सनातन धर्म में अक्षय तृतीया का अत्यंत महत्व है. यह वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है. आज अक्षय तृतीया है. मान्यता के अनुसार अक्षय तृतीया पर कोई भी शुभ कार्य किया जा सकता है. जिसके लिए पंचांग देखने की आवश्यकता नहीं होती. अक्षय तृतीया का फल अक्षय यानी कि कभी न मिटने वाला होता है. अक्षय तृतीया पर दान पुण्य का भी अत्यंत महत्व है. इस दिन किए गए दान पुण्य का कई गुना फल प्राप्त होता है. आज हम जानेंगे अक्षय तृतीया क्यों मनाई जाती है और उसका क्या महत्व है जिसके बारे में हमें बताया है भोपाल के रहने वाले पंडित हितेंद्र कुमार शर्मा ने.
अक्षय तृतीया मनाने के चार कारण
अक्षय तृतीया के दिन भगवान परशुराम ने महर्षि जमदग्नि और माता रेणुका देवी के घर जन्म लिया था. भगवान परशुराम को भगवान विष्णु का छठा अवतार माना जाता है. इसलिए इस दिन भगवान विष्णु की पूजा अर्चना की जाती है. अक्षय तृतीया पर भगवान परशुराम की पूजा करने का भी विधान है.
महाभारत लिखना शुरू किया
सनातन धर्म में महाभारत को पांचवे वेद के रूप में माना जाता है. महर्षि वेदव्यास ने अक्षय तृतीया के दिन से ही महाभारत लिखना शुरू किया था. महाभारत में ही श्रीमद्भागवत गीता समाहित है और अक्षय तृतीया के दिन गीता के 18वें अध्याय का पाठ करना शुभ माना जाता है
मां गंगा का अवतरण
अक्षय तृतीया के दिन ही स्वर्ग से पृथ्वी पर माता गंगा अवतरित हुई थी. माता गंगा को पृथ्वी पर अवतरित कराने के लिए राजा भागीरथ में हजारों वर्ष तक तपस्या की थी. मान्यता के अनुसार अक्षय तृतीया पर गंगा में डुबकी लगाने से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं.
माता अन्नपूर्णा का जन्मदिन
अक्षय तृतीया के दिन माता अन्नपूर्णा का जन्मदिन भी मनाया जाता है. माता अन्नपूर्णा की पूजा करने से भोजन का स्वाद कई गुना बढ़ जाता है. इस दिन गरीबों को भोजन कराने का विधान है. साथ ही देश भर में भंडारे भी कराए जाते हैं.
अक्षय तृतीया का महत्व
अक्षय तृतीया के दिन जरूरतमंदों को दान पुण्य करना अत्यंत महत्वपूर्ण है. पंडित जी के अनुसार अक्षय तृतीया के दिन एक गरीब को घर बुलाकर आदर पूर्वक भोजन अवश्य कराना चाहिए. ये काम गृहस्थ लोग अवश्य करें इससे धन धान्य में अक्षय वृद्धि होती है. अपनी धन संपत्ति में कई गुना इजाफा पाने के लिए अपनी कमाई का कुछ हिस्सा अक्षय तृतीया पर दान करना चाहिए.