जगदलपुर: छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित इलाकों में आम लोगों की सुरक्षा में अपने घर परिवार से दूर तैनात जवानों की कलाइयां सूनी कैसे रह सकती हैं , यही सोचकर इलाके की महिलाओं ने उनकी कलाइयों में बांधी राखी।रक्षाबन्धन के पावन पर्व पर आदिवासी बहनों ने अपने कर्तव्य का किया निर्वहन ।यही है बस्तरवासियों की सामाजिक समरसता और आपसी सद्भाव की सांस्कृतिक विरासत ।जिन आदिवासियों को सभ्य संसार अशिक्षित और पिछड़े होने की संज्ञा देता है उनकी सोच और संस्कार आज के व्यवसायिकता के समय में भी वैसे ही हैं जैसे पहले थे ।जाहिर है त्योहार का असली आनन्द अपनों के बीच ही होता है। लेकिन खून के रिश्ते से बढ़कर मानवता का रिश्ता होता है । ऐसे में जवानों को अपने परिजनों की स्मृति उनके मन को बोझिल न कर पाए इसीलिए बस्तर की आदिवासी बहनों ने उनके हाथों में सजाई राखी।यही आदिवासी संस्कृति की महत्ता है जिसके आगे हर कोई नतमस्तक हो जाता है ।