कोरबा। कटघोरा वनमंडल अंतर्गत पाली वन परिक्षेत्र के चैतुरगढ़ जंगल एवं इससे लगे चैतमा वन परिक्षेत्र के जंगल में लंबे समय से हिंसक जानवर के विचरण एवं दहाड़ से वनांचल में बसे ग्रामीण दहशत में है, जो पालतू मवेशियों को अपना शिकार बना रहा है। उक्त हिंसक जानवर की पुष्टि तो आधिकारिक तौर पर अबतक नही हो सकी है किंतु उसके पदचिन्ह के अनुसार बाघ अथवा तेंदुआ होने की संभावना जताई जा रही है। वहीं जिन्होंने उस शिकारी जानवर को दूर से देखा है वे बाघ होने की बात कह रहे है।
जिले के ऐतिहासिक महत्त्व का धार्मिक एवं मनमोहक पर्यटन स्थल चैतुरगढ़ की पहाड़ियों में गत ग्रीष्मकालीन ऋतु के समय से एक हिंसक जंगली जानवर का लगातार विचरण हो रहा है। जिसके दहाड़ से पहाड़ी क्षेत्र थर्राया हुआ है तथा जो वनांचल में बसे ग्रामीणों के पालतू जानवरों को अपना निवाला बना रहा है। बताया जा रहा है कि अचानकमार टाईगर रिजर्व चैतुरगढ जंगल से जुड़ा होने के कारण भीषण गर्मी का दौर प्रारंभ होते ही अनेक हिंसक जानवर चारे- पानी की तलाश में इस ओर अपना रुख करते है तथा गर्मी का दौर समाप्त होते ही वे पुनः वापस लौट जाते है, किन्तु उक्त शिकारी जानवर का धमक अभी तक चैतुरगढ की पहाड़ियों में बना हुआ है, जो पाली व इससे लगे चैतमा वन परिक्षेत्र के जंगलों में स्वछंद विचरण कर रहा है और अबतक एक दर्जन से भी अधिक पालतू मवेशियों को अपना शिकार बना चुका है तथा जिसका दहाड़ वनांचल में बसे ग्रामीणों के रोंगटे खड़े कर देने वाला है, जिससे वे दहशत में है। जंगल के रास्ते आवागमन के दौरान कुछ लोगों ने उस जंगली जानवर को दूर से देखा भी है, जिसे बाघ होना बता रहे है। किंतु विभागीय रूप से जिसकी कोई पुष्टि अबतक नही की जा चुकी है। परंतु उसके पदचिन्ह को देखकर बाघ या फिर तेंदुआ होने का अंदाजा लगाया जा रहा है। फिलहाल इसकी पुख्ता पुष्टि तो वन विभाग ही कर सकेगा।
उल्लेखनीय है कि कटघोरा वनमंडल का पाली उप वनमंडल खनिज, वनसंपदा व वन्यजीवों से परिपूर्ण होने के साथ विविध प्रकार के वनोषधि, पादपों से भी भरपूर है। जिजीविषा समिति कोरबा द्वारा कराए गए एक सर्वेक्षण में चैतुरगढ़ लोक संरक्षित क्षेत्र में 100 से अधिक प्रकार की वनस्पतियां प्राप्त हुई है। वहीं यह जंगल जंगली सुअर, लकड़बग्घा, हिरण, भालू, सियार, बंदर, खरगोश, शाही, नेवला, कबर बिज्जू, जैसे आदि जीव का स्वच्छ रहवास है। इस घने जंगल मे उड़न गिलहरी जैसे जीव के होने की भी पुष्टि हुई है तथा बाघ, तेंदुए, वनभैंसा की आवाजाही भी मौसम के अनुसार होते रहता है, जो गर्मी के दिनों में ज्यादातर दिखाई देते है। हाथियों का दल भी इस जंगल मे पहुँच चुका है। जबकि पाली के आसपास समूह में स्वछंद विचरण करने वाले अनगिनत हिरण, चीतल दुर्घटना व कुत्तों के हमले से अकाल मौत का ग्रास बनते आ रहे है।