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अंबिकापुर। 25 दिसंबर को दुनियाभर में क्रिसमस मनाया जाता है। इस दिन ईसा मसीह का जन्म हुआ है। अतः ईसा मसीह के जन्मदिन पर लोग क्रिसमस मनाते हैं। इस उपलक्ष्य पर लोग एक दूसरे को गिफ्ट और स्वीट्स देकर बधाई देते हैं। साथ ही घरों और चर्चों में प्रार्थनाएं की जाती हैं। इस पर्व को सभी धर्मों के लोग हर्षोउल्लास के साथ मनाते हैं। भारत में भी क्रिसमस की धूम रहती है। इसकी तैयारी एक सप्ताह पहले से होने लगती है। चर्चों और घरों को क्रिसमस ट्री और लाइट्स से सजाए जाते हैं। आइए, परम पिता परमेश्वर के पुत्र ईसा मसीह के जन्म की कथा और उनसे जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य जानते हैं-प्रभु यीशु का जन्म 4-6 ई.पू. फिलिस्तीन के शहर बेथलेहेम में हुआ था। इनके माता और पिता दोनों नाज़ेरथ से आकर बेथलेहेम में बस गए थे। यहीं, प्रभु यीशु का जन्म हुआ था। उनकी माता का नाम मरियम और पिता का नाम यूसुफ था। यूसुफ पेशे से बढ़ई थे। ऐसा कहा जाता है कि परम पिता परमेशवर के संकेत पाकर यूसुफ ने मरियम से शादी की थी। प्रभु यीशु के जन्म से दो वर्ष पूर्व ही उनके पिता की मृत्यु हो गई थी। उनका लालन-पालन उनकी माता मरियम ने किया था।
हालांकि, प्रभु यीशू के 13 वर्ष से 30 साल तक के जीवन के बारे में अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं है। इसके बाद 30 साल की आयु में प्रभु यीशु ने यूहन्ना से दीक्षा हासिल की। इसके बाद धर्म स्थापना में जुट गए। हालांकि, अंधविश्वास फैलाने वाले धर्म पंडितों ने उनका पुरजोर विरोध किया लेकिन वे जरा सा भी विचलित नहीं हुए। इसके बाद धर्म पंडितों ने राजा पोंटियंस से शिकायत की। रोमन गवर्नर पिलातुस को लगा कि अगर वह प्रभु यीशु को नहीं रोकते हैं, तो यहूदी क्रांति कर सकते हैं। इसके लिए प्रभु यीशु को मृत्यु दंड की सजा दी गई।
जिस दिन यीशु को क्रॉस पर चढ़ाया गया था, उस दिन फ्राइडे था। प्रभु यीशु को क्रॉस पर चढाने के बाद जब उनकी मृत्यु हो गई, तो उन्हें कब्र में दफना दिया गया, लेकिन 3 दिन बाद संडे को प्रभु यीशु पुनः कब्र में जीवित हो उठे। जिसे ईस्टर संडे के नाम से जाना जाता है। यहूदियों ने यह चमत्कार अपनी आंखों से देखा और प्रभु यीशु के शिष्यों ने प्रभु यीशु के उपदेश को जन-जन तक पहुंचाया। उस समय एक नवीन धर्म की स्थापना हुई, जिसे ईसाई धर्म कहा गया। कब्र से जीवित होने के 40 दिनों के बाद प्रभु यीशु सीधे स्वर्ग चले गए।

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