रायपुर: स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा गर्मी के दिनों में स्कूलों में शिक्षकों एवं विद्यार्थियों के लिए सुरक्षा के उपाय के संबंध में एडवाईजरी जारी की है। जिला शिक्षा अधिकारियों की जारी एडवाईजरी में कहा गया है कि स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों विशेष जोखिम में न पड़े इन पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। गर्म हवाओं, लू लगने के सामान्य लक्षण के रूप में उल्टी या दस्त या दोनों का होना पाया जाता है, अत्यधिक प्यास लगती है, तेज बुखार आ सकता है या कभी-कभी मुर्छा भी आ सकती है। इसके लिए पूर्व तैयारी, लोगों में जागरूकता एवं बचाव के उपायों को जानकर ही जीवन को सुरक्षित किया जा सकता है। यह तैयारियां तीन स्तरों- प्रशासन, स्कूल एवं परिवार स्तर पर किया जा सकता है।
लू लगने पर व्यक्ति को छांव में लिटा दें। अगर तंग कपड़े हो तो उन्हें ढीला कर दें अथवा हटा दे। ठंडे गीले कपड़े से शरीर पोछे या ठंडे पानी से नहलाएं व्यक्ति को ओआरएस, नीबू, पानी, नमक-चीनी का घोल पीने को दें, जो शरीर में जल की मात्रा को बढ़ा सके। यदि व्यक्ति पानी की उल्टियां करे या बेहोश हो, तो उसे कुछ भी खाने और पीने को न दें। लू लगे व्यक्ति की हालत में एक घंटे तक सुधार न हो तो उसे तुरंत नजदीकी स्वास्थ्य केन्द्र में ले जाएं।
जिला शिक्षा अधिकारियों से कहा गया है कि वे शासन स्तर पर गर्म हवाओं, लू लगने के लक्षण एवं प्राथमिक उपचार के संदर्भ में सभी शिक्षकों, विकासखण्ड स्तर पर कार्य करने वाले अधिकारियों का संवेदीकरण किया जाए एवं यह भी बताया जाए कि किन लक्षणों के होने पर प्रभावित को तत्काल विशेष चिकित्सकीय सहायता की आवश्कता होगी। गर्म हवाओं, लू के चलने के दौरान या तापमान के सामान्य से रहने पर स्थितियों की समीक्षा कर आवश्यकतानुसार स्कूलों के संचालन के समय में बदलाव किया जा सकता है। इसके लिए स्कूल शिक्षा विभाग से प्राप्त निर्देश अनुसार आवश्यक कार्यवाही सुनिश्चित की जाए। गर्म हवाओं, लू से प्रभावित होने पर तत्काल क्या किया जाना चाहिए और क्या नहीं की जानकारी प्राप्त कर उसका प्रचार-प्रसार किया जाना सुनिश्चित किया जाए। सभी स्कूलों में सुनिश्चित किया जाए कि लू लगने की स्थिति में प्रभावितों के लिए पर्याप्त मात्रा में ओआरएस पाउडर जो हीट स्ट्रोक में प्रयोग की जाती है वह सुलभ रहे। लू के चलने के दौरान उसकी चपेट में आने पर लोगों को समुचित चिकित्सा सुलभ करने के लिए जिले के स्वास्थ्य विभाग से समन्वय स्थापित करें। इसमें प्राथकिता के आधार पर प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों, सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों, स्थानीय चिकित्सालयों आवश्यकतानुसार उपचार, भर्ती कराया जा सके।
शाला स्तर पर सभी शालाओं पर पेयजल स्रोत की सही तरीके से जांच कर ली जाए और यदि आवश्यकता हो तो उसे मरम्मत करा लिया जाए जिससे शुद्ध पेयजल की आपूर्ति में बाधा न पड़े। बच्चों को पेयजल सुलभ तरीके से उपलब्ध हो इसकी व्यवस्था की जाए। सभी शालाओं पर सुनिश्चित किया जाए कि ओ.आर.एस. पाउडर तथा उसके विकल्प के रूप में नमक व चीनी उपलब्धता पर्याप्त मात्र में रहे जो ताप-घात, उल्टी व दस्त होने में प्रयोग किया जाता है। गरम हवाओं लू के चने के दौरान या तापमान के सामान्य से अधिक रहने के दौरान शालाओं का संचालन किन्ही भी परिस्थितियों में टीन शेड के नीचे, खुले में पेड़ के नीचे एस्बेस्टम शीट के नीचे संचालित नहीं किया जाए। ऐसी परिस्थितियों के लिए पहले से उपयुक्त स्थान का चयन पूर्व में ही कर लिया जाए जिन शालाओं का विद्युतीकरण हो चुका है, वहां स्थानीय स्तर पर विद्युत विभाग के कर्मियों से समन्वय थापित कर सुनिश्चित कराएं कि स्कूल में विद्युत आपूर्ति होती रहे और स्थानीय स्तर पर पंचायत के समन्वय से केन्द्र पर पंखा लगवाने का प्रयास किया जाए। प्रातःकाल बच्चे जब स्कूल आते है तो सर्वप्रथम उनके स्वास्थ्य के बारे में जानकारी प्राप्त कर ली जाए। उनकों पिछले 8-10 घंटों के दौरान उल्दी-दस्त या अन्य जैसे बुखार, शरीर में दर्द आदि की परेशानी हुई हो तो तुरंत उस बच्चे के अभिभावक को सूचना देकर सलाह दी जाए कि बच्चे को देखरेख में रखा जाए और आवश्यकता होने पर चिकित्सक की सलाह ली जाए।
परिवार स्तर पर यदि अतिआवश्यक न हो तो दोपहर में बच्चों को घर से बाहर न निकलने दे, यथासंभव सूती, हल्का या हल्के रंग का कपड़ा पहनाएं। थोड़े-थोड़े अंतराल पर पानी पीने को देते रहे. यथासंभव हो सके तो पानी में ग्लूकोस मिलाकर दे। हल्का व थोड़ा भोजन दें, भोजन को कई बार खिलाये ताजा पका हुआ ही भोजन करें एवं बासी भोजन कदापि न करें। तेज धूप में बच्चों को खेलने के लिए बाहर न जाने दे। बच्चों को जानकारी दी जाए कि वह घर से स्कूल तक सिर पर टोपी, गमछा या छाता जो भी सुलभ हो लेकर आए। लू लग जाने पर तौलिया, गमछा ठंडी पानी में भिगोकर सिर पर रखे। पूरे शरीर को भीगे कपड़े से बार-बार पोंछते रहे, जिससे शरीर का तापमान बढ़ने न पाए। लू लगने पर आम का पना का घोल एवं नारियल का पानी पीने को दे। ओआरएस का घोल एवं ग्लूकोस भी नियमित रूप से देते रहे ताजी बनी दाल का पानी, चावल का माड़ में थोड़ा सा नमक मिलाकर बच्चों को उनकी रूचि एवं पचने के अनुसार दिया जा सकता है। गंभीर स्थिति होने पर तुरंत नजदीक के अस्पताल में भर्ती कराएं एवं चिकित्सक की सलाह ली जाए। परिवार स्तर पर किए जाने वाले कार्यों की जानकारियों को सभी बच्चों नोट करावाया जाए ताकि सभी घरों तक संदेश पहुंच सकें।