किसानों को सिंचाई सुविधा मिलने से दोहरी फसलों के साथ मौसमी सब्जियों का कर रहे उत्पादन

जशपुर: राज्य सरकार की महत्वाकांक्षी ‘नरवा विकास योजना’ के तहत नाला सफाई कार्यों से जिले में भू-जल संरक्षण में बढ़ोत्तरी के साथ ही वनांचल की अनउपजाऊ भूमि भी उपजाऊ बन रही है। जिले में नरवा विकास के अंतर्गत नालों के संरक्षण तथा संवर्धन एवं भूमि कटाव को रोकने संबंधी किए जा रहे विभिन्न कार्य भू-जल के संरक्षण और संवर्धन में काफी मददगार साबित हो रहे है। वन क्षेत्रों में नाला उपचार के लिए स्टॉप डैम, बोल्डर चेक डैम, गेबियन इत्यादि भू-जल आवर्धन संबंधी संरचनाओं का निर्माण तेजी से किया जा रहा है। जिनसे वर्षा के जल को रोककर उसका उपयोग सिंचाई एवं निस्तारी के लिए किया जा रहा है।
इसी कड़ी में पत्थलगांव के पतराटोली में नरवा सवंर्धन अंतर्गत नरवा विकास का कार्य किया जा रहा है। साथ ही भू-जल आवर्धन संबंधी संरचनाओं का निर्माण किया जा रहा है। जिसके अंतर्गत नाला सफाई, 48 ब्रशहुड निर्माण, 15 बोल्डर चेकडेम एवं 6 गली प्लग का निर्माण किया गया है। ग्राम पंचायत पतराटोली में नाला सफाई कार्य नरेगा के अन्तर्गत स्वीकृति होने के कारण ग्राम वासियों को मनरेगा अन्तर्गत रोजगार की प्राप्ति हुई है, जिसमें 68 परिवारों के 125 मजदूर द्वारा 3226 मानव दिवस अर्जित किया गया है।
छत्तीसगढ़ शासन के महत्वपूर्ण योजना में से एक नरवा कार्यक्रम के तहत किए गए नाला सफाई के कार्य में नाला के स्तर के साथ-साथ वहां के जैव विविधता का भी सुक्ष्म रूप से ख्याल रखा जाता है जिससे की जलीय जीव को बिना नुकसान पहुचांए, नाला उपचार का कार्य किया गया। नाला सफाई होने के कारण पानी का स्त्रोत साल भर बना रहता है एवं मवेशियों को सभी मौसम में पेयजल प्राप्त हो रही है वहीं किसानों को सिंचाई सुविधा में आसानी होने लगी है। जिससे किसानों के फसल की पैदावार में वृद्धि हो रही है। अब किसान सिंचाई की सुविधा को देखते हुए दोहरी फसल के साथ ही साग-सब्जी का उत्पादन भी करने लगे है। दोहरी फसल से उनकी आय में भी वृद्धि होने एवं जीवन स्तर सुधार हुआ है।

नाला उपचार से हुए लाभ के संबंध में ग्रामीणों ने अपनी विचार व्यक्त करते हुए बताया कि नाला सफाई का प्रभाव समीपस्थ जल स्त्रोतों पर भी नजर आ रहा है। क्षेत्र के कुआं, डबरी, में भी जल भराव में वृद्धि हुई है। इससे किसानों को सिंचाई के लिए जल आसानी से मिलने लगा है। जिसमें सिंचाई क्षेत्रफल के रकबे में बढ़ोत्तरी, जल स्तर में वृद्धि एवं भूमि कटाव में रोकथाम सहित अन्य लाभ हो रहा है। इससे आसपास के क्षेत्र में वनों के पुनरुत्पादन में भी वृद्धि हुई है।

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