जगदलपुर: हैदराबाद में आयोजित सीसीआरटी (सेंटर फॉर कल्चरल रिसोर्सेज एंड ट्रेनिंग) कार्यशाला में छत्तीसगढ़ की समृद्ध संस्कृति की खुशबू फैली। इस 15 दिवसीय कार्यशाला का मुख्य विषय “शिक्षा में पुतली कला की भूमिका” था, जिसमें छत्तीसगढ़ सहित झारखंड, बिहार, हरियाणा, राजस्थान, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और अरुणाचल प्रदेश के प्राथमिक शिक्षक सहभागी बने।
कार्यशाला के तीसरे दिन छत्तीसगढ़ की टीम ने बस्तर सहित राज्य की संस्कृति, परंपरा, पर्यटन, तीज-त्योहार, खान-पान, वेशभूषा और लोकगीतों की आकर्षक प्रस्तुतियां दीं। विशेष रूप से ठेठरी, खुरमी, अइरसा, खाजा, बताशा, लाई, करी लाड़ू, तीली लाड़ू और कटवा जैसे छत्तीसगढ़ी पकवानों ने प्रदर्शनी में सबका ध्यान आकर्षित किया।इसके साथ ही, पुतरी-पुतरा बिहाव, पोरा-जांता, गेड़ी, नयाखानी, भोजली, मांगरोहन, सीक, पिल्ली, करसा, पर्रा, टुकनी, सूपा, झेझरी, मउहा पान और मंडवा की भी प्रदर्शनी लगाई गई, जिसमें छत्तीसगढ़ की पारंपरिक धरोहरों को जीवंत किया गया।
सांस्कृतिक कार्यक्रमों में छत्तीसगढ़ राजगीत, सुआ नृत्य, पंथी नृत्य, राऊत नाचा, और बस्तर के विशेष गीतों की रंगारंग प्रस्तुतियां दी गईं, जिससे वहां मौजूद सभी राज्यों के प्रतिनिधि छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक धरोहर से रूबरू हुए।
इस कार्यशाला के माध्यम से शिक्षकों को सार्वांगीण शिक्षा प्रदान करने के लिए देश भर से जुटे शिक्षकों को प्रशिक्षित किया जा रहा है, ताकि वे शिक्षा में संस्कृति और परंपराओं का समावेश कर सकें।