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कोरबा। वन मंडल कोरबा के हाथी प्रभावित ग्रामों के हालात ऐसे है की ग्रामीणों के सामने हाथी से बचाव के लिए अलाव ही एक मात्र सहारा है। “मिट्टी तेल मिलता नही तो मशाल कैसे जलाए ये समस्या वनों पहाड़ों में रहने वाले वनवासियों के सामने है”।लगभग 20 साल पहले हाथियो का प्रवेश कोरबा वन मंडल से हुआ था और आज बीस साल में जिला इनकी चपेट में है कोरबा और कटघोरा दोनो वनमण्डल के गांव अब हाथी प्रभावित हो गए है। जन धन की हानि लगातार हो रही है। विभाग के उपाय बे असर साबित हो रहे है। लेकिन विभाग जागरूकता अभियान से लेकर तमाम तरह के उपाय करने से पीछे नहीं हट रहा है। फिर भी ग्रामीणों का उत्पात लगातार जारी है। अब ग्रामीणों के पास आग जला कर स्वयं के बचाव का एक मात्र सहारा है, मिट्टी तेल की सुविधा भी अब बंद हो गई है। लिहाजा ग्रामीण दिन में जंगल से सुखी लकड़ी इक्कठा कर शाम होते ही घरों के जला देते है ताकि हाथी घर की तरफ न आ सके यह स्थिति उन गावो में है। जहां अक्सर हाथी पहुंचते है और ये मैदानी क्षेत्र के साथ पहाड़ी इलाके में बसे है ग्राम केराकछार , बगदारी डांड, सरीडीह के ग्रामीणों के सामने रात के अंधेरे में अलाव ही सहारा है। जिससे उजाला भी होता है और हाथियो से बचाव भी उजाला इसलिए क्योंकि गांव में बिजली की दरकार है।