बिलासपुर: छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस की डिवीजन बेंच ने राज्य में पुलिस द्वारा एफआइआर दर्ज करने के बाद जांच नहीं करने और खात्मा अथवा चालान पेश नहीं किये जाने पर सख्ती दिखाते हुए राज्य के पुलिस महानिदेशक को स्वयं का शपथ पत्र दाखिल कर जवाब देने के निर्देश दिए हैं। इसके लिए 11 मई तक की मोहलत दी है।
आपराधिक मामलों में पुलिस द्वारा एफआइआर दर्ज कर लिया जाता है। इसके बाद मामलों की विधिवत जांच नहीं करते या जांच करते हैं उचित निष्कर्ष तक नहीं ले जाते। ऐसे मामलों में दंड प्रक्रिया संहिता के प्रविधानों के अनुसार जांच करनी है। इसके बाद यदि मामला चालान लायक होता है तो अंतिम प्रतिवेदन प्रस्तुत करना पड़ता है। यदि मामला चालान लायक नहीं पाया जाता तो धारा 169 के तहत मामले का खात्मा पेश किया जाता है।ऐसा ही एक मामला हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस की डिवीजन बेंच के समक्ष सुनवाई के लिए आया। इसमें उन्होंने पाया कि बहुत सारी याचिकाएं ऐसी हैं जिनमें न्यायालय द्वारा कोई स्थगन आदेश व रोक समेत अन्य आदेश नहीं दिया है। लेकिन पुलिस द्वारा अग्रिम जांच कर न तो मामले का खात्मा किया गया है और न ही चालान पेश किया गया है। ऐसे मामले सुप्तावस्था में कई वर्षों से पड़े हैं। इसे गंभीरता से लेते हुए चीफ जस्टिस की डिवीजन बेंच ने राज्य के पुलिस महानिदेशक को तीन दिन के भीतर व्यक्तिगत शपथ पत्र सहित जवाब देने के निर्देश दिए हैं।
दुर्ग के राजस्व निरीक्षक सोमा चौधरी की ओर से ग्राम सिरनाभांठा में 2.90 हेक्टेयर में 35 आबादी पट्टे तैयार किए थे। इसमें 10 पट्टे ऐसे व्यक्तियों के नाम पर तैयार किए जो कि उस ग्राम के निवासी नहीं थे। इन्हें गलत मानते हुए दो पटवारी सहित सरपंच व पार्षद पति के विरुद्ध सात जनवरी 2019 को धमधा पुलिस ने अपराध दर्ज किया था। इस पर 25 अप्रैल 2019 को याचिका दायर की थी।
याचिकाकर्ता का कहना था कि सर्वेक्षण के समय ग्रामवासियों ने जिस भूमि पर जिस व्यक्ति का कब्जा बताया गया था, उसके मुताबिक पंचनामा सूची में नाम दर्ज किए गए थे। तथ्यों की जांच करना तहसीलदार का काम था। उन्होंने डीजीपी, एसपी और थाना प्रभारी के समक्ष अपना पक्ष रखा था। इसके बाद भी याचिकाकर्ता को सात जून 2019 को गिरफ्तार कर लिया गया। इसके बाद से अब तक न तो मामले का खात्मा किया गया और न ही चालान पेश किया गया है।