रायपुर: पॉक्सो अधिनियम, 2012 के प्रभावी क्रियान्वयन के संबंध में छत्तीसगढ उच्च न्यायालय, बिलासपुर के सभागार में एक दिवसीय राज्य स्तरीय कार्यशाला का आयोजन किशोर न्याय समिति छत्तीसगढ उच्च न्यायालय, बिलासपुर के द्वारा छत्तीसगढ़ राज्य न्यायिक एकादमी तथा छत्तीसगढ राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के सहयोग से किया गया।
उपरोक्त कार्यशाला का शुभारंभ न्यायमूति अरूप कुमार गोस्वामी, मुख्य न्यायधीश, छत्तीसगढ उच्च न्यायालय तथा मंचस्थ न्यायाधीषगण द्वारा दीप प्रज्ज्वलित कर किया गया। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मुख्य न्यायाधिपति अरूप कुमार गोस्वामी ने कहा कि 2012 में आये पॉक्सो एक्ट पर आज 10 वर्शो के बाद इसके क्रियान्यन के संबंध में समीक्षा कर रहे हैं, इसके क्रियान्वयन में क्या-क्या चुनौतिया है, क्या-क्या कमियां है इस पर हमको विचार करना है इसके क्रियान्वयन के लिए आप सभी की महत्वपूर्ण भागीदारी एवं सहयोग आवष्यक होगा। बच्चों के हित के लिए सभी हितधारको को अपनी भूमिका गंभीरतापूर्वक निभाना होगा। उन्होंने आगे कहा कि आप लोग जो भी जिंदगी में इनके लिए करें पूरी गंभीरता और समर्पण के साथ खुद से और दिल से करें और अच्छे कार्य का अच्छा परिणाम ही प्राप्त होगा। आपको यह भी देखना है कि कहां कमियां, क्या गड़बड़िया हैं, और कहां हम फेल हैं यह भी सोचें और आप अच्छा करने का प्रयास करेंगे।
कार्यशाला को न्यायमूर्ति गौतम भादुड़ी, न्यायधीश छत्तीसगढ उच्च न्यायालय एवं कार्यपालक अध्यक्ष राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के द्वारा विषेश उद्बोधन में कहा कि समाज को ऐसी मानसिकता से बाहर आना है कि देश में केवल छोटी बालिकाएं ही असुरक्षित हैं, परंतु आंकड़ो के अनुसार छोटे बालकों को भी खतरा है। यहां यह भी उल्लेखनिय है कि इन अपराधों के लिए पुरुषों को ही अपराधी माना जाता है जबकि कई बार महिलाओं का भी इसमें बराबर की सहभागिता रहती है। उन्होनें अपने संबोधन में यह भी कहा कि अधिनियम में स्वास्थ्य परीक्षण के लिए महिला चिकित्सकों ही अधिकृत किया गया है।
न्यायमूर्ति संजय के अग्रवाल, न्यायाधीश छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय एवं अध्यक्ष, गवर्निंग बॉडी, छत्तीसगढ़ राज्य न्यायि एकादमी ने अपने की-नोट एड्रेस में कहा कि माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा पारित निपुन सक्सेना मामले मे अभिधारित दिशा-निर्देशों का न केवल विषेश पॉक्सों न्यायाधीष अपितु पुलिस प्रशासन भी कड़ाई से पालन करना सुनिश्चित करें।
न्यायमूर्ति पी.सैम कोषी, न्यायाधीश छत्तीसगढ उच्च न्यायालय ने संबोधित करते हुए कहा कि बालकों के विरूद्ध लैंगिक अपराध पर भारत में खुलकर चर्चा न कर इसे वर्जित विशय समझा जाता है। गुड टच, बैड टच, यौन सहमति के संबंध में बातचीत नहीं होने एवं इस संबंध में अपराधों को रिपोर्ट नहीं करने कारण इन अपराधों में वृद्धि होती है। उन्होंने कहा कि संविधान के अंतर्गत हम सब का यह दायित्व है कि किसी भी प्रकार की हिंसा बच्चों के विरूद्ध उचित एवं क्षम्य नहीं होनी चाहिए। स्वागत भाशण न्यायमूर्ति अरविंद सिंह चंदेल, न्यायधीश छत्तीसगढ उच्च न्यायालय एवं अध्यक्ष किषोर न्याय समिति तथा शुभारंभ कार्यक्रम का आभार प्रदर्षन माननीय न्यायमूर्ति दीपक कुमार तिवारी, न्यायाधीष छत्तीसगढ उच्च न्यायालय एवं अध्यक्ष किशोर न्याय समिति द्वारा किया गया।
कार्यशाला के प्रथम सत्र् की अध्यक्षता न्यायमूर्ति पी. सैम कोषी द्वारा की गई तथा सदस्य के रूप में माननीय न्यायमूर्ति अरविंद सिंह चंदेल, तेजकुंवर नेताम, अध्यक्ष, बाल राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग, दिव्या उमेष मिश्रा, संचालक, महिला एवं बाल विकास विभाग तथा तृतीय सत्र् की अध्यक्षता न्यायमूर्ति अरविंद सिंह चंदेल तथा सदस्य माननीय न्यायमूर्ति दीपक कुमार तिवारी, अरूण देव गौतम, सचिव, गृह विभाग एवं जॉब जकारिया, चिफ ऑफिसर, यूनिसेफ द्वारा किया गया है। न्यायमूर्ति दीपक कुमार तिवारी, सदस्य, उच्च न्यायालय किशोर न्याय समिति, छत्तीसगढ़ द्वारा समापन उद्बोधन दिया गया।
इस अवसर पर छत्तीसगढ़ राज्य न्यायिक अकादमी, महिला एवं बाल विकास विभाग, छत्तीसगढ़ शासन, यूनिसेफ छत्तीसगढ़ राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण, बाल अधिकार संरक्षण आयोग, विषेश न्यायालय, पॉक्सो एक्ट के द्वारा प्रेजेन्टेशन प्रस्तुत किये गए। प्रेजेन्टेशन एवं परिचर्चा सुश्मा सावंत, संचालक, छत्तीसगढ़ राज्य न्यायिक अकादमी, आनंद प्रकाश वारियाल, सदस्य सचिव, राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण, डॉ. संजीव शुक्ला, आई.जी., डॉ. वी आर भगत, डिप्टी टायरेक्टर, स्वास्थ्य विभाग, राजकुमार तिवारी, सहायक संचालक, लोक शिक्षण द्वारा किया गया। कार्यक्रम का संचालन गरिमा शर्मा, अतिरिक्त निदेशक, एकादमी द्वारा किया गया। कार्यक्रम में प्रदेश भर से आए जिला किशोर न्याय बोर्ड के प्रधान न्यायाधिश, जिला विधिक प्राधिकरण के सचिव, जिलों में स्थित पॉक्सो न्यायालय के न्यायाधीश एवं अन्य हितधारक उपस्थित थें।