कोरबा: सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगने के बाद वन से पत्ता लाकर दोना पत्तल बनाने वाली महिलाओं का व्यवसाय फिर से पटरी पर लौटने लगा है। गुलमोहर परिवार का सदस्य फनेरा वहली जिसे स्थानीय भाषा में माहुल पत्ता कहते हैं। यह सिंगल यूज प्लास्टिक का विकल्प बनकर सामने आया है। छुुरीकला की महिला समूह माहुल पत्ता से दोना पत्तल तैयार कर आत्मनिर्भरता की राह पर चल पड़ीं हैं।
एक जुलाई से केंद्र सरकार ने देश भर में सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगा दिया है। उसके बाद सिंगल यूज प्लास्टिक सामग्री के लिए जूट कागज, कपड़ा, बांस आदि को विकल्प के रूप में उपयोग किया जा रहा। छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले के छुरीकला की प्रेरणा महिला स्व-सहायता समूह करीब पांच साल पहले से पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में काम करते हुए माहुल पत्ता को प्लास्टिक के विकल्प के रूप में तलाश लिया था। समूह की महिलाएं इससे दोना पत्तल का निर्माण तब से कर रहीं हैं। 50 रुपये में 60 प्लास्टिक प्लेट मिलती है इसलिए दोना पत्तल चलन से बाहर हो गया था। अब प्लास्टिक के उपयोग पर रोक है तो इसकी मांग फिर बढ़ने लगी है। हालांकि माहुल पत्ता से बनी प्लेट 50 रुपये में 30 ही मिल पाएगी। महिलाएं एक वर्ष में चार से पांच लाख दोना पत्तल बना लेतीं हैं। एक पत्ते की सिलाई में एक रुपये खर्च आता है। रियायती दर पर पत्ता आपूर्ति करने में कटघोरा वनमंडल सहयोग करता है। वन विभाग ने महिला समूह को प्रेशर मशीन व अन्य सहयोग भी दिया है। महिलाओं का कहना है कि प्रशासन यदि सभी तरह के सरकारी कार्यक्रमों में दोना पत्तल के उपयोग को अनिवार्य कर दे तो प्लास्टिक के उपयोग में निश्चित कमी आएगी। माहुल पत्ता से बने सामग्री के उपयोग को बढ़ावा देने अब जिले के अन्य स्व-सहायता महिला समूहों को भी इसके लिए प्रशिक्षित कर कुटीर उद्योग से जोड़ने की तैयारी प्रशासन कर रही। प्रथम चरण में पाली, मोरगा व लेमरू में इकाई लगाकर क्षेत्र की महिलाओं को जोड़ा जाएगा।
उपलब्धता पर्याप्त, हल्का व मजबूत भी
छुरीकला की महिला स्व सहायता समूह की अध्यक्ष दुर्गा देवांगन ने बताया कि आम तौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में पलाश और साल पेड़ के पत्तों से दोना व पत्तल बिना मशीन के उपयोग के तैयार किया जाता है। इन पत्तों से व्यवसायिक स्तर पर दोना पत्तल तैयार करना मुश्किल है। माहुल का आकार बड़ा होता है। दो पत्तों को एक साथ सिलाई मशीन से सिलकर प्रेशर मशीन में डालकर पत्तल तैयार करते हैं। माहुल पत्ता लेमरू, राहा, सपलवा, केंदई व बाड़ी उमराव के जंगल में पर्याप्त है। अन्य पत्तों के मुकाबले यह बड़ा होने के साथ हल्का व मजबूत है।
जैविक के साथ पर्यावरण के अनुकूल
कटघोरा वन परिक्षेत्राधिकारी एस के मिश्रा का कहना है कि प्रेरणा महिला स्व-सहायता समूह की महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने वन विकास समिति की ओर से सिलाई व प्रेशर मशीन निश्शुल्क उपलब्ध कराया गया है। 11 महिलाएं दोना व पत्तल बनाने का काम कर रहीं हैं। प्रत्येक महिलाओं को प्रतिमाह पांच हजार से अधिक आमदनी हो रही। घर खर्च से लेकर बच्चों की पढ़ाई का खर्च अब महिलाएं खुद उठा ले रहीं। माहुल पत्ता जैविक अपक्षय होता है इसलिए पर्यावरण के अनुकूल तो है ही, औषधीय गुणों के कारण स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायी है।