रायपुर: यंगस्टर्स में वैलेंटाइन डे खास है। उनके प्यार के इस खास दिन में रंग भरने का काम करते हैं गुलाब। इसकी खुशबू इतनी ज्यादा महकती है कि उसके आगे इस एक दिन में लाखों-करोड़ों रुपए बेमानी हो जाते हैं। छत्तीसगढ़ भी इससे जुदा नहीं हैं। यहां बिखरे प्यार के रंगों को डच गुलाब की किस्म और भी सुर्ख बना रही है। प्रदेश के महासमुंद में होने वाले नीदरलैंड के डच गुलाब की खुशबू और रंगत न केवल रायपुर बल्कि पड़ोसी राज्य ओडिशा में भी बिखरी है।

दरअसल, महासमुंद के एक युवा किसान हैं, प्रशांत पटेल। पिछले 6 साल से प्रशांत ने डच गुलाबों की 2 एकड़ में खेती कर रहे हैं। मैनेजमेंट में डिप्लोमा कर चुके प्रशांत इससे पहले पुणे में पंजाब नेशनल बैंक के हाउसिंग फाइनेंस सेक्टर में काम करते थे। ₹80000 तक वेतन भी मिल जाता था। इसी बीच प्रशांत ने देखा कि वहां बड़े-बड़े फार्म में डच गुलाबों की खेती हो रही है और यह आय का एक बढ़िया साधन साबित हो रहा था। इसके बाद प्रशांत ने घर लौट कर डच गुलाबों की खेती शुरू की।

एक पौधा 3 साल तक देता है फूल

प्रशांत कहते हैं कि पिछले 2 सालों से कोविड-19 के असर की वजह से इस बार पैदावार उतनी अच्छी नहीं हो पाई। हालांकि प्रशांत मानते हैं कि डच गुलाबों से जुड़ा काम घाटे का सौदा नहीं है। वेलेंटाइन डे के 2 सप्ताह पहले से फूलों की डिमांड बढ़ जाती है। इस दौरान ही करीब ₹600000 के फूल न सिर्फ रायपुर बल्कि भुवनेश्वर बलांगीर जैसे हिस्सों में भेज चुके हैं। डच गुलाब का एक पौधा खेत में लगाने के बाद 3 साल तक उसमें से फूल मिलते हैं इसके बाद दोबारा प्लांटेशन किया जाता है।

माना जाता है अंग्रेज लेकर आए डच गुलाब

हॉलैंड (वर्तमान नीदरलैंड) के निवासी डच कहलाते है। पुर्तगालियों के बाद डचों ने भारत में अपने कदम रखें। ऐतिहासिक दृष्टि से डच समुद्री व्यापार में निपुण थे। 1602 ई में नीदरलैंड की यूनाइटेड ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना की गई और डच सरकार द्वारा उसे भारत सहित ईस्ट इंडिया के साथ व्यापार करने की अनुमति प्रदान की गई। 1605 ई में डचों ने आंध्र प्रदेश के मुसलीपत्तनम में अपनी पहली फैक्ट्री स्थापित की। जानकारों का मानना है कि भारत में तब से ही उनका पसंदीदा गुलाब का पौधा भी भारत आया और भारत के भी कई हिस्सों में डच की 10 गुलाब की खेती होने लगी।

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