कोरबा। आजादी के 75 साल बाद भी कोरबा जिले के एक गांव में बिजली नहीं पहुंच पाई है। गांव के विकास में बिजली, पानी और सड़क जैसी मूलभूत सुविधाएं बाधा बनी हुई है।
गुलाम भारत में हुआ करते थे, ऐसे में अब एक बार फिर चुनाव के दौरान ग्राम वासियों को जनप्रतिनिधियों से उम्मीद है कि शायद इस बार के चुनाव में गांव की सूरत बदल जाए। वैसे तो चुनावी वादे सुनकर गांव वालों ने पूरा जीवन बीता दिया। हालांकि इस बार गांव वालों को आस है कि शायद उनकी तकदीर बदल जाए। दरअसल, हम बात कर रहे हैं कोरबा जिले के रामपुर विधानसभा क्षेत्र में पड़ने वाले ग्राम पंचायत केराकछार के आश्रित गांव की बगधरीडांड की. इस गांव के ग्रामीणों ने कुछ समय पहले चुनाव बहिष्कार का निर्णय लिया था। हालांकि प्रशासन का टीम ने गांव वालों को समझाया। फिर उन्हें मतदान को लेकर शपथ भी दिलाई। लेकिन ग्रामीण अभी भी गुस्से में हैं वो मूलभूत सुविधाओं के अभाव में खुद को असहाय पाते हैं।

बगधरीडांड गांव के कुछ ग्रामीण अब भी चुनाव बहिष्कार की बात कहते हैं,तो कुछ मतदान की बात कह रहे हैं। दरअसल, इस गांव में कई तरह की दिक्कतें हैं। मूलभूत सुविधाओं से तो यहां के लोग वंचित तो हैं ही। दुर्गम रास्ते और प्रकृति ने भी उनके लिए दुश्वारियां कम नहीं की है। भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि ग्राम पंचायत मदनपुर गांव से लगा हुआ है। लेकिन इस गांव को ग्राम पंचायत केराकछार में जोड़ दिया गया है, जिसके कारण यहां के ग्रामीण मतदान करने 20 किलोमीटर का सफर तय करते हैं। बगधरीडांड की हालत पांच साल पहले भी यही थी। पिछले 5 सालों में यहां कोई बदलाव नहीं हुआ है। एक बार फिर यहां के ग्रामीण 20 किलोमीटर दूर नदी और पहाड़ को पार करते हुए वोट करेंगे। इस उम्मीद के साथ कि इस चुनाव के बाद शायद गांव की तस्वीर और तकदीर कुछ बदल जाए। वह अपने मताधिकार का प्रयोग इसी उम्मीद के साथ करेंगे कि शायद इस बार चुनाव में उनके गांव में विकास के कुछ छींटे पड़ जाए। शायद इस बार कुछ परिवर्तन हो और ढेर सारे चुनावी वादों में से कोई एक वादा ही पूरा हो जाये।

दरअसल, बगधरीडांड में पहाड़ी कोरवा उराव और कन्वर्टेड क्रिश्चियन निवास करते हैं। मदनपुर के पास एक चर्च भी है, जहां वह नियमित तौर पर जाते भी रहते हैं। यहां रहने वाले संतोष पहाड़ी कोरवा समुदाय से आते हैं। बताते हैं कि हम मतदान करने 20 किलोमीटर दूर दरगा जाते हैं, जो ग्राम पंचायत केराकछार के पास है। यही हमारा मतदान केंद्र है। पिछले साल भी हम 20 किलोमीटर दूर गए थे। पैदल चलना पड़ता है। इस साल भी हालात वैसे ही हैं। 5 साल में कोई काम नहीं हुआ। गांव में सड़क नहीं है, बिजली नहीं है, अंधेरे में जीवन काट रहे हैं। लेकिन चुनाव के दिन वोट डालने हम जाते हैं। इस बार भी जाएंगे। उम्मीद है कि इस बार जो जीतेंगे वो कम से कम गांव में बिजली का प्रबंध जरूर कराएंगे।


