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भोपाल,एजेंसी : एक साल पहले सरकार-सुर्खियां और समाज, हर जगह एक ही चर्चा थी स्वास्थ्य लेकिन महामारी के दौर में भी मध्य प्रदेश में सरकारी तंत्र की आत्मा मर चुकी है. दम तोड़ती स्वास्थ्य व्यवस्था से संबंधित जिन तीन मामलों का हम जिक्र कर रहे हैं, वो इसकी तस्दीक करती हैं. चूंकि मरने वाले आम लोग थे इसलिये ये तस्वीरें बेहद आम है. यदि खास होती तो मीडिया भी दिन-रात लगा रहता औरअफसर, एंबुलेंस की कतार लगी होती.
घटना 1. सागर के गढ़ाकोटा में अंबेडकर वार्ड के रहने वाले बिहारी को घर में चक्कर आया. परिजन गढ़ाकोटा के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ले गए जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया. शव वाहन का इंतजाम नहीं हुआ, निजी वाहनों ने भी मना कर दिया तब बड़े भाई भगवान ने ठेला जुगाड़ा और शव घर लाए. भाई भगवानदास बताते हैं, “डॉक्टर ने कहा ले जाओ, वाहन की व्यवस्था नहीं हुई.”
घटना 2. छतरपुर जिले के बक्सवाहा में पौड़ी गांव के लक्ष्मण की 4 साल की बिटिया को बुखार आया. पहले वो बक्सवाहा के अस्पताल पहुंचे वहां से दमोह रेफर किया गया. बच्ची नहीं बची. अस्पताल में शव वाहन नहीं मिला. पहले दादा ने उसे कंबल से ढंका. बस वाले को बिना बताये उसमें बैठे, बक्सवाहा पहुंचे … वहां फिर नगरपरिषद में गुजारिश की लेकिन कुछ नहीं हुआ तो कभी दादी, कभी दादा, कभी पिता मासूम का शव गोद में ढंककर 45 डिग्री की धूप से बचाते घर लाए. दादा बताते हैं कि बच्ची को दो दिन से बुखार था. यहां दवाई कराई, फिर कहा गया दमोह जाओ. पिता लक्ष्मण ने बताया, “शव ले जाने के लिए नगर परिषद से वाहन उपलब्ध कराने को कहा था लेकिन मना कर दिया. नगर पालिका ने मना कर दिया, यह कह दिया ऐसे नहीं जाएगी हमारी गाड़ी. “
घटना 3 . खरगोन के भगवानपुरा में गर्भवती शांतिबाई खरते को लेने के एंबुलेंस नहीं पहुंची तो परिजन उसे खटिया पर लेटाकर तीन किमी दूर तक पैदल चल दिए लेकिन रास्ते में ही महिला की मौत हो गई. मौत के बाद भी शव वाहन नहीं मिला, शव खाट पर ही आया. वैसे यहां एंबुलेंस नहीं पहुंचने की एक वजह ‘अमेरिका से बेहतर सड़कें’ भी थीं.
वैसे सरकार ने अप्रैल माह में दावा किया था कि स्वास्थ्य विभाग की सेहत सुधारने 29 प्रतिशत बजट बढ़ा दिया है. प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में डिजिटल एक्स-रे होगा और सरकारी अस्पतालों को मरम्मत के लिए 263 करोड़ मिलेंगे. यही नहीं, 25000 की आबादी पर संजीवनी क्लीनिक खुलेगा. वैसे सरकार ने ये नहीं बताया कि 1000 की आबादी पर एक डॉक्टर होना चाहिए. मध्यप्रदेश में 10000 हजार की आबादी पर 4 डॉक्टर हैं.