कोरबा: इस जिले के बिजली संयंत्रों से निकलने वाली कोयले की राख (फ्लाई ऐश) को नियम के खिलाफ सड़क किनारे व रिहाइशी इलाकों और जल श्रोतों के पास बेतरतीब ढंग से डंप किए जाने के मामले की जांच के लिए गठित हाई कोर्ट की न्याय मित्रों की टीम कोरबा पहुंची। करीब पांच घंटे तक तीन सदस्यीय टीम ने संबंधित इलाकों का जायजा लिया।

कोरबा शहर और आसपास के इलाकों में बीते कुछ वर्षों में निजी और शासकीय बिजली कारखानों से निकलने वाले फ्लाई ऐश को प्रशासन से कथित अनुमति लेकर ऐसे स्थानों पर फेंका गया जहां पर इसे डंप करना प्रतिबंधित है। नियम के मुताबिक कारखानों का अपना फ्लाई ऐश डाइक होना चाहिए, जहां राख के डिस्पोजल के अलावा इसका विभिन्न कार्यों में इस्तेमाल किया जाना चाहिए, मगर सच तो ये है कि कोरबा में संचालित अधिकांश बिजली कारखानों के ऐश डाइक भर गए है। पूर्व में इसे लो लाइन एरिया अर्थात खली पड़े गड्ढों में भरने की अनुमति दी गई, मगर जब शहर और आसपास इस तरह के गड्ढे भर गए तब उन स्थानों पर भी राख फेंकने की अनुमति दे दी गई, जहां पर इसके लिए प्रतिबंध लगाया गया है। इस कृत्य के चलते कोरबा जिले के कई स्थानों पर राख का पहाड़ बना दिया गया है, वहीं नदी-नालों के आसपास फेंकी गई राख बारिश में कटाव के चलते जल-श्रोतों में प्रवाहित हो रही है।

बताते चलें कि कोरबा जिले को फ्लाई ऐश से प्रदूषित किये जाने के मामले में कोरबा निवासी रामावतार अग्रवाल ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में याचिका दायर की थी, मगर राख से हो रहे भयानक प्रदूषण के बावजूद एनजीटी ने कोई अपेक्षित फैसला नहीं दिया, जिसके चलते पूर्व विधायक और वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष वीरेंद्र पांडेय ने हाईकोर्ट बिलासपुर में जनहित याचिका दायर की है। इसकी सुनवाई करते हुए कोर्ट ने तीन न्याय मित्रों की टीम गठित की। अधिवक्ता प्रतीक शर्मा, सिद्धार्थ दुबे और सूर्या काबलकर डांगी को न्याय मित्र नियुक्त किया गया। बता दें कि जनहित याचिका में बिलासपुर के सीपत और रायगढ़ जिले में भी इसी तरह राख का प्रदूषण फैलाये जाने की शिकायत की गई है।

जनहित याचिका में कोरबा शहर और आसपास के गांवों में कुल 8 स्थानों का जिक्र किया गया है। इनमे तरदा, कतबितला, बरीडीह, डोंगदरहा, बरबसपुर, कुरुडीह, झगरहा और रिस्दा बालको अदि शामिल है। न्यायमित्रों की टीम बिलासपुर से कनकी मार्ग होते हुए ग्राम तरदा पहुंची। यहां लो लाइन एरिया के नाम पर राख को डंप कर उस पर थोड़ी मिट्टी डाल दी गई है। वर्षाकाल में राख बहकर किसानों के खेत तक पहुंच रहा है और खेत बर्बाद हो रहे हैं। इस मौके पर याचिकाकर्ता वीरेंद्र पांडेय, एसडीएम सीमा पात्रे व तहसीलदार मुकेश देवांगन भी उपस्थित रहे।तरदा के बाद टीम सभी स्थानों पर गई और वहां डंप किए गए राख का जायजा लिया। यहां बताना लाजिमी होगा कि प्राकृतिक जलस्त्रोत नदी, नाले भी राख से पट गए हैं। न्याय मित्र के पहुंचने की खबर से राखड़ परिवहन करने वाली कंपनी ने ज्यादातर स्थानों में पहले ही उपर से मिट्टी डंप कर दिया था। न्यायमित्र की टीम ने नदी नालों में उतर कर देखा कि किस तरह राख से जल श्रोत प्रदूषित हुए हैं।

न्यायमित्रों की टीम तरदा से ग्राम बारीडीह भी पहुंची, जहां पूर्व में रोजगार गारंटी योजना से बने एक तालाब को राख से पाट दिया गया है। इस बात की पुष्टि गांव के सरपंच और अन्य ग्रामीणों ने भी की। सबसे गंभीर बात यह है कि यह मामला पूर्व में उजागर होने के बावजूद प्रशासन ने अब तक कोई भी कार्रवाई नहीं की है।इस मामले में याचिकाकर्ता वीरेंद्र पांडेय ने बताया कि केंद्र की गाइडलाईन के मुताबिक नदी नाले से 500 मीटर की दूरी तक राख नहीं फेंकी जा सकती, वन्य क्षेत्र, कृषि भूमि और संवेदनशील क्षेत्रो में राख का डिस्पोजल प्रतिबंधित है।

कायदे से जिला स्तर पर कमेटी बनाकर अनुमति देने का अधिकार है, मगर एसडीएम को नियम विरुद्ध तरीके से अधिकार दे दिया गया और इस अधिकारी ने प्रतिबंधित क्षेत्रों में भी राख फेंकने की अनुमति दे दी। जिले में वर्तमान में कलेक्टर संजीव झा पदस्थ हैं और उनके कार्यकाल में भी बड़े पैमाने पर राख का गलत तरीके से डिस्पोजल किया जा रहा है।न्याय मित्र प्रतीक शर्मा ने बताया कि टीम ने उन सभी स्थानों का जायजा लिया है, जिन स्थलों का याचिका में जिक्र किया गया है। हम अपनी रिपोर्ट कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत करेंगे। बता दें कि इससे पूर्व राजस्व मंत्री जयसिंह अग्रवाल भी इलाके में राख की समस्या देखने निकले थे। इस दौरान रिस्दा में वन विकास निगम के पौधारोपण क्षेत्र में राख का पहाड़ बना दिए जाने का मामला सामने आया था। इसके अलावा कई गंभीर अनियमितताएं मिली। मंत्री अग्रवाल ने 15 दिन के अंदर मामले की जांच कर रिपोर्ट देने के निर्देश दिए हैं। आलम यह है कि यहां अनेक स्थानों पर मरघट को भी राख से पाट दिया गया है।


बता दें कि राष्ट्रीय स्तर पर जारी गाइडलाईन के मुताबिक बिजली कारखानों को वहाँ से निकलने वाली राख को वर्ष दर वर्ष शत प्रतिशत उपयोग में लाने का निर्देश है, मगर कहीं भी यह संभव नहीं हो सका। अब इसके विकल्प के रूप में प्रतिबंधित स्थानों के अलावा कोयला खदानों में भी राख का डिस्पोजल किया जा रहा है और कंपनियों द्वारा इसे फ्लाई ऐश यूटिलाइजेशन बताया जाता है। यह बड़ी ही हास्यास्पद बात है।

बहरहाल उम्मीद की जा रही है कि न्याय मित्रों द्वारा कोरबा जिले में राख के प्रदूषण की हकीकत बयां किये जाने के बाद हाई कोर्ट कोई दिशा-निर्देश जारी करेगा। अब न्यायलय की ओर सभी की नजरें टिकी हुई हैं।

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