गांव में रहने वाली क्रिश्चियन समुदाय की महिला अन्ना बेक कहती हैं कि “हम कई दशकों से चुनावी वादे सुनते आ रहे हैं। लेकिन आज तक नेता और अधिकारियों ने मिलकर गांव में बिजली की व्यवस्था तक नहीं की। पीने का पानी तक नहीं मिलता, लोग नदी से ही पानी लेकर घर आते हैं। उसे ही छान कर पीते हैं। गांव में चुनाव प्रचार करने नेता आते हैं, जो कहते हैं कि हमें वोट दो और हम सब कुछ बदल देंगे। सारी चीजों का इंतजाम कर देंगे, यह सुनते कई 5 साल बीत गए। लेकिन गांव के हालात जस में तस बने हुए हैं। इस बार भी नेता आ रहे हैं। प्रचार कर रहे हैं, लेकिन अब हमें उनकी बात पर भरोसा नहीं होता।वहीं, गांव की एक अन्य महिला वेरोनिका ने बताया कि “हम वोट डालने दरगा जाते हैं जो कि यहां से 20 किलोमीटर से भी ज्यादा दूर है। वहां तो हमको पैदल ही जाना पड़ जाता है। सामने वाले पहाड़ को पार करके हम पैदल चले जाते हैं। हमारे गांव में बहुत सारी समस्याएं हैं। यहां बिजली नहीं है, वह सबसे बड़ी समस्या है। मोबाइल का टावर भी नहीं पकड़ता, अगर हमें कुछ परेशानी हो तो टावर ढूंढना पड़ता है। पहाड़ के ऊपर चढ़कर टावर ढूंढते हैं। पेयजल भी स्वच्छ नहीं है। पास के गांव फुलवारी और लालमाटी के लोग भी नदी का पानी पीते हैं। नदी में कोई जानवर मर गया, सड़ गया, ये हमें नहीं पता होता। हम वहीं गंदा पानी पीकर रहते हैं। यही कारण है कि लोग ज्यादातर बीमार पड़ते हैं। हालांकि बीमार पड़ने पर इलाज नहीं मिलता। गाड़ी भी गांव तक नहीं पहुंच पाती। हम मदनपुर या कोरबा लेकर जाते हैं। कई बार इसमें देर भी हो जाती है।

गांव की एक अन्य महिला अनीता ने बताया कि, “गांव के चौराहे पर एक सोलर पैनल और एक बल्ब दिखाई दे रहा है। वह 2019 में लगा था और लगने के कुछ दिन बाद ही वह बंद हो गया। उसमें बल्ब भी नहीं है, हम अपने बच्चों के लिए कुछ कर नहीं पाते। हमारे बच्चे पड़ोस के गांव में पढ़ने जाते हैं। जब कोरोना आया तो कह दिया गया कि ऑनलाइन क्लास होंगे। हमारे पास मोबाइल तो है, लेकिन इसे चार्ज भी दूसरे गांव जाकर करना पड़ता है। पहाड़ के ऊपर चढ़कर हम नेटवर्क तलाश करते थे। हमें शहर की बिजली देखकर दुख होता है, सोचते हैं कि काश हमारे गांव में भी बिजली आ जाती तो हमारा भला हो जाता। हम महसूस करते हैं अपने बच्चों को किस तरह का भविष्य देंगे, यह सोचकर हम बेहद दुखी हो जाते हैं। हमने चुनाव बहिष्कार का निर्णय लिया था, लेकिन अब वोट तो देंगे ही और इस उम्मीद के साथ वोट देंगे कि इस बार जो जीतेगा वह कम से कम हमारा ख्याल रखेगा।”

इस पूरे मामले में बगधरीडांड के लोगों को आस है कि शायद इस बार उनकी समस्या का निराकरण हो जाए और गांव में विकास हो। वहीं, अधिकारियों ने भी आश्वासन दिया है। ऐसे में अब देखना होगा कि आने वाले दिनों में जनप्रतिनिधि गांव वालों की समस्या का समाधान करते हैं या गांव की समस्या जस की तस बनी रहेगी।

विश्वदीप त्रिपाठी,सीईओ जिला पंचायत व स्वीप कार्यक्रम के नोडल अधिकारी का कहना है कि गांव की समस्याओं के बारे में हमें जानकारी है। सभी समस्याओं के निराकरण के लिए संबंधित विभागों को अवगत कराया गया है। यह बातें कलेक्टर के संज्ञान में भी है। हमारा प्रयास है कि मतदान प्रतिशत अधिक से अधिक हो। गांव वालों को शपथ दिलवाई गई है। सभी मतदान करेंगे।

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