रायपुर: छत्तीसगढ़ के वन क्षेत्रों में शहद उत्पादन की अच्छी संभावनाओं को देखते हुए परंपरागत रूप से शहद का संग्रहण करने वाले संग्राहकों को आधुनिक वैज्ञानिक तरीके से शहद संग्रहण का प्रशिक्षण देने का कार्य प्रारंभ किया गया है। प्रथम चरण में 5 जिला यूनियनों के 323 परंपरागत शहद संग्राहकों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है। संपूर्ण छत्तीसगढ़ में 1000 शहद संग्राहकों को वैज्ञानिक तरीके से संग्रहण का प्रशिक्षण दिया जाएगा। प्रदेश में शहद के विपुल उत्पादन वाले वन क्षेत्रों के सर्वे का कार्य भी प्रारंभ किया गया है। विशेषज्ञों द्वारा प्रथम चरण में 5 जिला यूनियनों में सर्वे का कार्य तथा 3 जिला यूनियनों में संग्राहकों के प्रशिक्षण का कार्य पूरा कर लिया गया है।

छत्तीसगढ़ राज्य लघु वनोपज संघ द्वारा जिला यूनियन कवर्धा, बिलासपुर, एवं पूर्व भानुप्रतापपुर में शहद मैनेजर को पदस्थ कर शहद प्रसंस्करण का कार्य किया जा रहा है। राष्ट्रीय स्तर के केन्द्र ‘‘ग्रामोपयोगी विज्ञान केन्द्र, दत्तपूर वर्धा महाराष्ट्र’’ की अनुभवी टीम के सदस्यों से शहद के उत्पादन वाले वन क्षेत्रों एवं संग्राहकों का सर्वे करवाकर शहद विशेषज्ञों के माध्यम से ग्रामीण को प्रशिक्षण दिलाने का कार्य प्रारंभ किया गया है।

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल द्वारा वनोपजों के संग्रहण और उनके वेल्यूएडिशन के जरिए वनवासियों की आय में वृद्धि की पहल के तहत राज्य लघु वनोपज संघ द्वारा शहद संग्राहकों को वैज्ञानिक तरीके से संग्रहण का प्रशिक्षण देने का कार्य प्रारंभ किया गया है। वैज्ञानिक तरीके से संग्रहण करने से मधुमक्खियों और उनके छत्तों को नुकसान नहीं पहुंचता। साथ ही एक ही छत्ते से वर्ष में दो से तीन बार शहद संग्रहण किया जा सकता है।

वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री मोहम्मद अकबर के मार्गदर्शन में वन क्षेत्रों के सर्वे तथा शहद संग्राहकों के प्रशिक्षण के लिए प्रथम चरण में 11 जिला यूनियन नारायणपुर, पूर्व भानुप्रतापपुर, पश्चिम भानुप्रतापपुर, धमतरी, गरियाबंद, कवर्धा, जगदलपुर, बिलासपुर, धरमजयगढ़, कटघोरा, मरवाही, द्वितीय चरण में सात जिला यूनियन बीजापुर, दंतेवाड़ा, कांकेर, खैरागढ़, राजनांदगांव, कोरबा, जशपुर एवं तृतीय चरण में शेष बचे जिला यूनियन को लिये गये हैं।

गौरतलब है कि प्रदेश के जंगलों में उच्च गुणवत्ता का जंगली शहद अत्यधिक मात्रा में प्राप्त होता है, किन्तु ग्रामीण संग्राहकों द्वारा शहद संग्रहण के समय परंपरागत पुरानी पद्धति से छत्तों के नीचे आग जलाकर धुएं से मधुमक्खियों को छत्तों से दूर भगाया जाता है एवं मधुमक्खियों के संपूर्ण छत्तों को वृक्ष से अलग कर शहद निकाला जाता है। इस विधि से मधुक्खियों का छत्ता पूर्ण रूप से नष्ट हो जाता है। इससे मधुमक्खियों की संख्या में भी अत्यधिक कमी होते जा रही है, जिससे शहद का उत्पादन भी धीरे-धीरे कम हो रहा है।

मधुमक्खियों को एवं उनके घरों (छत्तों) को बिना क्षति पहुचाएं प्रदेश में शहद उत्पादन कार्य में अत्यधिक वृद्धि हो सके, इसलिए शहद उत्पादन की ‘‘संभावनाओं के गढ़ छत्तीसगढ़’’ में राज्य लघु वनोपज संघ द्वारा विनाशविहीन शहद उत्पादन के लिए आधुनिक वैज्ञानिक तरीके से शहद संग्रहण कार्य को प्रोत्साहित करने का निर्णय लिया गया है। इसके लिए प्रदेश के समस्त शहद वन क्षेत्रों तथा शहद संग्राहकों का सर्वे करवाने एवं शहद संग्राहकों को प्रशिक्षण देने का कार्य प्रारंभ किया गया है। इससे शहद के छत्तों और मधु मक्खियों को बिना नुकसान पहुंचाए आसानी से शहद संग्रहण हो सकेगा और शहद के उत्पादन में अत्यधिक वृद्धि होगी।

उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की विशेष पहल पर छत्तीसगढ़ राज्य लघु वनोपज संघ द्वारा प्रदेश के 31 जिला यूनियन की 901 प्राथमिक लघु वनोपज सहकारी समिति के माध्यम से समर्थन मूल्य योजना के तहत 38 लघु वनोपज प्रजातियों का तथा राज्य लघु वनोपज संघ द्वारा निर्धारित दर से 27 लघु वनोपज प्रजातियों का इस प्रकार कुल 65 लघु वनोपज प्रजातियों का संग्रहण प्रदेश के वन क्षेत्रों से किया जा रहा है। न्यूनतम समर्थन मूल्य पर संग्रहित की जा रही 38 लघु वनोपज प्रजातियों में से एक प्रजाति जंगली शहद है। जिसे वर्तमान में 225 रूपए प्रति किलो की दर से वन क्षेत्र के ग्रामीण क्षेत्र के संग्राहकों से क्रय किया जा रहा है।

वैज्ञानिक तरीके से इस तरह किया जाता है शहद का संग्रहण

प्रशिक्षकों द्वारा शहद संग्राहकों को मधु मक्खियों के डंक से बचाने हेतु एक विशेष पोषाक (ड्रेस) जिसमें मधु मक्खियों के डंक का प्रभाव नहीं पड़ता है पहनाया जाता है। संग्राहकों द्वारा पहाड़ों, ऊँचे पत्थरों के शहद के छत्तों पर पानी का स्प्रे कर तथा संग्राहकों को सीढ़ीदार रस्सी से वृक्षों पर चढ़ाकर मधु मक्खियों के छत्तों के अग्रभाग में जहां शहद कि मात्रा सबसे ज्यादा रहती है, धारदार चाकू से एक छोटा सा चीरा देकर मधुखण्ड के शहद को बगैर निचोड़े शहद निकाल लिया जाता है। इससे मधु मक्खियों मरती नहीं है एवं छत्ते के जिस भाग को हल्का चीरा लगाकर शहद निकाला जाता है। उस क्षति वाले छत्ते को मधु मक्खियां लगभग 07 दिवस में पुनः मरम्मत कर मधुखण्ड निर्मित कर अपने स्वयं के घर को पहले जैसा बना लेती हैं तथा पुनः शहद संग्रहण प्रारंभ कर देती है। इस प्रकार एक वर्ष में मधुमक्खियों के एक ही छत्तों से दो या तीन बार शहद संग्रहण किया जाता है।

वैज्ञानिक तरीके से विनाश विहिन तरीके से मधुमक्खियों को एवं उनके घरों (छत्तों) को नष्ट किये बिना तथा शहद संग्राहकों को मधु मक्खियों के डंक से बचाकर शहद प्राप्त कर लिया जाता है। इससे आने वाले समय में मधु मक्खियों तथा छत्तों की संख्या में तथा शहद के संग्रहण और उत्पादन में अत्यधिक वृद्धि होगी तथा प्रदेश में शहद का भण्डार बढ़ेगा। इससे वनांचल क्षेत्र के ग्रामीणों की आय में वृद्धि होगी। विगत वर्षाे में पुरानी परम्परागत पद्धति से संग्रहण करने के कारण शहद का कम संग्रहण होता रहा है। इस वर्ष नई तकनीक से संग्रहण कार्य होने के कारण आसानी से शहद संग्रहण के लक्ष्य की प्राप्ति हो सकेगी।
पांच जिला यूनियनों के 323 शहद संग्राहकों को वैज्ञानिक प्रशिक्षण
छत्तीसगढ़ राज्य लघु वनोपज संघ के प्रबंध संचालक श्री संजय शुक्ला से प्राप्त जानकारी के अनुसार प्रथम चरण में 5 जिला यूनियनों के 323 परंपरागत शहद संग्राहकों का सर्वे कर उन्हें वैज्ञानिक प्रशिक्षण दिया जा रहा है, इनमें पूर्व भानुप्रतापपुर जिला यूनियन के 30 संग्राहक, पश्चिम भानुप्रतापपुर के 20, नारायणपुर के 90, धमतरी के 70 और गरियाबंद जिला यूनियन के 113 शहद संग्राहक शामिल हैं।


इस वर्ष 2770 क्विंटल शहद संग्रहण का लक्ष्य

छत्तीसगढ़ राज्य लघु वनोपज संघ द्वारा प्राप्त जानकारी के अनुसार वर्ष 2022-23 में 2770 क्विंटल शहद संग्रहण का लक्ष्य निर्धारित किया गया है, जिसके विरूद्ध 30 जून तक 240 क्विंटल शहद का संग्रहण कर लिया गया है। प्राप्त जानकारी के अनुसार वर्ष 2020-21 में 323 क्विंटल, वर्ष 2021-23 में 349 क्विंटल शहद का संग्रहण किया गया था।

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