Holi 2024: होली पर सजती है सिनेमा की रंगोली, यह उपक्रम 20वीं शताब्दी के छठवें दशक से ‘सरररररररर’ के आलाप से जारी है। अबीर-गुलाल के संग भंग की तरंग में इनकी मौजूदगी उत्सव को दोगुणा कर देती है।दशकों पहले फिल्म ‘मदर इंडिया’ में शमशाद बेगम ने ‘होली आई रे कन्हाई’ का सुर छेड़ा था, जो वर्तमान में भी बृज की होली की छटा में गाई-बजाई जाती है। नरगिस और राजकुमार पर फिल्माए गए इस गीत के जिस परिदृश्य में पूरा कुनबा नाचता-झूमता दिखता है, उसे निर्देशक महबूब खान ने विशेष रूप से इसी गीत के फिल्मांकन के लिए ही बनवाया था।

इस कालजयी होली गीत के आखिरी अंतरे में शमशाद बेगम ने उत्सव-उल्लास की उमंग में बिरहन की पीर को ‘होली घर आई तू भी आजा मुरारी, मन ही मन राधा रोए बिरहा की मारी’ पंक्ति में जिस गहन भाव संग उकेरा है, वह मन को अकस्मात् ही क्षणांश के लिए बेध जाता है पर गीत के मुखड़े पर होली के रंग से एकाकार हो जाना आनंद से भर देता है।

लोक परंपराओं की शैली में पग से पग मिलाते हुए होली के केंद्र बृजभूमि में डोलता हुआ मन जिस मनोरम होली गीत को जीवंत करता है, वो है ‘होली खेलत नंदलाल बिरज में’ (गोदान)। इस गाने में अभिनेता महमूद ने अपने संगी-साथी संग क्या खूब हुड़दंग मचाई है। मुंशी प्रेमचंद की कहानी पर निर्मित ‘गोदान’ के लिए अंजान के लिखे पारंपरिक छटा को अपने भीतर समाए इस गान को पं. रविशंकर ने भी परंपरा के उसी स्पर्श से धुनों में बांधा है जिसकी थाप पर कई-कई पीढ़ी दशकों से थिरकती आ रही है।

धमाचौकड़ी से भरे ऐसे ही एक और होली गीत की धुन पर रास रचाता तन-मन आज भी डोल उठता है- ‘अरे जा रे हट नटखट न छू रे मेरा घूंघट पलट के दूंगी आज तुझे गाली रे’ (नवरंग)। ठिठोली करते आशा भोंसले के स्वर से सजे इस गान की छेड़-छाड़ किसी को भी झूमने पर विवश कर देगी। पूर्वांचल के होली हुड़दंग को रवींद्र जैन के संगीत में ‘जोगी जी धीरे धीरे’ (नदिया के पार) की संगत में सुनना आज भी तन-मन को झूमने पर बरबस ही विवश कर देता है।

उमंग पर खिलता सुरों का रंग
हिंदी फिल्मों के होली गीतों में कलात्मक पक्ष को सुरीले और नृत्य भाव-भंगिमा के संग उकेरने वाला जो एकमात्र गीत है, उसे लता मंगेशकर ने अपने स्वर-सौंदर्य से ‘पिया तोसे नैना लागे’ (गाइड) में जिस प्रणयी रूप में परोसा है वह अद्भुत है। इस एक गीत के अंतरों में प्रेम सहित विभिन्न पर्व-उत्सव और प्रसंगों के साथ होली के संदर्भ को भी रेखांकित किया गया है।

आज न छोड़ेंगे बस हमजोली खेलेंगे हम होली’ (कटी पतंग) की बरजोरी से हर कोई आज भी मचल उठता है, तो वहीं ‘होली के दिन दिल खिल जाते हैं’ (शोले) के साथ ही जब अमिताभ बच्चन के स्वर में ‘रंग बरसे भीगे चुनर वाली रंग बरसे’ (सिलसिला) की धमक लगती है, तब उत्सव में धमाल सा मच जाता है। ‘शोले’ फिल्म में होली गीत के फिल्मांकन के लिए विशेष रूप से सेट को आकार दिया गया था, जिसमें उत्सव का परिदृश्य रचकर मस्ती करते हेमा मालिनी और धर्मेंद्र दिखते हैं तो इसी बीच अपने मूक प्रेम का प्रदर्शन करते अमिताभ बच्चन और जया बच्चन की कसक भी नजर आती है। दूसरी ओर फिल्म ‘सिलसिला’ में प्रेम त्रिकोण के सुप्त पड़ चुकी उमंग को भंग की तरंग कुछ इस प्रकार अंगड़ाई से जगाती है कि अमिताभ-रेखा की अठखेलियों को संजीव कुमार और जया बच्चन ठगे से देखते ही रह जाते हैं।

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