नई दिल्ली। गृह मंत्रालय ने 130 वर्ष पुराने जेल अधिनियम में बदलाव कर व्यापक ‘माडल जेल अधिनियम-2023’ तैयार कर लिया है। नए जेल अधिनियम में पुराने जेल अधिनियमों के प्रासंगिक प्रविधानों को भी शामिल किया गया है। यह राज्यों और उनके कानूनी क्षेत्र में मार्गदर्शक दस्तावेज के रूप में काम करने में सहायक होगा। यह निर्णय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व एवं केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के मार्गदर्शन में लिया गया।

जेल अधिनियम-1894 आजादी से पहले के काल का अधिनियम था। इसका मुख्य उद्देश्य अपराधियों को हिरासत में रखना और जेल में अनुशासन व व्यवस्था बनाना था। मौजूदा अधिनियम में कैदियों के सुधार और पुनर्वास का कोई प्रविधान नहीं है। गृह मंत्रालय ने बयान में कहा कि आज जेलों को प्रतिशोधात्मक निवारक के रूप में नहीं देखा जाता है अपितु इन्हें शोधनालय एवं सुधारात्मक संस्थानों के रूप में देखा जाता है, जहां कैदी बदलकर एवं पुनर्वासित होकर कानून का पालन करने वाले नागिरक की भांति समाज में लौटे।

गृह मंत्रालय ने महसूस किया कि मौजूदा कारागार अधिनियम में कई खामियां हैं। मौजूदा अधिनियम में आज की आवश्यकताओं और जेल प्रबंधन की जरूरतों को पूरा करने का संशोधन करने की आवश्यकता थी। आधुनिक दिनों की आवश्यकता और सुधारात्मक विचारधारा के साथ गृह मंत्रालय ने जेल अधिनियम-1984 को संशोधित करने का काम पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो को सौंपा।

मालूम हो कि ब्यूरो ने राज्य जेल अधिकारियों और सुधारात्मक विशेषज्ञों से बातचीत के बाद जेल प्रबंधन में प्रौद्योगिकी के उपयोग, अच्छे आचरण को प्रोत्साहित करने के लिए पैरोल, फरलो, कैदियों को छूट देने के लिए प्रविधान करना, महिलाओं व ट्रांसजेंडर कैदियों के लिए विशेष प्रविधान करने आदि को शामिल कर ड्राफ्ट तैयार किया।

गृह मंत्रालय ने ‘जेल अधिनियम-1894’ , ‘ कैदी अधिनियम-1900’ और ‘कैदियों के स्थानांतरण अधिनियम-1950’ की भी समीक्षा की है। इन अधिनियमों के प्रासंगिक प्रविधानों को ‘माडल जेल अधिनियम-2023’ में शामिल किया गया है।

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