बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में टोना-जादू के शक में अपनी चाची की हत्या करने के मामले में जेल में बंद अभियुक्त को छोड़ने का आदेश दिया है। दरअसल, वह इस मामले में नौ साल तक जेल में रह चुका है और कोर्ट ने इस घटना को गैर इरादतन हत्या माना है। उसके लिए अब तक की सजा को पर्याप्त माना है। डिवीजन बेंच ने निचली अदालत के फैसले को रद करते हुए अपीलकर्ताओं को रिहा करने का आदेश दिया है।

आरोपित की पत्नी बीमार पड़ गई थी। उसे संदेह था कि मृतका ने जादू टोना किया है। लिहाजा मृतका और आरोपित के बीच विवाद हो गया। इस पर उसने मृतका पर तेज धार वाले हथियार से हमला कर दिया। इससे उसकी मौत हो गई।

जांच के बाद पुलिस ने हत्या का अपराध दर्ज कर लिया। मामले की सुनवाई के बाद निचली अदालत ने अपीलकर्ता को ही आइपीसी की धारा 302 और छत्तीसगढ़ टोनही प्रथा अधिनियम की धारा चार के तहत दोषी ठहराया और अन्य चार आरोपितों को आरोप से बरी कर दिया।

विचारण न्यायालय के फैसले को चुनौती देते हुए अपीलार्थी ने हाई कोर्ट में अपील पेश की। जस्टिस संजय के अग्रवाल और जस्टिस राधाकिशन अग्रवाल की डिवीजन बेंच ने माना कि चोट की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए मौत का कारण बनने का कोई इरादा नहीं है, लेकिन अपीलकर्ता को इस बात की जानकारी होनी चाहिए कि उसके द्वारा मृतक को पहुंचाई गई चोट से मौत होने की संभावना है और अपीलकर्ता ने कोई अनुचित लाभ नहीं उठाया है।

कोर्ट ने यह भी माना कि वह गांव, जहां मृतक और अपीलकर्ता दोनों रहते थे, पिछड़ा क्षेत्र है और वे अल्प विकसित समुदाय से थे। उनमें से अधिकांश अशिक्षित हैं और अंधविश्वासों में विश्वास करते हैं। इस पृष्ठभूमि में समुदाय बहुल क्षेत्रों में यह सामान्य घटना है।


डिवीजन बेंच ने सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का हवाला दिया। इसमें उन मानदंडों को विस्तार से बताया गया, जिनके लिए हत्या की सजा को गैर इरादतन हत्या की सजा में बदलने की जरूरत है। हाई कोर्ट ने अर्जुन बनाम छत्तीसगढ़ राज्य के एक मामले का खासतौर पर जिक्र किया है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने माना कि यदि इरादा और ज्ञान है तो आइपीसी की धारा 304 एक के तहत मामला बनेगा। दि यह केवल ज्ञान है और हत्या और शारीरिक चोट पहुंचाने का इरादा नहीं है तो वही आइपीसी की धारा 304 दो का मामला बनेगा।

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