कोरबा। भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) के कोल प्रभारी व जेबीसीसीआइ सदस्य के लक्ष्मारेड्डी ने कहा कि कुछ अधिकारी औद्योगिक शांति भंग करने का षडयंत्र रच रहे हैं। इन अधिकारी के पीछे किसका हाथ है और कौन फंडिंग कर रहा है, इसकी जांच कोयला मंत्रालय को कराना चाहिए। डिपार्टमेंट आफ पब्लिक इंटरप्राइजेस (डीपीई) कोई कानून या संविधान नही हैं, बल्कि यह केवल गाइड लाइन है।
अल्प प्रवास पर कोरबा पहुंचे रेड्डी ने चर्चा करते हुए कहा कि पहली बार कोयला मजदूरों का सबसे बेहतरीन वेतन समझौता हुआ और इसके लिए किसी तरह का आंदोलन भी नहीं करना पड़ा, पर यह कुछ अधिकारियों को पसंद नहीं आया। व्यक्तिगत कुछ अधिकारियों ने मामला उच्च न्यायालय में दायर कर दिया। न्यायालय में अपने लिए सुविधा व वेतन बढ़ाने की बात करने के बजाए उन्होंने 2.30 लाख कोयला मजदूरों के वेतन समझौता को रद्द करने की मांग रखी। जबकि अभी तक किसी भी श्रमिक संगठन ने अधिकारियों के मिल रहे पीआरपी, पर्क्स समेत विभिन्न भत्ते व सुविधाओं को कर्मचारियों को भी देने की मांग प्रबंधन से नहीं की और नहीं अधिकारियों को दी जा रही इस सुविधा का विरोध जताया। बावजूद अधिकारियों द्वारा सौहाद्रपूर्ण वातावरण को अशांत करने का प्रयास किया गया। उन्होंने कहा कि अधिकारियों का कहना है कि महारत्न कंपनी की तरह उन्हें वेतन व सुविधाएं मिलें, तो अभी तक अधिकारी अभी तक कहां थे, जब कोयला मजदूरों का वेतन समझौता हो गया, तो उन्हें याद आ रहा है।


उनका वेतन समझौता 10 वर्ष के लिए एक जनवरी 2017 को हुआ था, तब समझौता के मुताबिक उन्हें सब कुछ मिल रहा है। अब बीच में वेतन व भत्ता बढ़ाने की बात क्यों की जा रही है। रेड्डी ने कहा कि यदि अधिकारियों का वेतन बढ़ाया जाता है तो कर्मचारी शांत नहीं बैठेंगे। उन्होंने कहा कि डीपीई में स्पष्ट है कि प्रशासनिक स्वीकृति हो तो वेतन समझौता लागू किया जा सकता है। पांचों श्रमिक संघ ने बैठक कर मजबूरन पांच अक्टूबर से 72 घंटे की हड़ताल करने का निर्णय लेना पडा है। इसकी शुरूआत इकाई स्तर पर हो गई चुकी है और 21 व 22 सितंबर को जनजागरण अभियान चलाने के बाद तीन अक्टूबर को कंपनी स्तर पर प्रदर्शन किया जाएगा। हड़ताल से होने वाले नुकसान की भरपाई जिम्मेदार अधिकारियों के वेतन से कटौती कर की जानी चाहिए। इस दौरान टिकेश्वर सिंह राठौर, मजरूल हक अंसारी, आरएस जायसवाल, अशोक सूर्यवंशी, अश्वनी मिश्रा व अन्य उपस्थित रहे।

फील्ड में रह कर मजदूरहित में लड़ाई लड़ेंगे


एक प्रश्न का उत्तर देते हुए रेड्डी ने कहा कि अधिकारी व कर्मचारियों काफी भेदभाव बरता जा रहा है। कर्मी की मौत होने पर उसके पढ़े लिखे बेेटे को केटेगरी वन की नौकरी देते हैं, अधिकारियों के बच्चों को सीधे क्लर्क बनाया जाता है। इसी तरह अधिकारियों को 35 प्रतिशत पर्क्स, दो से आठ लाख तक प्रति वर्ष पीआरपी, लैपटाप समेत अन्य सुविधा मिलती है। इसका कभी भी विरोध नहीं किया गया। उन्होंने कहा कि अधिकारी भले ही न्यायालय में गए हैं, पर श्रमिक संगठन नहीं जाएंगे और फील्ड में रह कर मजदूरहित में लड़ाई लड़ेंगे।


सीनियर कर्मियों से कर रहे तुलना


रेड्डी ने बताया कि कर्मचारियों का केटेगरी वन से ग्रेड शुरु होता और इस श्रेणी के मजदूरों का वेतनमान अभी भी अधिकारियों से काफी कम है। इसके बावजूद अधिकारियों द्वारा यह कहा जा रहा है कि सीनियर कर्मियों का वेतन ई- थ्री ग्रेड के अधिकारियों से अधिक हो गया है। कर्मचारी 30 वर्ष नौकरी कर सीनियर बनता है और उच्च वेतनमान हासिल करता है। जबकि ई- थ्री ग्रेड का अधिकारी निचले क्रम का है और उसे काम करते मुश्किल से सात से आठ वर्ष हुए रहते हैं। यह तुलना न्यायसंगत नही है।

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