बिलासपुर: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने कोरबा, सरगुजा, बस्तर में होने वाले 2700 सहायक शिक्षकों की भर्ती से रोक हटा दी है। चीफ जस्टिस अरूप कुमार गोस्वामी और जस्टिस गौतम चौरड़िया की डिवीजन बेंच ने कहा है कि संविधान की 5वीं अनुसूची के तहत राज्यपाल मूलभूत अधिकार को कम नहीं कर सकते हैं। इसके साथ ही डिवीजन बेंच ने स्थानीय को ही अवसर देने की अधिसूचना को असंवैधानिक मानते हुए निरस्त कर दिया है। कोर्ट के इस आदेश के बाद अब प्रदेश भर के युवक भर्ती में शामिल हो सकते हैं।

दरअसल, शुशांत शेखर धराई और उमेश श्रीवास ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। इसमें बताया है कि संविधान की 5वी अनुसूची के तहत मिले अधिकारों का प्रयोग करते हुए राज्यपाल ने 17 जनवरी 2012 को अधिसूचना जारी की थी। इसके अनुसार बस्तर और सरगुजा जैसे आदिवासी क्षेत्रों में तृतीय व चतुर्थ श्रेणी के पदों के लिए स्थानीय निवासियों को ही मौका दिया गया। यह आदेश पहले दो साल के लिए जारी किया गया था, जिसे बाद में अलग-अलग समय में बढ़ाया गया। इसे अब साल 2023 तक लागू किया गया है। बस्तर व सरगुजा के साथ ही कोरबा जिले के लिए भी यही नियम लागू है।

याचिकाकर्ताओं ने राज्यपाल के इस अधिसूचना को चुनौती देते हुए संविधान के खिलाफ बताया है। साथ ही कहा कि संविधान की अनुच्छेद 16 के तहत राज्य के किसी भी नागरिक को धर्म, जाति, जन्म स्थान निवास, लिंग के आधार पर नौकरी में विभेद नहीं किया जा सकता। प्रत्येक नागरिक को राज्य में नियुक्ति प्रक्रिया में भाग लेने का समान अधिकार है। अगर निवास के आधार पर विशेष परिस्थिति में आरक्षण लागू करना है तो यह अधिकार सिर्फ संसद को है। योग्यता को दरकिनार कर निवास के आधार पर किसी व्यक्ति को विभाजित नहीं किया जा सकता।

राज्य सरकार ने प्रदेश के सभी जिलों के साथ ही कोरबा जिला, सरगुजा व बस्तर संभाग में 19 मार्च 2019 को सहायक शिक्षकों की भर्ती के लिए विज्ञापन जारी किया था। इसमें पूरे राज्य के अभ्यर्थियों ने भाग लिया, लेकिन दूसरे जिलों के आवेदकों को भर्ती का मौका नहीं दिया गया। याचिकाकर्ताओं ने इन जिलों में भर्ती में शामिल होने की अनुमति देने की मांग को लेकर याचिका लगाई थी। प्रारंभिक सुनवाई के बाद डिवीजन बेंच ने 5वीं अनुसूची में शामिल जिलों में सहायक शिक्षकों की भर्ती पर रोक लगा दी थी।

संविधान में सभी नागरिकों को समान रूप से रोजगार का अवसर दिया है तो उसे 5वीं अनुसूची के तहत हटाया नहीं जा सकता। विशेष परिस्थिति में आवश्यक हो तो संसद ही निवास के आधार पर आरक्षण लागू कर सकती है। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता के इन तर्कों पर हाईकोर्ट ने सहमति जताई है। कोर्ट ने कहा है कि राज्यपाल और राज्य शासन को यह अधिकार नहीं है। कोर्ट ने यह भी कहा है कि विशेष परिस्थिति में आवश्यक हो तो संसद ही अनुच्छेद 16 (3) के तहत निवास के आधार पर आरक्षण लागू कर सकता है।

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