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बिलासपुर: नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की भोपाल बेंच ने परसा कोयला खदान को दी गई वन अनुमति को चुनौती देने वाली अपील पर केंद्र सरकार, राज्य सरकार, राजस्थान विद्युत मंडल और अडाणी कंपनी को नोटिस जारी कर चार सप्ताह में जवाब मांगा है। यह अपील वरिष्ठ आदिवासी कार्यकर्ता संतकुमार नेताम द्वारा दाखिल की गई है। इसमें वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट आफ इंडिया की रिपोर्ट को आधार बनाया गया है। इसके अनुसार हसदेव क्षेत्र में कोयला खनन बढ़ाने से मानव-हाथी संघर्ष बढ़ने और नए क्षेत्रों में फैलने की चेतावनी दी गई है।
पूर्व में पीईकेबी खदान की वन अनुमति को एनजीटी प्रधानपीठ ने रद कर दिया गया था और हसदेव क्षेत्र में डब्ल्यूआइआइ से अध्ययन कराने के निर्देश दिये थे। बाद में सुप्रीम कोर्ट की दखल के बाद इसका अध्ययन कराया गया। डब्ल्यूआइआइ के अलावा एक और संस्था आइसीएफआरइ ( इंडियन कौंसिल फार फारेस्ट रिसर्च एंड एजुकेशन) को यह जिम्मेदारी संयुक्त रूप से दी गई। दोनों ही संस्थाओं के विस्तृत अध्ययन में हसदेव वन क्षेत्र और परसा ब्लाक को विभिन्न् जंगली जानवरों समेत अत्यधिक महत्वपूर्ण जैव विविधता वाला क्षेत्र बताया गया। दोनों ही संस्थाओं ने स्वीकार किया कि इस इलाके में खनन होने से वन पर्यावरण को अपूर्णीय क्षति होगी। डब्ल्यूआइआइ ने स्पष्ट रूप से कोई और खनन अनुमति न देने की सिफारिश की।
परन्तु आइसीएफआरई ने कहा कि राजस्थान अडाणी वाले कोल ब्लाकों में खनन कर सकते है। 23 मई को एनजीटी की भोपाल बेंच में हुई। सुनवाई में अधिवक्ता सौरभ शर्मा और राहुल चौधरी ने खंडपीठ को बताया कि इस इलाके में खनन किया जाना आवश्यक नही है और देश में कई कोयला ब्लाक जंगलों के बाहर उपलब्ध हैं। संक्षिप्त सुनवाई के बाद जस्टिस शिव कुमार सेन और डा. अरुण कुमार वर्मा (विशेषज्ञ सदस्य) ने सभी प्रतिवादियों केन्द्र सरकार, राज्य सरकार, राजस्थान विद्युत मंडल और अडाणी कंपनी को नोटिस जारी कर चार सप्ताह में जवाब देने के निर्देश दिये हैं। मामले की अगली सुनवाई 18 जुलाई को रखी गई है। इस दिन छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा जारी अंतिम वन अनुमति पर रोक लगाने वाली याचिका पर बहस होगी।