जगदलपुर: छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में कांगेर वैली नेशनल पार्क में के कोटमसर गांव है । जहां हर तीसरे साल देवी के भक्त और मन्नत पूरी होने वाले देवी को चढ़ाते हैं चश्मे । बाद में ये चश्मे समस्याग्रस्त और कठिनाइयों में घिरे भक्तों को प्रसाद स्वरूप
बांट दिए जाते हैं ।

देवी देवता यानि जो देता है उसे चश्मा चढ़ाने के पीछे आदिवासियों का फलसफा और लॉजिक भी जबरदस्त है । भक्तों , मन्नत मांगने वालों पर कृपा तो हर प्रार्थना में होती है । किंतु सबसे बड़ा लॉजिक इंसानियत को दर्शाता है । आदिवासियों का मानना है कि जिस तरह मनुष्यों को आंख की बीमारी और गर्मी की टॉप से बचाव के लिए चश्मे की जरूरत पड़ती है ठीक वैसे ही देवी देवताओं को भी इससे जूझना पड़ता होगा । इसीलिए हम उन्हें चश्मा चढ़ाते हैं ।

बास्ताबुंदिन देवी का मंदिर गांव से कुछ दूर जंगल में है। जहां हर 3 साल में जात्रा होती है । जात्रा में आसपास के कई गांव के लोग शामिल होते हैं । इसके अलावा मन्नत मांगने और मन्नत पूरी होने वाले लोग देवी के लिए चश्मे लेकर आते हैं उन्हें अर्पित करने ।

बस्तर अपनी विशिष्ट सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत के लिए विख्यात है। आदिम जनजाति भूल इस अंचल में जहां सामाजिक , धार्मिक जीवन शैली उनका अभिन्न अंग है वहीं तंत्र मंत्र , देव भूत, जादू टोना भी इनके रोजमर्रा में निहित है । सैकड़ों की संख्या में इनके पूजित देवी देवताओं की भी विचित्र कहानियां हैं । जिन पर इनकी अटूट आस्था खोखली नहीं बल्कि बल्कि ये उन्हें अच्छे से ठोके बजाकर जांचने परखने के बाद ही उन पर आंख मूंद कर भरोसा करते हैं ।
बस्तर के आदिवासियों की धार्मिक , सांस्कृतिक आस्था का जवाब नहीं । शायद ही कहीं और उनकी सोच नजर आए ।

जल जंगल और जमीन पर आश्रित जनजातीय के लोग इन सबके हरे भरे रहने की कामना करते हैं. दरअसल बस्तर के आदिवासियों के लिए बस्तर के घने जंगल जीवन यापन के लिए सबसे उत्तम और कुदरती देन है. आदिवासियों का मानना है कि उनके ग्राम देवी देवताओं से उन्हें जंगल प्रकृति ने वरदान स्वरूप मिले हैं।


आदिवासी अपने जंगल को जान से भी ज्यादा चाहते हैं. वे ना केवल जगंल का संरक्षण संवर्धन मन से करते हैं बल्कि अपनी आराध्य देवी से मन्नत मांगते हैं कि उनके जंगल को किसी की बुरी नजर न लगे ।

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