नई दिल्ली। चुनावी बॉन्ड योजना पर विवाद अभी खत्म हुआ भी नहीं है कि सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर दी गई है। इसमें अदालत की निगरानी में विशेष जांच दल (एसआईटी) से जांच की मांग की गई है। शीर्ष अदालत की पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 15 फरवरी को भाजपा सरकार द्वारा शुरू की गई गुमनाम राजनीतिक फंडिंग की चुनावी बांड योजना को रद्द कर दिया था।
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद, भारतीय स्टेट बैंक ने चुनाव आयोग (ईसी) के साथ डेटा साझा किया था, जिसने बाद में उन्हें सार्वजनिक कर दिया। एनजीओ कॉमन कॉज और सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन द्वारा दायर याचिका में इसे ‘घोटाला’ करार देते हुए अधिकारियों को शेल कंपनियों और घाटे में चल रही कंपनियों के वित्त पोषण के स्रोत की जांच करने का निर्देश देने की मांग की गई है।
वकील प्रशांत भूषण के माध्यम से दायर याचिका में अधिकारियों को कंपनियों द्वारा दान किए गए पैसे को ‘क्विड प्रो क्वो व्यवस्था’ के हिस्से के रूप में वसूलने का निर्देश देने की भी मांग की गई है। याचिका में कहा गया है कि चुनावी बॉन्ड घोटाले में ऐसा प्रतीत होता है कि देश की कुछ प्रमुख जांच एजेंसियां जैसे कि सीबीआई, प्रवर्तन निदेशालय और आयकर विभाग भ्रष्टाचार का सहायक बन गई हैं।
याचिका में किया गया ये दावा
इसमें दावा किया गया है कि कई कंपनियां जो इन एजेंसियों की जांच के दायरे में थीं, उन्होंने जांच के नतीजों को संभावित रूप से प्रभावित करने के लिए सत्तारूढ़ पार्टी को बड़ी रकम का दान दिया है। याचिका में कहा गया है कि इस घोटाले की जांच शीर्ष अदालत द्वारा चुने गए और शीर्ष अदालत के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की देखरेख में काम करने वाले मौजूदा/सेवानिवृत्त जांच अधिकारियों की एक एसआईटी द्वारा की जानी चाहिए।
याचिका में उन कंपनियों द्वारा कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 182(1) के कथित उल्लंघन की जांच करने के निर्देश देने की भी मांग की गई है, जिन्होंने चुनावी बॉन्ड के माध्यम से राजनीतिक दलों को उनके गठन के तीन साल के भीतर चंदा दिया और ऐसी कंपनियों पर अधिनियम की धारा 182(4) के तहत जुर्माना लगाया जाए।