जगदलपुर: इंद्रावती नदी के किनारे बसे घाट कवाली के ग्रामीणों ने अपनी प्राणदायिनी नदी को सोने की नाव और चांदी की पतवार भेंट की । यहां के किसानों और ग्रामीणों के जीवन का आधार इंद्रावती नदी है।यह परम्परा 700 सालों से चली आ रही है । राजकीय व्यवस्था में हर साल इंद्रावती। में कई बार बाढ़ आती थी और पुराना पल जो एकमात्र आने जाने का जरिया था उस पर 15 से 20 फुट तक पानी चढ़ जाता था । तब राजा हाथी पर सवार होकर सोने की नाव और चांदी की पतवार नदी को भेंट कर बाढ़ से राहत की प्रार्थना करता था ।उसके बाद नदी का पानी उतरता था ।

जिला मुख्यालय से 10 किमी दूर ग्राम घाट कव्वाली इंद्रावती नदी के किनारे बसा पुराना गांव है। यह नदी ही यहां के किसानों और ग्रामीणों का जीवन आधार है। नदी के प्रति अपना कर्तव्य तथा आभार व्यक्त करने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष भाद्र मास शुक्ल पक्ष तृतीया के दिन नदी किनारे घाट कवाली के सैंकड़ों ग्रामीण जुटते हैं और अपनी प्राणदायिनी को सोने की नाव और चांदी की पतवार भेंट करते हैं। यह परंपरा लगभग 700 साल पुरानी है।

ग्राम पुजारी मंगतू राम कश्यप और ग्रामीण गांव की जमींदारीन जलनी माता का छत्र लेकर इंद्रावती किनारे नावघाट में एकत्र हुए। ग्राम पुजारी द्वारा जलनी माता के छत्र की सेवा अर्जी करने के बाद और इंद्रावती को सोने का नाव चांदी का पतवार, साठिया धान की बाली, लाई – चना, लांदा, गुड़, चिवड़ा, अंडा के अलावा सफेद बकरा- मुर्गा की भेंट देकर नवाखानी त्यौहार मनाने की अनुमति मांगी।

बताया गया कि पुजारी ने आगामी छह सितंबर को घाट कवाली में नवाखानी तिहार मनाने की अनुमति दी है। घाटजात्रा मेंग्राम प्रमुखों के अलावा करंजी, भाटपाल, चोकर, कुड़कानार के ग्रामीण भी शामिल रहे। पूर्व सरपंच सुकरु राम कश्यप ने बताया कि यह परंपरा लगभग सात सौ वर्षों से चली आ रही है।

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