जगदलपुर: बस्तर में सुरक्षा बल के जवानों के लिए आज भी आईईडी बड़ी चुनौती है। इससे निपटने के उपाय सीमित हैं। माओवादी समय-समय पर तकनीक भी बदल रहे हैं, जिसके चलते फोर्स की दिक्कतें और बढ़ रही है।बस्तर क्षेत्र में सुरक्षा बल के जवानों के लिए आईईडी (इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस) एक गंभीर और बड़ी चुनौती है। नक्सलियों व्दारा इसका उपयोग मुख्य रूप से सुरक्षा बल के जवानों के खिलाफ किया जाता है, जिससे जवानों की सुरक्षा को खतरा होता है। इस स्थिति से निपटने के जो कुछ उपाय किए जा सकते हैं, उन पर अफसर लगातार गौर कर रहे हैं।
सुरक्षा बलों को आधुनिक तकनीक जैसे कि ड्रोन, बम डिस्पोजल यूनिट और रॉडार सिस्टम का उपयोग करना चाहिए ताकि आईईडी की पहचान और बम निरोधी उपाय किए जा सकें।जवानों को विशेष प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए ताकि वे आईईडी के संभावित स्थानों की पहचान कर सकें और सुरक्षित रहने के तरीके सीख सकें। स्थानीय लोगों के साथ सहयोग बनाए रखना और उनकी सहायता लेना भी महत्वपूर्ण है। सुरक्षा बलों को एक मजबूत नेटवर्क स्थापित करना चाहिए, जिससे वे एक-दूसरे के साथ जल्दी और प्रभावी ढंग से संपर्क कर सकें। आईईडी के प्रयोग को सीमित करने के लिए नक्सली गतिविधियों पर निगरानी रखना और संभावित खतरनाक क्षेत्रों में गश्त बढ़ाना अत्यंत आवश्यक है।
दरअसल पिछले कुछ समय से मैदानी स्तर पर चल रही फोर्स और नक्सलियों की लड़ाई में माओवादियों को मुंह की खानी पड़ रही है। ऐसे में खीझे नक्सली एक बार फिर से आईईडी को अपना प्रमुख हथियार बनाने में जुटे दिखाई दे रहे हैं। फोर्स के सीनियर ऑफिसर भी अब जरुरी उपायों के माध्यम से बस्तर क्षेत्र में जवानों की सुरक्षा बढ़ाने को लेकर विचार कर रहे हैं ताकि आईईडी जैसी चुनौती का सामना अधिक प्रभावी तरीके से किया जा सके।