कोरबा: आदिवासी विकास विभाग,कोरबा एक बार फिर चर्चा में हैं। ताजा मामला आदिवासी विभाग के छात्रावासों के मरम्मत और सामान खरीदी के लिए केंद्र सरकार से मिले करोड़ो रूपये के फंड का है जिसकी मूल नस्ती ही कार्यालय से गायब हो गयी हैं। बताया जा रहा हैं कि 6 करोड़ 62 लाख रूपये में करीब 3 करोड़ रूपये का विभाग ने कई ठेकेदारों को भुगतान भी कर दिया, लेकिन किस काम के एवज में कितना भुगतान किया गया, इससे जुड़े सारे दस्तावेज ही विभाग से गायब हैं। ऐसे में आदिवासी विकास विभाग के सहायक आयुक्त ने दस्तावेज नही मिलने पर मामले में एफआईआर दर्ज कराने की बात कही हैं।
बता दें कि वर्तमान प्रकरण कोरबा आदिवासी विकास विभाग की विवादित पूर्व सहायक आयुक्त माया वारियर के कार्यकाल से जुड़ा है। कोरबा में अपने कार्यकाल के दौरान उनके ऊपर विभागीय निविदाओं में भ्रष्टाचार करने, अपने चुनिंदा ठेकेदारों को अनुचित लाभ पहुंचाने तथा डीएमएफ, राज्य सरकार व केंद्र सरकार से प्राप्त फंड का दुरुपयोग करने के आरोप लगते रहे थे।
मैडम माया की काली छाया
गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ का कोरबा जिला केंद्र सरकार के आकांक्षी जिला की सूची में होने के साथ ही आदिवासी बाहुल्य जिला घोषित हैं। ऐसे में कोरबा जिला में संचालित आदिवासी बालक-बालिका छात्रावासों में पढ़ने वाले छात्रों के बेहतरी और उज्जवल भविष्य के लिए प्रदेश सरकार के साथ ही केंद्र सरकार भी विशेष पैकेज प्रदान करती हैं। मौजूदा वक्त में केंद्र सरकार से वर्ष 2021-22 में परियोजना मद से अनुच्छेद 275 (1) के तहत कोरबा जिला को 6 करोड़ 62 लाख 29 हजार रूपये जारी किया गया था। इस मद से कोरबा जिला में संचालित आदिवासी आश्रम,छात्रावासों के लिए जरूरी सामानों की खरीदी के साथ ही मरम्मत का कार्य कराया जाना था।बताया जा रहा हैं कि तत्कालीन सहायक आयुक्त माया वारियर के द्वारा इस मद से कई छात्रावासों में कार्य कराने के साथ ही छात्रावास और आश्रमों के लिए सामानों की खरीदी की गयी। इसके एवज में करीब 3 करोड़ रूपये का फंड भी संबंधित ठेकेदारों को भुगतान करा गया है। लेकिन इसी बीच राज्य स्तर से सहायक आयुक्त का तबादला आदेश जारी हो गया। 25 मार्च को नवपदस्थ सहायक आयुक्त श्रीकांत कसेर ने विभाग की कमान संभाली। सहायक आयुक्त श्रीकांत कसेर की माने तो केंद्र सरकार से मिले फंड की सारी जानकारी और कार्यो की प्रगति “आदि ग्राम पोर्टल” पर अपलोड किया जाना होता हैं। वित्तीय वर्ष की समाप्ति में जब कार्य का स्टेटस अपलोड करने के लिए उक्त कार्यो की जानकारी विभाग से चाही गयी, तो विभाग से सारे रिकार्ड ही गायब मिले।
सहायक आयुक्त श्रीकांत कसेर ने बताया कि केंद्र सरकार से मिले फंड से किन-किन छात्रावासों में क्या काम कराये गये या फिर किन किन सामनों की खरीदी की गयी, इस संबंध में विभाग में एक भी रिकार्ड मौजूद नही हैं। विभाग से रिकार्ड के साथ ही वित्तीय पंजी, एमबी बूक सहित मामले से संबंधित सभी दस्तावेज गायब हैं। उन्होने बताया कि 31 मार्च 2023 की तिथि तक बैंक से पेमेंट भुगतान किया गया हैं। मामला उजागर होने पर बैंक स्टेटमेंट भी निकाला गया, लेकिन उक्त स्टेटमेंट में भी फर्म या एजेंसी का उल्लेख नही होने के कारण खर्च की विस्तृत जानकारी अभी तक नही मिल पायी हैं।
सहा.आयुक्त श्रीकांत कसेर ने बताया कि मामले की गंभीरता को देखते हुए तत्काल संबंधित विभाग के बाबू अमन राम को नोटिस जारी कर एक सप्ताह के भीतर सारे दस्तावेज और मूल नस्ती प्रस्तुत करने का आदेश दिया गया हैं। अगर समय पर दस्तावेज नही प्रस्तुत किये जाते हैं, तब इस मामले में पुलिस में एफआईआर दर्ज कराया जायेगा। इस मामले में उच्च अधिकारियों को जानकारी देने के साथ ही पूरे प्रकरण पर सख्ती से कार्रवाई की जायेगी। इस पूरे प्रकरण में जो भी दोषी होगा उसे बख्शा नही जायेगा।
इस प्रकरण में शुरुआत से ही तत्कालीन सहायक आयुक्त माया वारियर व विभागीय कर्मचारियों की कार्यशैली संदिग्ध रही है। उपरोक्त व्याख्यित फंड का उपयोग करते हुए पिछले वर्ष विभाग द्वारा 5 आदिवासी छात्रावासों में रेनोवेशन कार्य कराने हेतु लगभग 1.5 करोड़ की निविदा जारी की गई थी जिसे रहस्यमय तरीके से सितंबर 2022 में निरस्त कर दिया गया था। इसके 2 दिन पश्चात ही 92 लाख रुपए की एक और निविदा को अपरिहार्य कारणों का हवाला देकर निरस्त कर दिया गया। दोनों ही निविदाओं में तत्कालीन सहायक आयुक्त माया वारियर पर निविदा को गुप्त रखते हुए अपने चुनिंदा ठेकेदारों को अनुचित लाभ पहुंचाने तथा अन्य ठेकेदारों को निविदा में भाग नहीं लेने देने का आरोप लगा था। इस संबंध में जब उच्च अधिकारियों से शिकायत हुई तब आनन-फानन में धड़ाधड़ कई निविदाएं बिना कोई कारण बताएं निरस्त कर दी गई।
इस मामले में हो रहे भ्रष्टाचार की पूर्व में ठेकेदार के द्वारा शिकायत की गई थी साथ ही न्यूज एक्शन के द्वारा इस मामले में हो रहे भ्रष्टाचार की खबर अपने पोर्टल पर प्रकाशित भी की गई थी। परंतु उस समय विभाग के द्वारा ना ही ठेकेदार की शिकायत पर ध्यान दिया गया, ना ही न्यूज एक्शन द्वारा चलाई गई खबर को संज्ञान में लिया गया। यह कहना गलत नहीं होगा कि इस मामले में तत्कालीन सहायक आयुक्त माया वारियर के द्वारा जब करोड़ों रुपयों का वारा न्यारा किया जा रहा था तब विभाग कुंभकरण की नींद सो रहा था और अब जब सब छूमंतर हो गया है तो उनकी नींद उड़ी हुई है।