बलरामपुर:  रंगों का त्योहार होली इस बार और भी खास होगा, क्योंकि जिले की स्व-सहायता समूह की महिलाएं प्राकृतिक हर्बल गुलाल तैयार कर रही हैं। ग्राम पंचायत भनौरा के गंगा महिला स्व-सहायता समूह की महिलाएं पर्यावरण और स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए हर्बल गुलाल बना रही हैं।

गंगा महिला स्व-सहायता समूह की महिलाओं का मानना है कि पारंपरिक तरीकों से बनाए गए प्राकृतिक गुलाल से न केवल सेहत स्वस्थ्य रहेगा, बल्कि यह पर्यावरण के लिए भी अनुकूल रहेगा। साथ ही महिलाओं के लिए आमदनी का नया स्रोत भी बन रहा है। पिछले वर्ष हर्बल गुलाल की मांग अधिक रही, जिसे देखते हुए इस बार महिलाओं ने रंग बनाना शुरू कर दिया है। बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए कलस्टर की अन्य महिला स्व-सहायता समूहों को भी प्रशिक्षण दिया जा रहा है, ताकि वे भी हर्बल गुलाल तैयार कर सकें।
महिलाओं ने बताया कि गुलाल बनाने की प्रक्रिया पूरी तरह प्राकृतिक है। इसे तैयार करने में औषधीय जड़ी-बूटियों और फूलों का उपयोग किया जाता है, जिससे यह त्वचा के लिए सुरक्षित होता है। विभिन्न रंग बनाने के लिए प्राकृतिक सामग्रियों का उपयोग किया जाता है गुलाबी रंग के लिए चुकंदर और गुलाब की पंखुड़ियां, पीला रंग के लिए हल्दी और गेंदे के फूल, हरा रंग के लिए पालक व मेंहदी के पत्ते, नीला रंग के लिए अपराजिता के फूल और लाल रंग के लिए टेसू के फूलों का इस्तेमाल कर रही है।

जिला प्रशासन एवं राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के सहयोग से महिलाएं हर्बल गुलाल बना रही हैं। यह पहल महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने में सहायक सिद्ध हो रही है। समूह की महिलाओं ने बताया कि वे पिछले पाँच वर्षों से ईको-फ्रेंडली हर्बल गुलाल बनाने का कार्य कर रही हैं। वे कहती हैं कि रासायनिक रंगों की तुलना में प्राकृतिक गुलाल पूरी तरह सुरक्षित होता है और इसके इस्तेमाल से स्वास्थ्य पर कोई भी नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता। महिलाओं ने प्रशासन का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि भविष्य में भी इसी तरह के आजीविका मूलक प्रशिक्षण से अधिक से अधिक महिलाएं आत्मनिर्भर बन सकेंगी।

हर्बल गुलाल की बढ़ती मांग को देखते हुए महिलाएं अब बड़े पैमाने पर बनाने की योजना बना रही हैं। जिससे स्थानीय महिलाओं के लिए आजीविका का नया द्वार भी खुलेगा।

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