बलरामपुर: डीएवी एमपीएस, पतरातु में ख़ूब धूम-धाम से मनाया गया हिन्दी दिवस। ग़ौरतलब है कि स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् संविधान सभा ने हिन्दी को राजभाषा के रूप में दर्जा देने का निर्णय लिया। तत्पश्चात् 14 सितम्बर, 1953 से पूरे भारतवर्ष में हिन्दी दिवस मनाने की परम्परा स्थापित हो गई। जहाँ विद्यालय के कुछ बच्चों ने स्वरचित कविता और कहानी में उत्साहपूर्वक हिस्सा लिया तथा अपनी अंतर्निहित प्रतिभा का जौहर दिखाया। वहीं कुछ बच्चों के द्वारा हिन्दी दिवस की महत्ता को दृष्टिगत रखते हुए सस्वर कविता पाठ भी किया गया।
वास्तव में, हिन्दी हमारी मातृभाषा होने के साथ-साथ हमारे रगों में एहसास बनकर प्रवाहित होती है। हम आज भी अपनी भावनाएँ हिन्दी में साझा करने में ज़्यादा सहज महसूस करते हैं। इसलिए हमें अपनी सहजता और मौलिकता को ज़िंदा रखने की नितांत आवश्यकता है।
हिन्दी विभाग की प्रभारी शिक्षिका रीना तिवारी ने अपने संबोधन में हिन्दी भाषा और हमारे जीवन में उसकी उपयोगिता पर सारगर्भित बातें रखीं, जिससे बच्चों में हिन्दी बोलने, पढ़ने और लिखने के प्रति सकारात्मक भाव व लगाव का प्रस्फुटन देखने को मिला। उन्होंने कहा कि हिन्दी दुनिया की चौथी सबसे ज़्यादा बोली जाने वाली भाषा है। एक ऐसी भाषा, जो वर्तमान में अपनी सशक्तता और समृद्धता का अनूठा मिसाल कायम कर चुकी है। आज अंग्रेज़ी के प्रभाव के बावजूद भी हिन्दी बोलने-लिखने वाले लोगों की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ती ही जा रही है।
विद्यालय के प्राचार्य आशुतोष झा ने भी अपने संबोधन में हिन्दी के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि हिन्दी हमारी मातृभाषा है और हमें अपनी मातृभाषा के प्रति समेकित रूप से हमेशा वफ़ादार बने रहने की ज़रूरत है। तभी हिन्दी को वैश्विक शिखर पर सर्वोच्च स्थान दिलाया जा सकता है। कार्यक्रम के दौरान विद्यालय के समस्त शिक्षकों की गरिमामयी उपस्थिति बनी रही।