

छोटा झाड़ का जंगल को हल्का पटवारी व तहसीलदार को मिलाकर शासकीय भूमि को अपने नाम नामांतरण करा लिया गया और फर्जी तरीके से भूमि का डायवर्शन भी कराकर उस भूमि में क्रेशर संचालित है। आश्चर्य की बात यह भी है कि उक्त का भूमि पर डायवर्शन कैसे हुआ आज  जिसपे क्रेशर संचालित हैं।

क्रेशर से उड़ने वाले धूल से ग्रामीण हो रहे बीमार,ब्लास्टिंग से घरों की दीवारों में आए रही दरारें

स्टोन क्रशिंग इकाइयों को लंबे समय से अस्थायी धूल उत्सर्जन और गंभीर वायु प्रदूषण का मुख्य स्रोत माना गया है। स्टोन क्रेशर्स से धूल का भारी निकलाव होता है, और वाहनों की गतिविधियों से भी धूल उड़ती है, जिससे वहां रहना और चलना बेहद कठिन हो गया है। राजपुर, कोटागहना, घोरगड़ी, डिगनगर, गांगर नदी के पास, बघिमा, भिलाई, भेस्की, चंगोरी, धौरपुर सहित कई स्थानों पर दर्जनों क्रशर सक्रिय हैं। ब्लास्टिंग के दौरान उठने वाली धूल और क्रशर्स से निकलने वाली धूल ग्रामीणों के लिए समस्या बन गई है। ग्रामीणों का स्वास्थ्य लगातार खराब हो रहा है और वे गंभीर बीमारियों का सामना कर रहे हैं। आदिवासी ग्रामीणों के घर धूल से भर गए हैं, और ब्लास्टिंग के कारण दीवारों में दरारें आ रही हैं, जिससे दुर्घटनाओं का खतरा बढ़ गया है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के दिशा-निर्देशों के अनुसार, स्टोन क्रशर को हर छह महीने में अपने श्रमिकों का स्वास्थ्य सर्वेक्षण कराना अनिवार्य है।

ब्लास्टिंग के लिए बारूद कहा से आता है, जांच का विषय

पत्थरों में उपयोग होने वाली ब्लास्टिंग के लिए बारूद कहा से आता हैं आज तक किसी को जानकारी नहीं है, बारूद का स्टॉक रूम और बारूद की मात्रा कितनी है इसकी भी जानकारी किसी को नहीं है। अवैध बारूद से कभी भी बड़ी घटनाएं घट सकती है, क्षेत्र में बेख़ौफ़ ट्रैक्टर लगा कर ड्रिल महीन से सुरंग बना कर अवैध ब्लास्टिंग की जाती है।

कलेक्टर राजेंद्र कुमार कटारा ने कहा कि मैं इसको दिखवाता हूं गलत पाए जाने पर क़ानूनी कार्रवाई की जाएगी

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