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रायपुर।कोरोना वायरस के नए प्रतिरूप ओमिक्रोन के संक्रमण के खतरे को देखते हुए केंद्र सरकार के साथ राज्य सरकारों का सचेत होना समय की मांग है, लेकिन उनकी ओर से जिस तरह रात को कर्फ्यू लगाने की घोषणाएं की जा रही हैं, उसे देखते हुए यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि आखिर यह उपाय कितना प्रभावी साबित होगा? यह सही है कि कोरोना की पिछली लहर के दौरान भी ऐसा ही किया गया था, लेकिन यह कहना कठिन है कि उससे संक्रमण के प्रसार को रोकने में सफलता मिली थी। यह ठीक नहीं कि दिन में सार्वजनिक स्थलों पर भीड़ जुटने एवं उसकी ओर से कोविड प्रोटोकाल का पालन न किए जाने को लेकर तो कुछ न किया जाए और रात में कर्फ्यू लगा दिया जाए।सर्दी के इस मौसम में जब रात को वैसे ही भीड़-भीड़ कम हो जाती है, तब कर्फ्यू लगाने से कुछ विशेष हासिल होने की उम्मीद कम ही है। वैसे भी ऐसा कुछ तो है नहीं कि रात में कोरोना वायरस कहीं अधिक सक्रिय हो जाता है। राज्य सरकारों को रात को कर्फ्यू लगाने जैसे कदम उठाते समय यह ध्यान भी रखना होगा कि उससे आर्थिक-व्यापारिक गतिविधियों पर बुरा असर न पड़ने पाए। इसकी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए कि ऐसे कदम से सेवा क्षेत्र के प्रभावित होने की आशंका उभर आई है। नि:संदेह कोरोना संक्रमण से सतर्क रहने की आवश्यकता बढ़ गई है, लेकिन इसी के साथ यह सुनिश्चित करने की भी जरूरत है कि कोविड प्रोटोकाल के पालन के तहत आर्थिक-व्यापारिक गतिविधियां चलती रहें। एक ऐसे समय जब अर्थव्यवस्था पटरी पर आती दिख रही है, तब सावधानी बरतने के नाम पर ऐसा कुछ नहीं किया जाना चाहिए, जिससे उसे धक्का लगे। जितना जरूरी लोगों की जान बचाना है, उतना ही जीविका के साधनों को भी। राज्य सरकारों और खासकर विधानसभा चुनाव वाले पांच राज्यों को इस पर भी ध्यान देना होगा कि कहीं चुनाव प्रचार से जुड़ी गतिविधियों को नियंत्रित करने की आवश्यकता तो नहीं? यह अच्छा है कि निर्वाचन आयोग के अधिकारियों ने इस संदर्भ में केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव से मुलाकात की और उनसे चुनाव वाले राज्यों के मौजूदा हालात को लेकर एक विस्तृत रपट मांगी। इस रपट के आधार पर न केवल आवश्यक कदम उठाए जाने चाहिए, बल्कि हालात की लगातार निगरानी और समीक्षा भी की जानी चाहिए। यह सर्वथा उचित होगा कि चुनाव वाले राज्यों में टीकाकरण की रफ्तार बढ़ाई जाए। इस संदर्भ में आम लोगों को भी सचेत होना होगा, खासकर उन्हें जिन्होंने अभी टीका नहीं लगवाया है। इसी के साथ मतदान कर्मियों को कोरोना योद्धा के दायरे में लाने पर भी विचार किया जाना चाहिए।